अलंकार,भेद, परिभाषाएँ, उदाहरण, कक्षा 9&10/ ALANKAR, BHED,PRIBHASHAYE, UDAHARAN, CLASS 9&10 ---:अलंकारः-- अलंकार...
अलंकार,भेद,परिभाषाएँ,
उदाहरण, कक्षा 9&10/
ALANKAR, BHED,PRIBHASHAYE,
UDAHARAN,
CLASS 9&10
---:अलंकारः--
अलंकार की परिभाषा:--
अलंकार का शाब्दिक अर्थ है-सजावट, शृंगार, आभूषण, गहना आदि। साहित्य में अलंकार शब्द का प्रयोग काव्य-सौंदर्य के लिए होता है। संस्कृत के विद्वानों के अनुसार- 'अलंकरोति इति अलंकार:' अर्थात् जो अलंकृत करे या शोभा बढ़ाए. उसे अलंकार कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, काव्य की सुंदरता बढ़ाने वाले गुण-धर्म अलंकार कहलाते हैं।
काव्य में अलंकारों का स्थान:-
काव्य को सुन्दरतम बनाने के लिए अनेक उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। मानव वस्त्र ,भूषण आदि को धारण करके समाज में गौरवान्वित होता है, उसी प्रकार कवि भी कवितारूपी नारी को उपकारों से अलंकृत करके गौरव प्राप्त करता है।
आचार्य दण्डी ने कहा भी है- "काव्यशोभाकरान् धर्मान् तरान् प्रचक्षते।" अर्थात् काव्य के शोभाकार धर्म, अलंकार होते हैं। अलकारों के बिना कविता रूपी नारी विधवा -सी लगती है।
अलंकारों के महत्त्व का कारण यह भी है कि इनके आधार पर भावों को व्यक्त करने में सहायता मिलती है तथा काव्य रोचक और प्रभावशाली बनता है। इससे अर्थ में भी चमत्कार पैदा होता है तथा अर्थ को समझना सुगम हो जाता है।
अलंकार के भेद:- प्रमुख रूप से अलंकार के दो भेद माने जाते है:--
(अ) शब्दालंकार
(ब) अर्थालंकार।
इन दोनों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है--
विशेष:-- इस पोस्ट के सबसे अंत में सी. बी.एस.ई. द्वारा निर्धारित कक्षा 9 एवं 10 के अलंकार-पाठ्यक्रम को भी स्पष्ट कर दिया गया है।
(अ) शब्दालंकार:--
"जब कुछ विशेष शब्दों के कारण काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है तो वह शब्दालंकार कहलाता है।" यदि इन शब्दों के स्थान पर उनके ही अर्थ को व्यक्त करनेवाला कोई दूसरा शब्द रखा जाए तो वह चमत्कार समाप्त हो जाता है।
उदाहरणार्थः-
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय ।
वा खाए बौराय जग, या पाए ही बौराय॥ -बिहारी जी
यहाँ 'कनक' शब्द के कारण जो चमत्कार है, वह पर्यायवाची शब्द रखते ही समाप्त हो जाएगा।
शब्दालंकार के भेद:---
1. अनुप्रास अलंकार:- जहाँ व्यंजनों की आवृत्ति ध्वनि-सौंदर्य को बढ़ाए, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। व्यंजनों की आवृत्ति एक विशेष क्रम से होनी चाहिए। सौंदर्य वर्धक व्यंजन शब्दों के प्रारंभ, मध्य या अंत में आने चाहिए।
अभिप्राय जहाँ एक वर्ण अथवा व्यंजन की आवृत्ति बार-बार होती है , वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरणताया:--
1. कल कानन कुंडल मोरपखा उर पै बनमाल विराजति है।
2. कालिंदी कूल कदंब को डारनि
स्पष्टीकरण:- इन उदाहरणों में 'क' वर्ण की आवृत्ति से सौंदर्य वृद्धि हुई है।
अन्य उदाहरणः--
1. कायर क्रूर कपूत कुचाली यों ही मर जाते हैं।
('क' की आवृत्ति)
2. मुदित महीपति मंदिर आए।
सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
( 'म' और 'स' की आवृत्ति)
3. कंकन किंकिन नुपूर धुनि सुनि कहत लखन सन राम हृदय गुनि
('क' तथा 'न' की आवृति)
4. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए
('त' की आवृति)
