प्रदूषण की समस्या और समाधान /अनुच्छेद/निबंध/रचनात्मक लेखन/ PRADUSHAN KI SAMASYA AUR SAMADHAN/ANUCHED/NIBANDH/RACHNATMAK LEKHAN प्रस्तावना:-...
प्रदूषण की समस्या और समाधान /अनुच्छेद/निबंध/रचनात्मक लेखन/
PRADUSHAN KI SAMASYA AUR SAMADHAN/ANUCHED/NIBANDH/RACHNATMAK LEKHAN
प्रस्तावना:- आज का मानव औद्योगिकरण के जंजाल में फंस कर स्वयं भी मशीन का एक ऐसा निर्जीव पुर्जा बनकर रह गया है कि वह अपने पर्यावरण की शुद्धता का ध्यान भी न रख सका। अब एक और नई समस्या उत्पन्न हो गई है-- वह है प्रदूषण की समस्या। इस समस्या की ओर आजकल सभी देशों का ध्यान केंद्रित है। इस समय हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण को बचाने की है, क्योंकि पानी, हवा, जंगल, मिट्टी आदि सब कुछ प्रदूषित हो चुका है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण का महत्व बताया जाना चाहिए; क्योंकि यही हमारे अस्तित्व का आधार है। यदि हमने इस असंतुलन को दूर नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियां अभिशप्त जीवन जीने को बाध्य होंगी और पता नहीं , तब मानव जीवन होगा भी या नहीं।
प्रदूषण का अर्थ:--संतुलित वातावरण में ही जीवन का विकास संभव है। पर्यावरण का निर्माण प्रकृति के द्वारा किया गया है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त पर्यावरण जीव धारियों के अनुकूल होता है। जब वातावरण में कुछ हानिकारक घटक आ जाते हैं तो वे वातावरण का संतुलन बिगाड़ कर उसको दूषित कर देते हैं। यह गंदा वातावरण जीव धारियों के लिए अनेक प्रकार से हानिकारक होता है। इस प्रकार 'वातावरण के दूषित हो जाने' को ही प्रदूषण कहते हैं।
जनसंख्या की असाधारण वृद्धि और औद्योगिक प्रगति में प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है और आज इसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि उससे मानवता के विनाश का संकट उत्पन्न हो गया है।
प्रदूषण के प्रकार:-आज के वातावरण में प्रदूषण निम्नलिखित रूपों में दिखाई देता
है:--
क. वायु प्रदूषण:- वायु जीवन का अनिवार्य स्रोत है। प्रत्येक प्राणी को स्वस्थ रुप से जीने के लिए शुद्ध वायु अर्थात ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। जिस कारण वायुमंडल में इसकी विशेष अनुपात में उपस्थिति आवश्यक है। जीवधारी साँस द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करता है और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है। पेड़ पौधे कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इससे वायुमंडल में शुद्धता बनी रहती है। आजकल वायुमंडल में ऑक्सीजन गैस का संतुलन बिगड़ गया है और वायु अनेक हानिकारक गैसों से प्रदूषित हो गई है ।
ख.जल प्रदूषण:-जल को जीवन कहा जाता है और यह भी माना जाता है कि जल में ही सभी देवता निवास करते हैं। इसके बिना जीव जंतु और पेड़ पौधों का भी अस्तित्व नहीं है। फिर भी बड़े बड़े नगरों के गंदे नाले और सीवर नदियों में मिला दिए जाते हैं। कारखानों का सारा मैला बहकर नदियों के जल में आकर मिलता है। इससे जल प्रदूषित हो गया है और उससे भयानक बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं, जिससे लोगों का जीवन ही खतरे में पड़ गया है।
ग. ध्वनि प्रदूषण:- ध्वनि प्रदूषण भी आज की नई समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने पैदा किया है। मोटर, कार, ट्रैक्टर, जेट विमान, कारखानों के सायरन, मशीनें तथा लाउडस्पीकर ध्वनि के संतुलन को बिगाड़ कर ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से मानसिक विकृति, तीव्र-क्रोध ,अनिद्रा एवं चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।
