"धर्मे धमनं पापे पुण्यम्"/ "कण्टकेनैव कण्टकम् " पञ्चमः पाठः , रूचिरा भाग 3/ हिन्दी अनुवाद एवं अभ्यास कार्य।" ...
"धर्मे धमनं पापे पुण्यम्"/
"कण्टकेनैव कण्टकम् "
पञ्चमः पाठः ,
रूचिरा भाग 3/
हिन्दी अनुवाद एवं अभ्यास कार्य।"
DHARME DHAMANAM PAPE PUNYAM"
/"KANTENEV KANTAKAM/ LESSON-5/
RUCHIRA PART-3/
HINDI ANUVAD EVM ABHYAS KARYA.
पाठ का सार एवं शिक्षा :---
संकट के समय चतुराई से अपने प्राणों की रक्षा की जा सकतीं है।
शब्दार्था:
व्याधः= शिकारी
स्वीयाम् =स्वयं की
दौर्भाग्यात् = दुर्भाग्य से
बद्ध: =बँधा हुआ
पलायनम् = पलायन करना
न्यवेदयत् = निवेदन किया
मोचययिष्यसि= मुक्त करोगे
निरसारयत् = निकाला
क्लान्तः =थका हुआ
पिपासु: =प्यासा
शमय= शांत करो
बुभुक्षितः =भूखा
भणितम् = कहा ।
संकेत:- आसीत कश्चित्.........खादितुम् इच्छसि।
अनुवाद:--- कोई चंचल नाम का शिकारी था। वह पशु-पक्षी आदि को पकड़कर अपने जीवन का निर्वाह करता था।एक बार वह वन में जाल बिछाकर घर आ गया। दूसरे दिन सुबह जब चंचल वन में गया तब उसने देखा कि उसके द्वारा बिछाए जाल में दुर्भाग्य से एक शेर फँस गया था। उसने सोचा 'शेर मुझे खाएगा इसलिए भाग जाना चाहिए'।शेर ने निवेदन किया-' हे मनुष्य! तुम्हारा कल्याण हो यदि तुम मुझे छोड़ आओगे तो मैं तुम्हें नहीं मारूंगा।' तब उस शिकारी ने शेर को जाल से बाहर निकाल दिया। शेर थका हुआ था । वह बोला,' हे मनुष्य मैं प्यासा हूँ। नदी से जल लाकर मेरी प्यास शांत करो । शेर ने जल पीकर फिर शिकारी से कहा ,'मेरी प्यास बुझ गई है। अब मैं भूखा हूँ।अब मैं तुम्हें खा लूंगा। चंचल ने कहा,' मैंने तुम्हारे लिए धर्म का आचरण किया। तुमने झूठ कहा तुम मुझे खाना चाहते हो ?'
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शब्दार्था:-
प्रक्षालयन्ति= धोते हैं
विसृज्यः =छोडकर
निवर्तन्ते=चले जाते हैं
उपग्रह = पास जाकर
विरमन्ति= विश्राम करते हैं
कुठारैः=कुल्हाडियों से
प्रह्रत्य= प्रहार करके
छेदनम्=काटना
लोमशिका =लोमड़ी
निलीना=छुपी हुई
उपसृत्य= समीप जाकर
मातृस्वसः ! = हे मौसी
समागतवती=पधारी
निखिलाम् =सम्पूर्ण।
संकेत:-- व्याघ्र: अवदत्...........कथां न्यवेदयत् ।
अनुवाद:-- शेर बोला," अरे मूर्ख! भूख के लिए कुछ भी अकरणीय नहीं होता है। सभी में स्वार्थ समाया हुआ है।अर्थात सभी अपना भला चाहते हैं।' चंचल ने नदी के जल से पूछा नदी के जल ने कहा ,'ऐसा ही होता है लोग मुझ में स्नान करते हैं कपड़े धोते हैं और मल मूत्र आदि करके चले जाते हैं इसलिए सभी में स्वार्थ समाया हुआ है।'चंचल ने वृक्ष के पास जाकर पूछा। वृक्ष बोला ,'लोग हमारी छाया में विश्राम करते हैं, हमारे फल खाते हैं और फिर कुल्हाड़ी से प्रहार करके हमें हमेशा कष्ट देते हैं। जहां कहीं भी छेद करते हैं। सभी में स्वार्थ समाया हुआ है।