5. मधुर-मधुर मुस्कान मनोहर, मनुज पेश का उजियाला
('म' की आवृत्ति)
6. कानून कठिन भयंकर भारी पोर घाम वारि बयारी।
( 'क', 'र' तथा 'म' की आवृति)
7. चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही है जल पल में
('च' तथा 'ल' की आवृति)
8. मुदित महीपति मंदिर आए।
( 'म' की आवृति)
2. यमक अलंकार:-
'यमक' का शाब्दिक अर्थ है 'जोड़ा' 'वहै शब्द पुनि-पुनि परै अर्थ भिन्न ही भिन्न' अर्थात् जब कविता में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आता है किंतु हर बार अर्थ भिन्न होता है, वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरणार्थ
1. काली घटा का घमंड घटा
स्पष्टीकरण-
यहाँ 'घटा' शब्द दो बार आया है। दोनों जगह अर्थ में भिन्नता है। घटा- वर्षाकालीन घुमड़ती हुई बादलों की माला।
घटा- कम हुआ
अन्य उदाहरण:--
1. कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय।
या खाए बौराए जग या पाए बौराय ।।
2. माला फेरत युग भया, मिटा न मन का फेर
करका मनका दारि दे. मन का मनका फेर।।
3. जेते तुम तारे, तेरे नभ में न तारे हैं।
4. खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा।
5. पच्छी परछीने ऐसे परे पर छीने बीर
तेरी वर ने वर छीने है खलन के
3.श्लेष अलंकार:--
'श्लेष' का शाब्दिक अर्थ है-'चिपकना'। अतः जहाँ एक शब्द से दो या दो से अधिक अर्थ प्रकट होते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।उदाहरणतया:--
1. मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
यहाँ 'कलियाँ' शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है, किंतु इसमें अर्थ की भिन्नता है।
(क) खिलने से पूर्व फूल की दशा ।
(ख) यौवन-पूर्व की अवस्था ।
2. जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय ।
बारे उजियारो करै बढ़े अँधेरो होय ||
यहाँ ' बारे' और 'बढ़े' शब्दों में श्लेष है।
अन्य उदाहरण:--
1. 'रहिमन' पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
इस दोहे में 'पानी' के तीन अर्थ हैं-चमक, प्रतिष्ठा और जल ।
2. मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोइ ।
जा तन की झाँई परै स्यामु हरित दुति होय ।।
3. सुबरन को ढूँढ़े फिरत, कवि, व्यभिचारी चोर।
(ब) अर्थालंकार:---
"जहाँ काव्य में अर्थगत चमत्कार होता है, वहाँ 'अर्थालंकार' माना जाता है। इस आकार पर आधारित शब्दों के स्थान पर उनका कोई पर्यायवाची रख देने से भी अर्थगत सौन्दर्य में कोई अन्तर नहीं।
उदाहरणार्थः--
'चरण कमल बन्दौ हरिराई।'
यहाँ पर 'कमल' के स्थान पर 'जलज' रखने पर भी अर्थगत सौन्दर्य में कोई अन्तर नहीं पड़ेगा।
अर्थालंकार के भेद:--
4. उपमा अलंकार:--
उपमा का अर्थ है 'समानता'। जहाँ किसी वस्तु अथवा प्राणी के गुण, धर्म, स्वभाव और शोभा को व्यक्त करने के लिए उसी के समान गुण, धर्म वाली किसी अन्य प्रसिद्ध वस्तु अथवा प्राणी से उसकी समानता की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
जैसे- 'चाँद सा सुंदर मुख'।
उपमा अलंकार को समझने के लिए निम्नलिखित चार अंगों को समझना आवश्यक है
(क) उपमेय जिसकी उपमा दी जाए अर्थात् जिसका वर्णन हो रहा है, उसे उपमेय या प्रस्तुत कहते हैं। 'चाँद सा सुंदर मुख' में 'मुख' उपमेय है।
(ख) उपमान वह प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी जिससे उपमेय की समानता प्रकट की जाए, उपमान कहलाता है। उसे अप्रस्तुत भी कहते हैं। ऊपर के उदाहरण में 'चाँद' उपमेय है।
