Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Classic Header

{fbt_classic_header}

अभी अभी

latest

"जब साहसी बालिका मैना को जिंदा ही जला दिया गया।" /JAB SAHASI BALIKA MAINA KO JINDA HI JLA DIYA GYA / AZADI KA AMRIT MAHOTSAV[2021-22]

  "जब साहसी बालिका मैना को जिंदा ही जला दिया गया।"  /JAB SAHASI BALIKA MAINA KO JINDA HI JLA DIYA GYA / AZADI KA AMRIT MAHOTSAV [2...


 "जब साहसी बालिका मैना को जिंदा ही जला दिया गया।" 
/JAB SAHASI BALIKA MAINA KO JINDA HI JLA DIYA GYA /
AZADI KA AMRIT MAHOTSAV [2021-22]

यदि असावधानी से हमारा हाथ जलती हुई मोमबत्ती अथवा धूपबत्ती से छू जाए तो क्या होता है ? 

हमारा हाथ तुरंत पीछे हठ जाता है। है ना ? लेकिन यह अमर कहानी स्वतंत्रता की उस पुजारिन की है जो धधकती चिता में एक नहीं दो बार झोंकी जाकर भी अपने निश्चय से तिल भर भी पीछे नहीं हटी ।

बात 1857 की है यह वह युग था। जब अंग्रेजों से अपने देश को स्वतंत्र करवाने के लिए सारा देश क्रांति की आग में तप रहा था।

स्वतंत्रता समर का इतिहास लिखने वाले वीर सावरकर जी ने इसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा।

यह जानकर आपको गर्व होगा कि अनेक इतिहासकारों ने यह स्वीकारा है कि हमारा राष्ट्र पूरी तरह पराधीन कभी हुआ ही नहीं । अट्ठारह सौ सत्तावन के भी 100 वर्ष पहले से देश की स्वतंत्रता की लड़ाई चल रही थी । लेकिन अट्ठारह सौ सत्तावन का संघर्ष इतना व्यापक था कि उसे  अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का उद्यात्त बिंदु कहना अनुचित नहीं होगा ।

*******************************

नाना साहब पेशवा इस महासमर के प्रमुख नेतृत्वकर्ता थे। कानपुर से कुछ किलोमीटर दूर बिठूर में उनका महल क्रांति का प्रमुख केंद्र बना हुआ था। क्रांति का आरंभ योजना के समय से पहले हो जाने से क्रांति के प्रयत्न प्रभावित भी हुए थे। अतः योजनाओं में तात्कालिक परिवर्तनों के लिए क्रांतिकारियों को गुप्त बैठकें करनी होतीं, गुप्त रूप से देश भर में संदेश पहुंचाने होते थे।

******************************


यह एक ऐसा ही अवसर था। जब अंग्रेज सैनिकों को छकाते हुए नाना साहब अपने साथियों सहित बिठूर से बाहर अज्ञात स्थान पर गए हुए थे और उनकी 13 वर्ष की बेटी मैना महल में थी। अंग्रेज सेनापति 'हे'  ने सेना सहित महल को घेर लिया। उसे आदेश था कि नाना साहब को बंदी बनाकर महल को आग लगा दी जाए। 'हे' ने आग लगाने के पूर्व महल को लूट लेना ठीक समझा।

ऐसा करते समय ही उसे नन्ही मैना दिखाई दे गई। मैना उसे कुछ जानी- पहचानी सी लगी। उसने कड़क कर पूछा , "ऐ लडकी! कौन है तू ? "मैं नाना साहब की बेटी हूँ, मैना ! आपकी बेटी 'मेरी' की सहेली ।"

मैना भी 'हे' को पहचान चुकी थी पर उसने अपना परिचय छुपाया नहीं।

"नाना कहाँ है? हम उन्हें ले जाने आए हैं ? 'हे' ने पूछा ।

"वह मैं नहीं बता सकती।" मैना निडर एवं स्पष्ट उत्तर देती है।

'हे' चिढ़ गया "हम यह महल जलाकर राख कर देने वाले हैं। जान बचानी हो तो बता दो नाना कहाँ है ?"

उसी समय उसका वरिष्ठ अधिकारी कॉवन आ धमका। उसे नाना को पकड़कर उन पर घोषित एक लाख  रुपए का इनाम पाने का बड़ा लालच था। 'हे' भूल गया था कि मैना उसकी बेटी की उम्र की उसकी बेटी मेरी की सहेली है। 

कॉवन के आदेश पर मैना को खंभे से बांधकर कोड़ों से पीटा गया लेकिन वह तो मानो वज्र जैसा कठोर हृदय रखती थी कि उसके मुँह से एक भी गुप्त भेद प्रकट न हुआ। उसे कानपुर ले जाकर जलती चिता में झोंक देने का आदेश हुआ। महल तो पहले ही तोप से उड़ा दिया गया था।

*****************************

नन्हीं मैना धू -धू जलती लपटों में जल रही थी पर क्रांतिकारियों का पता बता कर देश से गद्दारी उसे स्वीकार न थी। अधजली मैना को एक बार चिता से बाहर खींचकर फिर पूछताछ की पर परिणाम अटल था। क्रोध में भरे कॉवन ने चिढकर उसे पुनः चिता में डालकर जीवित ही जला दिया ।

नन्हीं बालिका मैना मातृभूमि की स्वतंत्रता के यज्ञ की आहुति बनकर सदा-सदा के लिए अमर हो गई।

हर सच्चे भारतीय को बलिदानी मैना सदैव प्रेरणा देती रहेगी।

(साभार:- स्वतंत्रता संग्राम के बाल बलिदानी।)

विनम्र निवेदन:-🙏 अगर आपको यह अमर कहानी प्रेरणादायक लगी है तो कृपया इस लिंक को अधिकाधिक शेयर कीजिएगा।

🇮🇳 राजेश राष्ट्रवादी।


No comments