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संघ (RSS) प्रार्थना शुद्ध एवं सरलार्थ सहित/ SANGH PRARTHNA SHUDH EVAM SARALARTH SAHIT

संघ(RSS) प्रार्थना शुद्ध एवं सरलार्थ सहित/  SANGH PRARTHNA SHUDH EVAM SARALARTH SAHIT         राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना :-- राष्ट...


संघ(RSS) प्रार्थना शुद्ध एवं सरलार्थ सहित/ 

SANGH PRARTHNA SHUDH EVAM SARALARTH SAHIT      

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना :--

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना की रचना व प्रारूप सर्वप्रथम फरवरी 1939 में नागपुर के पास सिन्दी में हुई बैठक में तैयार किया गया। प्रार्थना बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  के आद्य सरसंघचालक डाॅक्टर केशव बलिराम हेडगेवार, श्री गुरूजी,श्री बाबासाहब आपटे, श्री बालासाहब देवरस, श्री अप्पाजी जोशी व श्री नानासाहब टालाटुले जैसे प्रमुख लोग सहभागी थे।

           --: संघ प्रार्थना :-- 

           (संधि नियमानुसार उच्चारण हेतु )

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, 

त्वया हिन्दुभूमे सुखवँ वर्धितोऽहम्। 

महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे ।

पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ॥१॥


प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता, 

इमे सादरन् त्वान् नमामो वयम्।

त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्, 

शुभामाशिषन् देहि तत्पूर्तये । 

अजय्याञ्च विश्वस्य देहीश शक्तिम्, 

सुशीलञ् जगद् येन नम्रम् भवेत् । 

श्रुतञ्चैव यत् कण्टकाकीर्णमार्गम्, 

स्वयम् स्वीकृतन नस् सुगङ्गारयेत् ॥२॥


समुत्कर्षनिश्श्रेयसस्यैकमुग्रम्, 

परम साधनन् नाम वीरव्रतम् ।

तदन्तस् स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा, 

हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राऽनिशम्। 

विजेत्री च नस् संहता कार्यशक्तिर,

विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्। 

परवँ वैभवन् नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम, 

समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ॥३॥

।। भारत माता की जय ।।




श्लोकानुसार अनुवाद:--

****************

हे वत्सलमयि मातृभूमि! मैं तुझे निरन्तर प्रणाम करता हूँ। हे हिन्दुभूमि! तूने ही मुझे सुख में बढ़ाया है। हे महामङ्गलमयि पुण्यभूमि। तेरे ही कारण मेरी यह काया (शरीर) अर्पित (समर्पित) हो। तुझे मैं अनन्त बार प्रणाम करता हूँ।

हे सर्वशक्तिमान् परमेश्वर! ये हम हिन्दुराष्ट्र के अंगभूत घटक, तुझे आदरपूर्वक प्रणाम करते हैं। तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है। उसकी पूर्ति के लिए हमें शुभ आशीर्वाद दे ॥ विश्व के लिए अजेय ऐसी शक्ति, सारा जगत् विनम्र हो ऐसा विशुद्ध शील (चरित्र) तथा बुद्धिपूर्वक स्वयं स्वीकृत हमारे कण्टकमय मार्ग को सुगम करे, ऐसा ज्ञान भी हमें दे ॥

अभ्युदय सहित निःश्रेयस् की प्राप्ति का वीरव्रत नामक जो एकमेव श्रेष्ठ उग्र साधन है, उसका हम लोगों के अन्तः करण में स्फुरण हो। हमारे हृदय में अक्षय तथा तीव्र ध्येयनिष्ठा सदैव जागृत रहे। तेरे आशीर्वाद से हमारी विजयशालिनी संगठित कार्यशक्ति स्वधर्म का रक्षण कर अपने इस राष्ट्र को परम वैभव की स्थिति पर ले जाने में अतीव समर्थ हो।

॥ भारत माता की जय ॥


प्रार्थना (अन्वय और शब्दार्थ):--

वत्सले मातृभूमे।= (ऐ) वात्सल्यमयी मातृभूमि ते= तुझे सदा= निरन्तर नमः= प्रणाम। हिन्दुभूमे हे हिन्दुभूमि! =त्वया= तेरे द्वारा अहम् - मैं सुख वर्धितः सुख में बढ़ाया गया हूँ  (वर्धितोऽहम्=वर्धितः+ अहम्) महामङले पुण्यभूमे= हे परम मंगलमयि पुण्यभूमि त्वदर्थे= (त्वत् अर्थ) तेरे लिए एषः= यह कायः= शरीर पततु= गिरे। नमस्ते नमस्ते= तुझे अनेक बार प्रणाम। (पतत्वेष= पततु एष) शक्तिमन् प्रभो= शक्तिमान् परमेश्वर हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता= (हिन्दुराष्ट्र अङ्गभूता) हिन्दुराष्ट्र के अंगभूत घटक इमे= ये वयम् = हम त्वाम्= तुझे सादरम्= आदर सहित नमामः= प्रणाम करते हैं।= त्वदीयाय= तेरे कार्याय= कार्य के लिए इयम= यह कटि= कमर (कटीयम्= कटि+ इयम्) बद्धा= बँधी है. तत्पूर्तये= उसकी पूर्ति के लिए शुभां आशिषम्= शुभ आशीर्वाद देहि= दे। ईश= हे ईश! विश्वस्य= विश्व के लिए अजय्याम्= जिसे जीतना अशक्य है (ऐसी) शक्तिम्= शक्ति देहि= दे (देहीश देहि ईश) येन= जिससे जगद्= जगत् नम्रम्= नम्र भवेत्= हो (ऐसा) सुशीलम्= अच्छा शील यत् जो स्वयं स्वीकृतम्= अपनी प्रेरणा से स्वीकृत किये हुए नः= हमारे कण्टकाकीर्णमार्गम्= कण्टकमय मार्ग को (कण्टक (काँटा) आकीर्ण+ (व्याप्त) सुगम् कारयेत्= सुगम करे (ऐसा) श्रुतम्= ज्ञान चैव= (च +एव) भी (देहि दे) समुत्कर्षनिः श्रेयसस्य= समुत्कर्ष और नि श्रेयस का (समुत्कर्ष ऐहिक और पारलौकिक कल्याण निःश्रेयस मोक्ष) एकं पर उम्र साधनम्= एकमात्र परम उम्र साधन (जो) वीरव्रतं नाम= वीरव्रत नामक (है) तत्= वह अन्तः =अन्तःकरण में स्फुरतु= स्फुरित हो। अक्षया= क्षीण न होने वाली (स्फुरत्वक्षया स्फुरत+ अक्षया) तीव्रा= तीव्र ध्येयनिष्ठा= ध्येय के प्रति निष्ठा अनिशम्= नित्य हृदन्तः= हृदय में (इत् + अन्तः) प्रजागर्तु= जाग्रत रहे विजेत्री= विजयशालिनी च= और न:= हमारी संहता= संगठित कार्यशक्तिः= कार्यशक्ति अस्य= इस धर्मस्य= धर्म का संरक्षणम्= संरक्षण विधाय= करते हुए (विधायास्य विधाय अस्प) एतत्= इस  स्वराष्ट्रम= हमारे राष्ट्र को परं वैभवम्= परम वैभव को स्थिति में नेतुम= ले जाने के लिए ते=तेरे आशिषा= आशीर्वाद से भृशम्= प्रचुर समर्था= समर्थ भवतु= हो (भवत्वाशिषा= भवतु +आशिषा)।  

🙏

राजेश राष्ट्रवादी




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