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कक्षा-11, आरोह भाग-1, हे भूख! मत मचल ,हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर, सप्रसंग व्याख्या,प्रश्नोत्तर

  कक्षा-11,  आरोह भाग-1,   हे भूख! मत मचल , हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर, सप्रसंग व्याख्या, प्रश्नोत्तर **********************************...



 कक्षा-11, 

आरोह भाग-1,  

हे भूख! मत मचल ,

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर, सप्रसंग व्याख्या,

प्रश्नोत्तर

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        हे भूख! मत मचल 

         कवयित्री:-- अक्क महादेवी

हे भूख! मत मचल प्यास, तड़प मत

हे नींद ! मत सता

क्रोध, मचा मत उथल-पुथल

हे मोह ! पाश अपने ढील

लोभ, मत ललचा

हे मद! मत कर मदहोश

ईर्ष्या, जला मत

ओ चराचर! मत चूक अवसर

आई हूँ संदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का।

प्रसंग:-- प्रस्तुत पंक्तियाँ शैव आंदोलन से जुड़ी कवयित्री अक्क महादेवी द्वारा रचित हैं। उनके इस वचन का अनुवाद केदारनाथ सिंह ने किया है। अक्क महादेवी चन्नमल्लिकार्जुन (शिव) की भक्त है। यहाँ उन्होंने मनुष्य को इंद्रियों पर नियंत्रण रखने का संदेश दिया है।

व्याख्या:-- कवयित्री अक्क महादेवी इंद्रियों से आग्रह कर रही है कि वे मानव को न सताएँ। आत्मा और परमात्मा के मिलन में वे बाधा न बनें, इंद्रियों से यही आग्रह करते हुए वे कहती हैं-हे भूख! तू मचलना छोड़ दे और हे प्यास! तू तड़पना छोड़ दे। क्योंकि मानव भूख और प्यास से व्याकुल होकर ही उचित-अनुचित का भेद भूलकर बुरे कार्यों की ओर अग्रसर होता है। है नींद तू मानव को सताना छोड़ दे। नींद से ही आलस्य की उत्पत्ति होती है और मानव ईश्वर प्राप्ति का मार्ग भूल जाता है। हे क्रोध तू मानव के हृदय में उथल-पुथल मचाना छोड़ दे क्योंकि क्लोप के बस में होकर मानव स्वयं ही विनाश के पथ पर चरण बढ़ा लेता है। है मोह! तू मनुष्य को फँसाने के लिए बनाए गए बंधनों को ढीला कर दे। मोह में फँसकर ही मानव दूसरे मानव का अहित करने में भी संकोच नहीं करता है लोभ! तू मानव को ललचाना छोड़ दे। लालच मनुष्य को संतुष्टि से बहुत दूर ले जाता है। है अहंकार तू मनुष्य को मदहोश करना छोड़ दे। तेरे बस में होकर मनुष्य स्वयं ही अज्ञान के मार्ग पर चलकर होश खो बैठता है। ईर्ष्या! तू मनुष्य को जलाना छोड़ दे क्योंकि ईर्ष्या के वशीभूत हुआ मानव न केवल दूसरों की प्रगति देख जलता है बल्कि वह तो स्वयं अपने-आप को जलाता है। कवयित्री सृष्टि के चर-अचर, जड़-चेतन प्राणियों को संबोधित करती है कि अभी भी तुम्हारे पास अवसर है। इस मौके को गँवाओ मत। मैं बन्न मल्लिकार्जुन का संदेश लेकर तुम्हारे पास आई हूँ। अर्थात यदि तुम चन्न मल्लिकार्जुन की प्राप्ति करना चाहते हो तो इंद्रियों को अपने वश में करो न कि स्वयं को इंद्रियों के वशीभूत कर दो। कवयित्री यहाँ संदेश देना चाहती है कि इंद्रियों को जीतकर ही मानव चन्न मल्लिकार्जुन की शरण प्राप्त कर सकता है इंद्रियों की दासता उसे ईश्वर से दूर करती है।

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  हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर 

