साक्षरता अभियान का महत्व प्रस्तावना:-- आज पूरे देश में साक्षरता का अभियान चलाया जा रहा है। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। इस क्ष...
साक्षरता अभियान का महत्व
अंग्रेजी की एक कहावत है." मूर्खता में ही परमानंद है।" इसका तात्पर्य है कि मूर्ख और अज्ञानी व्यक्ति को किसी प्रकार की चिंता व्याप्त श्री होतो न ही उन्हें कुछ सोचने-समझने की आवश्यकता पड़ती है। महात्मा तुलसीदास ने भी इसी भाव की पंक्तियाँ कहाँ हैं-
"सब तें भले विमूढ़, जिन्हें न व्यापै जगत गति। "
अर्थात सबसे अच्छे मूर्ख होते हैं जिन्हें सांसारिक दुःख-सुख या चिंताएँ नहीं सतातीं।
वास्तव में ये सब बातें व्यंग्यात्मक ढंग से कही गई है। निरक्षर या अनपढ़ होना मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। निरक्षर व्यक्ति ज्ञान-विज्ञान के विशाल भंडारों से वंचित रह जाता है। साहित्य और कलाओं का सुरम्य संसार उसकी पहुँच से बाहर हो जाता है। निरक्षर व्यक्ति इस संसार में उस अंधे के समान जीवित रहता है जिसके मार्ग में मोती बिखरे रहते हैं, परंतु वह उन्हें देखने में असमर्थ रहता है क्योंकि उसकी आँखों में ज्ञान की ज्योति नहीं होती। निरक्षर व्यक्ति का जीवन वैसा ही है जैसे पंखहीन पक्षी और जल के बिना मछली।
निरक्षर व्यक्ति के सामने कठिनाईयाँ:--
निरक्षर व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। एक निरक्षर कृषक खेती के नए-नए तरीकों के विषय में नहीं जान सकता निरक्षर व्यक्ति प्रायः नए आविष्कारों को अपनाने में हिचकता है। गाँव में उसे पटवारी लूटता है और शहर में उसे व्यापारी लूटता है। निरक्षर माँ को बच्चा भी मूर्ख बनाता है और उसे अपनी पढ़ाई-लिखाई के विषय में गलत सूचनाएँ देकर खुश करता है। घर में दूर पहुँचाने वाला ग्वाला, कपड़ों की धुलाई करने वाला धोबी या सब्जी बेचने वाली कुंजनि अनपढ़ नारी को सहज ही छल सकते हैं। निरक्षर व्यक्ति यदि पिता है तो अपने बच्चों से या पत्नी से पत्र व्यवहार नहीं कर सकता और न ही अपने लिए किसी पत्र को पढ सकता है। समाचार-पत्रों या पत्रिकाओं को पढ़ने का अवसर भी उसे नहीं मिलता और इस प्रकार निरक्षर व्यक्ति आधी अधूरी जिंदगी जीता है।
शिक्षा-विहीन व्यक्ति सींग और पूँछ रहित पशु के समान होता है। शिक्षा मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाती है। मनुष्य के भीतर विकास की जो संभावनाएँ रहती हैं उन्हें विकसित करना ही शिक्षा का मुख्य कार्य है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य न अपने लिए और न ही समाज के लिए उपयोगी हो पाता है। मानव सभ्यता का विकास, शिक्षा का विकास भी है प्राचीनकाल में शिक्षा में गुरु तथा ग्रंथ का अधिक महत्व रहता था। गुरुजनों ने जो सत्य उपलब्ध किया उसे वह शिष्यों तक पहुँचाना अपना कर्त्तव्य समझते थे। पुस्तकीय ज्ञान को विद्यार्थियों के मस्तिष्क में ठूस देना ही शिक्षा का मुख्य लक्ष्य स्वीकार नहीं किया जा सकता। शिक्षा की आधुनिकतम पद्धतियाँ मनोविज्ञान पर आधारित हैं।
