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योग शिक्षा: आवश्यकता और उपयोगिता/ YOGA SHIKSHA : AVASHYKTA AUR UPYOGITA

  योग शिक्षा: आवश्यकता और उपयोगिता/ YOGA SHIKSHA : AVASHYKTA AUR UPYOGITA "योग शिक्षा आवश्यकता और उपयोगिता"  ( 1 ) प्रस्तावना  ( 2...




 

योग शिक्षा: आवश्यकता और उपयोगिता/ YOGA SHIKSHA : AVASHYKTA AUR UPYOGITA

"योग शिक्षा आवश्यकता और उपयोगिता" 

( 1 ) प्रस्तावना 

( 2 ) योग का अर्थ 

( 3 ) योग की आवश्यकता

(4 ) योग की उपयोगिता  

( 5 ) योग के सामान्य नियम 

( 6) योग से लाभ  

प्रस्तावना:-- योगासन शरीर और मन को स्वस्थ रखने की प्राचीन भारतीय प्रणाली है । शरीर को किसी ऐसे आसन या स्थिति में रखना जिससे स्थिरता और सुख का अनुभव हो , योगासन कहलाता है । योगासन शरीर की आन्तरिक प्रणाली को गतिशील करता है । इससे रक्त नलिकाएँ साफ होती हैं तथा प्रत्येक शुद्ध वायु का संचार होता है जिससे उनमें स्फूर्ति आती है । परिणामतः व्यक्ति उत्साह और कार्य क्षमता का विकास होता है तथा एकाग्रता आती है । योग का अर्थ - योग , संस्कृत के यजू धातु से बना है , जिसका अर्थ है संचालित करना , सम्बद्ध करना , सम्मिलित करना अथवा जोड़ना ।  

पहले यह विद्या गुरु - शिष्य परम्परा के तहत पुरानी पीढी से नई पीढ़ी को हस्तांतरित होती थी । लगभग 200 ई.पू. में महर्षि पतञ्जलि जी ने योग - दर्शन को योग - सूत्र नामक ग्रन्थ के रूप में लिखित रूप में प्रस्तुत किया। इसलिए महर्षि पतञ्जलि को ‘योग का प्रणेता' कहा जाता है । 

आज बाबा रामदेव जी महाराज 'योग' नामक इस अचूक विद्या का देश - विदेश में प्रचार कर रहे हैं । 

योग की आवश्यकता :--  शरीर के स्वस्थ रहने पर ही मस्तिष्क स्वस्थ रहता है मस्तिष्क से ही शरीर की समस्त क्रियाओं का संचालन होता है । इसके स्वस्थ और तनावमुक्त होने पर ही शरीर की सारी क्रियाएँ भली प्रकार से सम्पन्न होतो है । इस प्रकार हमारे शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक और आत्मिक विकास के लिए योगासन अति आवश्यक है । हमारा हृदय निरन्तर कार्य करता है । हमारे थककर आराम करने या रात को सोने के समय भी हृदय गतिशील रहता है । हमारा हृदय प्रतिदिन लगभग 8000 लीटर रक्त को पम्प करता है । उसकी यह क्रिया जीवन भर चलती रहती है । यदि हमारी रक्त नलिकाएँ साफ होगी तो हृदय को अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ेगी । इससे हृदय स्वस्थ रहेगा और शरीर के अन्य भागों को शुद्ध रक्त मिल पाएगा।  जिससे हम नीरोग व सबल हो जाएँगे । फलत : व्यक्ति की कार्य क्षमता भी बढ़ जाएगी ।  

योग की उपयोगिता :-- मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हमारे जीवन में योग अत्यन्त उपयोगी है । शरीर , मन एवं आत्मा के बीच सन्तुलन अर्थात् योग स्थापित करना होता है । योग की प्रक्रियाओं में जब तन , मन और आत्मा के बीच सन्तुलन एवं योग ( जुड़ाव ) स्थापित होता है , तब आत्मिक सन्तुष्टि , शान्ति एवं चेतना का अनुभव होता है । योग शरीर को शक्तिशाली एवं लचीला बनाए रखता है , साथ ही तनाव से भी छुटकारा दिलाता है । यह शरीर के जोड़ों एवं मांसपेशियों में लचीलापन लाता है , मांसपेशियों को मजबूत बनाता है शारीरिक विकृतियों को काफी हद तक ठीक करता है , शरीर में रक्त प्रवाह को सुचारु करता है तथा पाचन तन्त्र को मजबूत बनाता है । इन सबके अतिरिक्त यह शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्तियाँ बढ़ाता है , कई प्रकार की बीमारियों जैसे अनिद्रा , तनाव, थकान , उच्च रक्तचाप , चिन्ता इत्यादि को दूर करता है तथा शरीर को ऊर्जावान बनाता है । आज की भाग - दौड़ भरी जिन्दगी में स्वस्थ रह पाना किसी चुनौती से कम नहीं है । अतः हर आयु वर्ग के स्त्री - पुरुष के लिए योग उपयोगी है । 