पास में एक लोमड़ी बेरों की झाड़ी के पीछे छुपकर यह बात सुन रही थी । वह अचानक चंचल के पास आकर बोली- " क्या बात है ? मुझे भी बताओ।" वह बोला- अरे मौसी ! तुम ठीक समय पर आई हो। मेरे द्वारा इस शेर के प्राणों की रक्षा की गई, पर यह मुझे ही खाना चाहता है।" उसके बाद उसने लोमडी से पूरी कथा कह दी।
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शब्दार्था:
बाढम् =ठीक है
प्रत्यक्षम्=अपने सामने
वृतान्तम्=पूरी कहानी
प्रदर्शयितुम्=प्रदर्शन करने के लिए
प्राविशत्=प्रवेश किया
कूर्दनम् =उछल- कूद
अनारतम् =लगातार
श्रान्त्तः=थका हुआ
प्रत्यावर्तत= लौौ आया।
संकेत:-- लोमशिका ............ ...... स्वार्थ समीहते। '
अनुवाद:-- लोमड़ी ने चंचल से कहा- ठीक है, तुम जाल फैलाओ। फिर उसने शेर से कहा- तुम इस जाल में कैसे फँसे थे यह मैं प्रत्यक्ष देखना चाहती हूँ। शेर पूरी कहानी को दिखाने के लिए उस जाल में घुस गया। लोमड़ी ने फिर कहा- अब बार-बार कूदकर दिखाओ। उसने वैसा ही किया ।लगातार कूदने से वह थक गया। जाल में बँधा वह शेर थककर व निःसहाय होकर वहाँ गिर गया और प्राणों की भीख मांगने लगा। लोमड़ी ने शेर से कहा, तुमने सत्य कहा, "सभी में स्वार्थ समाया हुआ है।"
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अभ्यासः---
●एकपदेन लिखत् :-------
प्रश्न 1:---
कः-- व्याधस्य नाम किम् आसीत् ?
उत्तर:-- चंचल:।
खः-- चञ्चलः व्याघ्रं कुत्र दृष्टवान् ?
उत्तर:-- जाले।
गः-- कस्मै किमपि अकार्य न भवति ?
उत्तर:-- क्षुधार्ताय।
घः-- बदरी गुल्मानां पृष्ठे का निलीना आसीत् ?
उत्तर:-- लोमशिका ।
ङः-- सर्वः किं समीहते ?
उत्तर:-- स्वार्थं ।
चः-- नि:सहायो व्याधः किमयाचत् ?
उत्तर:-- प्राणभिक्षामिव।
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● पूर्णवाक्येन उत्तरत:----
प्रश्न 2 :--
क:-- चञ्चलेन वने किं कृतम् ?
उत्तर:-- चञ्चलेन वने जालम् विस्तृतम् ।
खः-- व्याघ्रस्य पिपासा कथं शान्ता अभवत् ?
उत्तर:-- व्याघ्रस्य पिपासा जलं पीत्वा शान्ता अभवत्।
गः--- जलं पीत्वा व्याघ्र: किम् अभवत् ?
उत्तर:-- जलं पीत्वा व्याघ्रः अवदत्---"बुभुक्षितः अस्मि।
इदानीम् अहं त्वां खादिष्यामि। "
घः-- चञ्चलः 'मातृस्वसः' इति कां सम्बोधितवान् ?
उत्तर:--- चञ्चलः 'मातृस्वसः!' इति लोमशिका
सम्बोधितवान् ।
ङ:-- जाले पुनः बद्धं व्याघ्रं दृष्टवा व्याधः किम् अकरोत् ?
उत्तर:-- जाले पुनः बद्धं व्याघ्रं दृष्टवा व्याधः प्रसन्न: भूत्वा
गृहं प्रत्यावर्तत्।
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# राजेश राष्ट्रवादी
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