(ग) साधारण धर्म-उपमेय और उपमान के समान गुण या विशेषता व्यक्त करने वाले शब्द साधारण धर्म कहलाते हैं। ऊपर के उदाहरण में 'सुंदर' साधारण धर्म को बता रहा है।
(घ) वाचक शब्द जिन शब्दों की सहायता से उपमेय और उपमान में समानता प्रकट की जाती है और उपमा अलंकार -- की पहचान होती है उन्हें वाचक शब्द कहते हैं। सा, सी, सम, जैसी, ज्यों के समान आदि शब्द वाचक शब्द कहलाते हैं।
यदि ये चारों तत्त्व उपस्थित हो तो 'पूर्णोपमा' होती है; परंतु कई बार इसमें से एक या दो लुप्त भी हो जाते हैं, तब उसे 'सुप्तोपमा' कहते हैं।
पूर्णोपमा का उदाहरण:--
1. हाय फूल - सी कोमल बच्ची। हुई राख की थी ढेरी।
यहाँ 'फूल' उपमान, 'बच्ची' उपमेय, 'कोमल' साधारण धर्म तथा 'सी' वाचक शब्द है। अतः पूर्णोपमा अलंकार है।
2. रवि सम रमणीयमूर्ति राधा की
यहाँ 'राधा की मूर्ति' उपमेय, 'रति' उपमान, 'रमणीय' साधारण धर्म तथा 'सम' वाचक शब्द है। अतः पूर्णोपमा अलंकार है।
अन्य उदाहरणः-
1. पीपर पात सरिस मन डोला ।
2. मुख बाल रवि सम लाल होकर ज्वाला-सा बोधित हुआ।
लुप्तोपमा के उदाहरण :--
1. यह देखिए, अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे ।
यहाँ 'शिशुवृंद' उपमेय. 'अरविंद' उपमान तथा 'से' वाचक शब्द है। साधारण धर्म लुप्त है। अतः लुप्तोपमा अलंकार है।
2. पड़ी थी बिजली-सी विकराला
-यहाँ 'बिजली' उपमान, 'विकराल' साधारण धर्म तथा 'सी' वाचक शब्द है, परंतु 'उपमेय' लुप्त है। अतः लुप्तोपमा
अलंकार है।
अन्य उदाहरणः--
1. वह नव नलिनी से नयन वाला कहाँ है?
2. नदियाँ जिनकी यशधारा-सी.
बहती हैं अब भी निशि-बासर ।
3. मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला
4. असंख्य कीर्ति रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
5. जो नत हुआ, वह मृत हुआ, ज्यों वृत से झरकर कुसुम ।
6. सूरदास अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यों पागी।
5. रूपक:--
जहाँ गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाए, वहाँ रूपक अलंकार हो है। यह आरोप कल्पित होता है। इसमें उपमेय और उपमान में अभिन्नता होने पर भी दोनों साथ-साथ विद्यमान रहते हैं।
जैसे:--
1. चरण कमल बंदों हरिराई।
यहाँ सादृश्य के कारण उपमेय 'चरण' पर उपमान 'कमल' का आरोप कर दिया गया है। चरण पर कमल का आरोप कल्पित है। चरण वास्तव में कमल नहीं बन सकता, परंतु सादृश्य के कारण यहाँ चरण को कमल मान लिया गया है। दोनों की अभिनेता स्थापित होने पर भी दोनों साथ-साथ विद्यमान हैं, अतः रूपक अलंकार है।
2. मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहौं।
- यहाँ चंद्रमा (उपमेय) पर खिलौना (उपमान) का आरोप है।
अन्य उदाहरण:-
(क) सब प्राणियों के मत्तमनोमयूर अहा नचा रहा।
(ख) संत हंस गुन गहहिं पय, परिहर वारि विकार ।
(ग) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
(घ) सुख चपला-सा दुःख घन में,
उलझा है चंचल मन कुरंगा
(ङ) बीती विभावरी जागरी
अंबर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊपा नागरी ।
6. उत्प्रेक्षा:--
जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। दोनों वस्तुओं में कोई समान धर्म होने के कारण ऐसी संभावना करने के लिए कुछ शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जो वाचक शब्द कहलाते हैं,
यथा--मानो,मनो, मनु , मनहुँ, जानो, जनु आदि।
