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संस्कृत की महत्त्वपूर्ण उक्तियाँ / सूक्तियाँसंस्कृत की महत्त्वपूर्ण उक्तियाँ / सूक्तियाँ/SANSKRIT KI MAHTAVPURN UKTIYAN/ SUKTIYAN

संस्कृत की महत्त्वपूर्ण उक्तियाँ / सूक्तियाँ:-- SANSKRIT KI MAHTAVPURN UKTIYAN/ SUKTIYAN यहाँ हम विश्व की प्राचीनतम भाषा संस्कृत  की कुछ महत...

संस्कृत की महत्त्वपूर्ण उक्तियाँ / सूक्तियाँ:--

SANSKRIT KI MAHTAVPURN UKTIYAN/ SUKTIYAN



यहाँ हम विश्व की प्राचीनतम भाषा संस्कृत 

की कुछ महत्त्वपूर्ण उक्तियाँ/ सूक्तियाँ दे रहे 

 हैं ।

(1) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी 

= जननी तथा जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है अथवा जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान् है । 

(2 ) उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् 

= उदार चरित्रवालों के लिए संसार ही परिवार है । 

( 3) अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति । 

=बिना चले गरुड़ भी एक पग नहीं चलता है अर्थात् बिना परिश्रम शक्तिमान भी कुछ नहीं कर सकता 

( 4) शीलं हि सर्वस्य नरस्य भूषणम् । 

= शील ही सभी मनुष्यों का आभूषण है । 

(5) बुभुक्षितः किं न करोति पापम् ? 

= भूखा क्या पाप नहीं करता ? 

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(6 ) शठे शाठ्यं समाचरेत् 

= दुष्ट के साथ दुष्टता करनी चाहिए । 

(7 ) शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् । 

= शरीर ही धर्म का सबसे पहला साधन है । 

(8 ) अहिंसा परमो धर्मः । 

= अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है ।  

( 9) सुलभा रम्यता लोके दुर्लभो हि गुणार्जनम् । 

= संसार में सुन्दरता तो सरलता से मिल जाती है , किन्तु गुण ग्रहण करना कठिन है । 

(10 ) महाजनो येन गतः सो पन्थाः । 

= महान् पुरुष जिस मार्ग से गए हैं , वही श्रेष्ठ मार्ग है।

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(11)महाजनो येन गतः सो पन्थाः । 

= महान पुरुष जिस मार्ग से गए हैं , वही श्रेष्ठ मार्ग है । 

(12) आत्मज्ञानं परमज्ञानम् । 

= अपने को पहचानना ही सबसे बड़ा ज्ञान है । 

(13 ) ज्ञानमेव परमो धर्मः । 

= ज्ञान ही सबसे बड़ा धर्म है ।

(14) स्वाध्यायान् मा प्रमदः 

=अध्ययन में आलस्य न करो । 

(15 ) अति सर्वत्र वर्जयेत् । 

= किसी भी प्रकार की अति का परित्याग कर देना चाहिए । 

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(16 ) मा ब्रूहि दीनं वचः । 

= दीन वचन न बोलो । 

(17) मानो हि महतां धनम् 

= मान ही पुरुषों का धन है ।  

(18 ) वीरभोग्या वसुन्धरा  

= वीर ही पृथ्वी का उपभोग करते हैं । 

(19) वचने का दरिद्रता ? 

=मधुर बोलने में क्या दरिद्रता दिखाना ?  

( 20 ) नास्ति कोषसमो रिपुः । 

= क्रोध के समान कोई शत्रु नहीं ।

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(21) शत्रोरपि गुणा वाच्याः ।

=शत्रु के भी गुणों को कहना चाहिए ।  

( 22) गतस्य शोचनं नास्ति । 

=बीती ताहि बिसार दे । 

( 23 ) विनाशकाले विपरीत बुद्धिः । =

 =बुरे दिन आने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है ।  

( 24 ) आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ।  

=भोजन तथा व्यवहार में लज्जा त्यागनेवाला सुखी होता है। 

( 25) सत्यमेव जयते नाऽनृतम् ।  

=सत्य की जीत होती है , झूठ की नहीं । 

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( 26 ) कः परः प्रियवादिनाम् । 

= प्रिय बोलनेवालों के लिए पराया कौन है ? 

( 27 ) परोपकाराय सतां विभूतयः । 

=सज्जनों का धन दूसरों की भलाई के लिए होता है । 

( 28 ) विद्यारलं महाधनम् । 

= विद्यारूपी रत्न सबसे बड़ा धन है । 

( 29 ) गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । 

=गुरु ब्रह्मा - विष्णु - महेश के समान हैं । 

( 30 ) सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामयाः । 

=सभी सुखी हों , सभी नीरोग हों । 

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( 31 ) उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः । 

=कार्य परिश्रम करने से पूर्ण होता है , मनोरथ करने से नहीं 

(32) दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति । 

=भाग्य देता है , ऐसा कायर कहते हैं , अथवा भाग्य के भरोसे कायर पुरुष रहते हैं । 

( 33 ) यत्ने कृते यदि न सिद्ध्यति कोऽत्र दोषः । 

= यदि प्रयत्न करने पर भी सफलता न मिले तो देखना चाहिए कि दोष कहाँ है । 

( 34) न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते । 

= ज्ञान के समान इस संसार में और कुछ पवित्र नहीं है । 

( 35 ) भोगो भूषयते धनम् । 

= धन की शोभा उसका उपभोग करने में है । 

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( 37 ) विद्या धर्मेण शोभते ।

= विद्या धर्म से शोभा पाती है । 

( 36 ) सम्पूर्णकुम्भो न करोति शब्दम् । 

= भरा हुआ घड़ा आवाज नहीं करता । 

( 38 ) सन्तोष एव पुरुषस्य परं निघानम् । 

= सन्तोष मनुष्य का सबसे बड़ा धन है । 

( 39) वस्तु क्रियावान् पुरुषः सः एव 

= जो क्रियाशील है , वही पुरुष है । 

( 40 ) मातृवत् परदारेषु 

=दूसरे की स्त्री माँ के समान है । 

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