और काजी के आदेश पर.. जल्लाद ने गुरु तेग बहादुर सिंह जी का धड शरीर से अलग कर दिया। मित्रों, हमारा भारतीय इतिहास अनगिनत महापुरुषों की गौरव ग...
और काजी के आदेश पर.. जल्लाद ने गुरु तेग बहादुर सिंह जी का धड शरीर से अलग कर दिया।
मित्रों, हमारा भारतीय इतिहास अनगिनत महापुरुषों की गौरव गाथाओं से भरा हुआ है।राष्ट्र के गौरवशाली और प्रेरणादायक महापुरुषों में एक बडा नाम अमर बलिदानी गुरु तेग बहादुर सिंह जी का भी आता है।
श्री गुरु तेग बहादुर सिंह जी एक उज्जवल नक्षत्र की तरह प्रकाशमान है। उनका जन्म वैशाख कृष्ण पंचमी को अमृतसर में हुआ। उनके पिता श्री हरगोविंद जी तथा माता नानकी जी थी ।नानकशाही कैलेंडर के अनुसार 1 मई 2022 को उनके प्रकाश को 401 वर्ष पूर्ण हो गए हैं ।
जिस कालखंड में भारत के अधिकांश भूभाग पर मध्य एशिया के मुगलों ने कब्जा कर रखा था ।उस समय जिस परंपरा ने उन्हें चुनौती दी। तेग बहादुर जी उसी के प्रतिनिधि थे।
उनका व्यक्तित्व तप, त्याग और साधना का प्रतीक है ।तेग बहादुर जी की वाणी एक प्रकार से व्यक्ति निर्माण का सबसे बड़ा प्रयोग है ।
नकारात्मक वृत्तियों पर नियंत्रण कर लेने से सामान्य ज्ञान धर्म के रास्ते पर चल सकता है। निंदा, स्तुति ,लोभ ,मोह, मान ,अभिमान के चक्रव्यू में जो मनुष्य फँसे रहते हैं । वे संकट काल में अविचलित नहीं रह सकते ।जीवन में कभी सुख आता है और कभी दुख आता है ।सामान्य आदमी का व्यवहार उसी के अनुरूप बदलता रहता है ।
लेकिन सिद्ध पुरुष इन स्थितियों से ऊपर हो जाते हैं । गुरु जी का संपूर्ण जीवन धर्म अर्थ काम मोक्ष के पुरुषार्थ का सर्वोत्तम उदाहरण है। उन्होंने सफलतापूर्वक अपने गृहस्थ जीवन में अर्थ और काम की साधना करते हुए अपने परिवार और समाज में उत्कृष्ट मानवीय मूल्यों का संचार किया। धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने प्राणोत्सर्ग कर दिया। उनका दृष्टिकोण संकट काल में भी आशा एवं विश्वास का है ।
मित्रों, गुरु जी का निवास आनंदपुर साहिब मुगलों के अन्याय एवं अत्याचार के खिलाफ जन संघर्ष का केंद्र बनकर उभरने लगा था। औरंगजेब हिंदुस्तान को दारुल इस्लाम बनाना चाहता था । कश्मीर बौद्धिक एवं आध्यात्मिक केंद्र होने के कारण मुगलों के निशाने पर था कश्मीर के लोग गुरुजी के पास इन सभी विषयों पर मार्गदर्शन के लिए पहुंचे।
गुरुजी ने गहन विचार विमर्श किया । कश्मीर सहित पूरे देश की परिस्थिति गंभीर थी। पर मुगलों के दारुल इस्लाम बनाने के क्रूर कृत्य को रोकने का मार्ग क्या था ? एक ही मार्ग था कोई महापुरुष देश और धर्म की रक्षा के लिए आत्म बलिदान दें। उस बलिदान से पूरे देश में जन चेतना का ज्वार उठेगा। उसमें विदेशी मुगल साम्राज्य की दीवारें हिल जाएंगी ।
लेकिन प्रश्न था यह बलिदान कौन दे ? इसका समाधान गुरु तेग बहादुर जी के सुपुत्र गोविंद राय जी ने कर दिया ।उन्होंने अपने पिता से कहा इस समय देश में आप से बढ़कर महापुरुष कौन है?
औरंगजेब की सेना ने गुरु तेग बहादुर जी को तीन साथियों समेत क़ैद कर लिया ।सभी को कैद कर दिल्ली लाया गया। वहां उन पर मानवीय अत्याचार किए गए ।
इस्लाम स्वीकार करने के लिए उन पर शिष्यों सहित तरह तरह के दबाव बनाए गए ।
धर्मगुरु बनाने एवं धन संपदा के आश्वासन भी दिए गए पर वे धर्म के मार्ग पर अडिग रहें।
दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर जी की आंखों के सामने भाई मती दास को आरे से बीचोबीच चीर दिया गया भाई दियाला को खोलते तेल में उबाल दिया गया ।और भाई सती दास को रुई के ढेर में बांधकर जला दिया गया ।
शायद मुगल साम्राज्य को लगता था कि अपने साथियों के साथ यह दुर्व्यवहार गुरुजी को भयभीत कर देगा। गुरुजी जानते थे कि अन्याय और अत्याचार से लड़ना ही धर्म है। इसलिए वह अविचलित रहे ।
काजी ने आदेश दिया और जल्लाद ने गुरु तेग बहादुर जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। उनके इस अमर बलिदान ने पूरे देश में एक नई स्फूर्ति एवं चेतना पैदा कर दी थी।
🌷 जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल। 🌷
मेरा देश के युवकों से आह्वान है कि वे गुरु तेग बहादुर सिंह जी के दिखलाए रास्ते पर चलकर समाज और राष्ट्र-निर्माण के कार्य में लगे।
🇮🇳 राजेश राष्ट्रवादी।
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