घ.रेडियोधर्मी प्रदूषण:-- आज के युग में वैज्ञानिक परीक्षणों का जोर है। परमाणु परीक्षण निरंतर होते ही रहते हैं। इसके विस्फोट से रेडियोधर्मी पदार्थ संपूर्ण वायुमंडल में फैल जाते हैं और अनेक प्रकार से क्षति पहुँचते हैं। रासायनिक प्रदूषण कारखानों से बहते हुए अपशिष्ट द्रव्य के अलावा रोग नाशक तथा कीटनाशक दवाइयों से और रासायनिक खादों से भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये पदार्थ पानी के साथ बैठकर जीवन को अनेक प्रकार से हानि पहुँचते हैं।
प्रदूषण की समस्या तथा इससे हानियाँ:--
बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगीकरण ने विश्व के सम्मुख प्रदूषण की समस्या पैदा कर दी है। कारखानों से धोने से विषैले कचरे के बहाव से तथा जहरीली गैसों के रिसाव से आज मानव-जीवन समस्या ग्रस्त हो गया है। इस प्रदूषण से मनुष्य जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहा है । कोई अपंग होता है तो कोई बहरा, किसी की दृष्टि शक्ति नष्ट हो जाती है तो किसी का जीवन। विविध प्रकार की शारीरिक विकृतियाँ, मानसिक कमजोरी, असाध्य कैंसर व ज्वर इन सभी लोगों का मूल कारण विषैला वातावरण ही है।
समस्या का समाधान:- वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है । दूसरी ओर , वृक्षों के अधिक कटान पर भी रोक लगायी जानी चाहिए । कारखाने और मशीनें लगाने की अनुमति उन्हीं लोगों को दी जानी चाहिए जो औद्योगिक कचरे और मशीनों के धुएँ को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था कर सकें । संयुक्त राष्ट्र संघ को चाहिए कि वह परमाणु परीक्षणों को नियन्त्रित करने की दिशा में उचित कदम उठाए । तेज ध्वनि वाले वाहनों पर साइलेंसर आवश्यक रूप से लगाये जाने चाहिए तथा सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकरों आदि के प्रयोग को नियन्त्रित किया जाना चाहिए । जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए औद्योगिक संस्थानों में ऐसी व्यवस्था चाहिए कि व्यर्थ पदार्थों एवं जल को उपचारित करके ही बाहर निकाला जाए तथा इनको जल - स्रोतों में मिलने से रोका जाना चाहिए।
उपसंहार:--प्रसन्नता की बात है कि भारत सरकार प्रदूषण की समस्या के प्रति जागरूक है । उसने 1974 ई ० में ' जल - प्रदूषण निवारण अधिनियम ' लागू किया था । इसके अन्तर्गत एक ' केन्द्रीय बोर्ड ' तथा प्रदेशों में ' प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ' गठित किये गये हैं । इसी प्रकार नये उद्योगों को लाइसेंस देने और वनों की कटाई रोकने की दिशा में कठोर नियम बनाये गये हैं । इस बात के भी प्रयास किये जा रहे हैं कि नये वन - क्षेत्र बनाये जाएँ और जन - सामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाए । न्यायालय द्वारा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को महानगरों से बाहर ले जाने के आदेश दिये गये हैं ।
यदि जनता भी अपने ढंग से कार्यक्रमों में सक्रिय सहयोग दे और यह संकल्प ले कि जीवन में आने वाले शुभ अवसर पर कम - से - कम एक वृक्ष अवश्य लगाएगी तो निश्चित ही प्रत्येक हम प्रदूषण के दुष्परिणामों से बच सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी इसकी काली छाया से बचाने में समर्थ हो सकेंगे ।
🙏🙏सादर नमस्कार सर।
ReplyDeleteअति सुन्दर निबंध। निबन्ध को पढ़कर अनेक नई जानकारी प्राप्त हुई।
धन्यवाद।
ईश्वर आपको सफलता प्रदान करें।
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