उदाहरण:-
कहती हुई यो उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए
प्रस्तुत पद्यांश में उत्तरा के अश्रुपूरित नेत्र उपमेय हैं, जिनमें कमल की पंखुड़ियों पर पढ़े हुए ओस-कणों को (उपमान को कल्पना की गई है। इसी प्रकार निम्नलिखित पंक्तियों में भी उत्प्रेक्षा अलकार देखा जा सकता है
उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा ।।
अन्य उदाहरण:--
• सोहत आहे पीत पट, श्याम सलोने गात
मनो नीलमणि सैल पर, आप पर प्रभात।।
प्रस्तुत दोहे में 'पीत पट' में 'नीलमणि सैल' पर 'प्रभात' के 'आप' के आरोप को 'मानो' शब्द द्वारा संभावना की गई।
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• पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के
मेघ आए बड़े वन-उन के सैंवर के।
अन्य उदाहरण
मानो मनो मम जानो जन आदि।
है. अतः उत्प्रेक्षा अलंकार है।
7. मानवीकरण:--
जहाँ जड प्रकृति या वस्तु पर मानवीय भावनाओं या क्रियाओं का आरोप हो, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है। सरल शब्दों में, जहाँ किसी अचेतन वस्तु को मानव की तरह गतिविधि करता दिखाया जाए. यहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण-1
मेघ आए बड़े बन-ठन के सैंवर के
स्पष्टीकरण -
यहाँ मेघों को सजा-सँवरा और बना उना दिखाया गया है।
उदाहरण-2
दिवसावसन का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या-सुंदरी परी -सी धीरे-धीरे
स्पष्टीकरण -
यहाँ संध्या को एक सुंदरी के रूप से धीरे-धीरे आसमान से उतरता हुआ दिखाया गया है। अतः मानवीकरण है।
अन्य उदाहरण
(क) खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा। लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी ।।
(ख) तनकर भाला यह बोल उठा
राणा मुझको विश्राम न दे
8. अतिशयोक्ति अलंकार:--
जहाँ वर्ण्य वस्तु (उपमेय) की लोक सीमा से बढ़कर प्रशंसा की जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है अतिशयोक्ति का शाब्दिक अर्थ होता है बढ़ा-चढ़ाकर कही गई उक्ति। इसमें किसी वस्तु का आवश्यकता से अधिक बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन होता है। यथा
उदाहरण:-
आगे नदिया पडी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार ।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ।।
राणा अभी सोच ही रहे थे कि घोड़ा नदी के पार हो गया। यह यथार्थ में असंभव है।
काव्य की इन पंक्तियों में राणा प्रताप के घोड़े की शक्ति और स्फूर्ति का वर्णन बढ़ा-चढ़ाकर किया गया है, अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।
अन्य उदाहरण:-
1. हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई. गए निसाचर भाग ।।
2. देख लो साकेत नगरी है यही
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही ।।
3. कढ़त साथ ही म्यान ते, असि रिपु तन ते प्रान।
यहाँ म्यान से तलवार का बाहर निकलना (कारण) और शत्रु के शरीर से प्राण का निकलना (कार्य) एक साथ होने के कारण अतिशयोक्ति अलंकार है।
--:अलंकार:--
----:कक्षा 9:---
1. शब्दालंकार
क. अनुप्रास अलंकार ख. यमक अलंकार
2. अर्थालंकार
क. उपमा अलंकार ख. रूपक अलंकार
----:कक्षा 10 :---
1. शब्दालंकार
क. श्लेष अलंकार
2. अर्थालंकार
क. उत्प्रेक्षा अलंकार ख. अतिशयोक्ति अलंकार
ग. मानवीकरण अलंकार
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