योग के सामान्य नियम:-- योगासन उचित विधि से ही करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि की सम्भावना रहती है । योगासन के अभ्यास से पूर्व उसके औचित्य पर भी विचार कर लेना चाहिए । बुखार से ग्रस्त तथा गम्भीर रोगियों को योगासन नहीं करना चाहिए । 

योगासन करने से पहले नीचे दिए सामान्य नियमों की जानकारी  होनी आवश्यक  है:---

1.प्रातः काल शौचादि से निवृत्त होकर ही योगासन का अभ्यास करना चाहिए । स्नान के बाद योगासन करना और भी उत्तम रहता है । 

2.सायंकाल खाली पेट होने पर ही योगासन करना चाहिए । 

3.योगासन के लिए शान्त , स्वच्छ तथा खुले स्थान का चयन करना चाहिए । बगीचे अथवा पार्क में योगासन करना अधिक अच्छा रहता है । 

4.आसन करते समय कम , हलके तथा ढीले - ढाले वस्त्र पहनने चाहिए । कोई बातचीत नहीं करनी चाहिए । योगासन करते समय मन को प्रसन्न , एकाग्र और स्थिर रखना चाहिए । 

5.योगासन के अभ्यास को धीरे - धीरे ही बढ़ाएँ । 

6.योगासन का अभ्यास करने वाले व्यक्ति को हलका , शीघ्र पाचक सात्विक और पौष्टिक भोजन करना चाहिए । 

7.अभ्यास के आरम्भ में सरल योगासन करने चाहिए । 

8.योगासन के अन्त में शिथिलासन अथवा शवासन करना चाहिए । इससे शरीर को विश्राम मिल जाता है तथा मन शान्त हो जाता है । 

9.योगासन करने के बाद आधे घण्टे तक न तो स्नान करना चाहिए और न ही कुछ खाना चाहिए । 

योग से लाभ:--छात्रों , शिक्षकों एवं शोधार्थियों के लिए योग विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होता है , क्योंकि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के साथ - साथ उनकी एकाग्रता भी बढ़ाता है जिससे उनके लिए अध्ययन - अध्यापन की प्रक्रिया सरल हो जाती है । 

पतञ्जलि के योग - सूत्र के अनुसार आसनों की संख्या 84 है जिनमें भुजंगासन कोणासन , पद्मासन , मयूरासन , शलभासन , धनुरासन , गोमुखासन सिंहासन वज्रासन , स्वस्तिकासन , पर्वतासन , शवासन , हलासन , शीर्षासन ताड़ासन सर्वांगासन , पश्चिमोत्तानासन , चतुष्कोणासन , त्रिकोणासन , मत्स्यासन , गरुडासन इत्यादि कुछ प्रसिद्ध आसन है । 

योग के द्वारा शरीर पुष्ट होता है , बुद्धि और तेज बढ़ता है , अंग - प्रत्यंग में उष्ण रक्त प्रवाहित होने से स्फूर्ति आती है , मांसपेशियाँ सुदृढ़ होती हैं , पाचन शक्ति ठीक रहती है तथा शरीर स्वस्थ और हल्का प्रतीत होता है । 

योग के साथ मनोरंजन का समावेश होने से लाभ द्विगुणित होता है । इससे मन प्रफुल्लित रहता है और योग की थकावट भी अनुभव नहीं होती । शरीर स्वस्थ होने से सभी इन्द्रियाँ सुचारु रूप से काम करती हैं । योग से शरीर नीरोग , मन प्रसन्न और जीवन सरस हो जाता है । 

उपसंहार:-- आज की आवश्यकता को देखते हुए योग शिक्षा की बेहद आवश्यकता है , क्योंकि सबसे बड़ा सुख शरीर का स्वस्थ होना है । यदि आपका शरीर स्वस्थ है तो आपके पास दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है । स्वस्थ व्यक्ति ही देश और समाज का हित कर सकता है । 

अतः आज की भाग - दौड़ की जिन्दगी में खुद को स्वस्थ एवं ऊर्जावान बनाए रखने के लिए योग बेहद आवश्यक है। वर्तमान परिवेश में योग न सिर्फ हमारे लिए लाभकारी है , बल्कि विश्व के बढ़ते प्रदूषण एवं मानवीय व्यस्तताओं से उपजी समस्याओं के निवारण के संदर्भ में इसकी सार्थकता और बढ़ गई है ।



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