शिक्षा का उद्देश्य मानव का सर्वांगीण विकास करना है :-- शिक्षा का लक्ष्य है- संस्कार देना। साक्षरता अभियान संकुचित अर्थ में नहीं लिया जा सकता। हमारे मुनियों ने शिक्षा का अर्थ मानव का सर्वागी विकास माना है। मनुष्य के शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक विकास में योगदान देना शिक्षा का मुख्य कार्य है। शिक्षित व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहता है। स्वच्छता को जीवन में महत्व देता है और उन सब बुराइयों से दूर रहता है जिनसे स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है। रुग्ण शरीर के कारण शिक्षा में बाधा पड़ती है। शिक्षा हमारे ज्ञान का विस्तार करती है। ज्ञान का प्रकाश जिन खिड़कियों से प्रवेश करता है, उन्हीं से अज्ञान और रूढ़िवादिता का अंधकार निकल भागता है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य अपने परिवेश को पहचानने और समझने में सक्षम होता है। विश्व में ज्ञान का विशाल भंडार है उसे हम शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त कर सकते हैं। सृष्टि के रहस्यों को खोलने की कुंजी शिक्षा ही है।
अशिक्षित व्यक्ति रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं कुरीतियों का शिकार हो सकता है। शिक्षा हमारी भावनाओं का संस्कार भी करती है। साहित्य और कलाओं से हमारी संवेदनशीलता तीव्र होती है। शिक्षा हमारे दृष्टिकोण को उदार बनाती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य मानव का सर्वांगीण विकास करना है।
निरक्षरता मिटाने के उपाय :--
निरक्षरता को मिटाने के लिए युद्ध स्तर पर अभियान चलाने की आवश्यकता है। भारत में निरक्षरता बढ़ने के अनेक कारण हैं। ऐतिहासिक दूर से देखें तो उच्च वर्ग के लोगों ने निम्न जातियों के लोगों को पढ़ने-लिखने के अधिकार से वंचित कर दिया था। अब स्त्रियों को भी धीरे-धीरे रिट से वंचित किया जाने लगा। इस प्रकार हमारे समाज का बड़ा हिस्सा निरक्षर ही रह गया। हमारी शिक्षा अधिकतर धर्माश्रित थी और मंदिरों-मस्जिदों पर आश्रित थी। इसलिए भी वह दैनिक जीवन की आवश्यकताओं से कटी रही। अंग्रेजों ने भी जिस शिक्षा को चलाया वह भी शहरों तक थी। भारतीयों की निर्धनता भी उनको निरक्षरता का प्रमुख कारण रही है।
उपसंहार:-- साक्षरता अभियान केवल सरकार के सहारे नहीं चल सकता। बड़ी उम्र के नर-नारियों को शिक्षा पाने के लिए प्रेरित करना आसान नहीं है। इस कार्य के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं को आगे आना चाहिए। शिक्षित युवकों को साक्षरता अभियान अपने हाथ में लेना चाहिए।
वैज्ञानिक प्रगति ने संसार की सीमाओं को बहुत छोटा कर दिया है। प्रगति की दौड़ आरंभ हो चुकी है। विश्व के इस बदलते परिदृश्य में भारत का किसी भी रूप में पिछड़ा रहना स्वीकार नहीं किया जा सकता। साक्षर लोग ही आगे बढ़ने का संकल्प हो सकते हैं। अतः साक्षरता अभियान की प्रासंगिकता स्पष्ट हो जाती है। फिर शिक्षित एवं साक्षर लोग ही प्रजातंत्र को सफल बना सकते हैं। साक्षरता अभियान एक व्यापक दृष्टिकोण है जिसकी सफलता स्वर्णिम भविष्य की ओर इंगित करती है।
🇮🇳 राजेश राष्ट्रवादी
🙏
ReplyDeleteशिक्षा का धन है सबसे न्यारा,
कभी न होता इसका बंटवारा।