        कवयित्री:-- अक्क महादेवी

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

मँगवाओ मुझसे भीख 

और कुछ ऐसा करो 

कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह 

झोली फैलाऊँ और न मिले भीख 

कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को 

तो वह गिर जाए नीचे 

और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने 

तो कोई कुत्ता आ जाए 

और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

प्रसंग:-- प्रस्तुत पंक्तियाँ अक्क महादेवी द्वारा रचित हैं। अक्क महादेवी शैव आंदोलन से जुड़ी हैं। उनके इस वचन का अनुवाद केदारनाथ सिंह ने किया है। अक्क महादेवी चन्नमल्लिकार्जुन की भक्त हैं। यहाँ उनका अपने आराध्य के प्रति अनन्य समर्पण भाव अभिव्यक्त हुआ है। अपने आराध्य के लिए वे भौतिक वस्तुओं से अपनी झोली को खाली रखना चाहती हैं। वे अहंकार विहीन होकर ईश्वर की प्राप्ति करना चाहती हैं।

व्याख्या:-- कवयित्री अक्क महादेवी सभी भौतिक वस्तुओं को छोड़कर ईश्वर की प्राप्ति करना चाहती है। इसलिए वे ईश्वर से आग्रह करती हैं जूही के फूल के समान ईश्वर! तुम ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करो कि जिनमें मेरे पास भौतिक सुख-साधन न बचें। मुझे भीख माँगनी पड़े। कवयित्री को पता है कि जब सुख-साधन नहीं रहेंगे तो मोह, अहंकार स्वयं ही नष्ट हो जाएँगे और ईश्वर प्राप्ति में बाधा नहीं आएगी। कवयित्री अपने ईश्वर को जूही के फूल के समान मानती हैं उनके अनुसार जिस प्रकार जूही का फूल अपनी खुशबू से लोगों को आनंद देता है उसी प्रकार ईश्वर लोगों का कल्याण करता है। कवयित्री ईश्वर से आग्रह करती हैं—हे ईश्वर! कुछ इस प्रकार की परिस्थितियाँ बनाओ कि मैं अपने घर को पूरी तरह भूल जाऊँ। कवयित्री चाहती हैं कि सांसारिक घर को भूल जाएँ जो कि लोभ का मूल हैं। उन्हें केवल ईश्वरीय घर ही याद रहे जहाँ उसका आराध्य निवास करता है। कवयित्री ईश्वर के प्रति समर्पण भाव रखती हुई कह उठती है कि जब भीख के लिए झोली बढ़ाएँ तो उन्हें भीख भी न मिले। यहाँ कवयित्री का डर मुखर हुआ है कि कहीं भीख में मिलनेवाले पदार्थ से उत्पन्न लोभ उन्हें ईश्वर से विमुख न कर दे। इसलिए वे चाहती हैं कि ईश्वर ऐसा कुछ करे कि उन्हें भीख भी न मिले। यदि कोई उन्हें कुछ देने के लिए हाथ बढ़ाए तो उसके द्वारा दिया गया पदार्थ नोचे गिरकर व्यर्थ हो जाएँ। कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती है कि यदि लोभवश वे नीचे गिरे पदार्थ को उठाने के लिए नीचे झुक भी जाएँ तो भगवान करे कि कोई कुत्ता वहाँ आकर उस पदार्थ को छीनकर उससे ले जाए। यहाँ कवयित्री के समर्पण भाव की पराकाष्ठा दिखाई देती है। वे ईश्वर को पाने के लिए लोभ, मोह, अहंकार को त्याग देना चाहती हैं। इसलिए वे भगवान से सहायता माँगती हैं कि वे ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करें कि कवयित्री के मन में लोभ, मोह, अहंकार जैसे तत्व पैदा ही न होने पाएँ। वे सच्चे मन से ईश्वर को याद करते हुए उनमें समा जाएँ।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

कविता के साथ

प्रश्न 1. लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियों बाधक होती है-इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए।

उत्तर:--  मनुष्य जब भी कोई लक्ष्य सोचता है तो उसकी प्राप्ति के लिए इंद्रियों को वश में रखना परम आवश्यक है। इंद्रियों मानव कोर चाहते हुए भी आकर्षित कर ही लेती हैं। मानव को बुद्धि के उचित प्रयोग से हित-अहित का ध्यान कर इंद्रियों पर लगाम लगाकर अपना लक्ष्य साधना पड़ता है, तभी सफलता के द्वार उसके लिए खुलते हैं। यदि मनुष्य इंद्रियों के अधीन होकर कार्य करता है तो वह लक्ष्य से भटक जाता है। मनुष्य का लक्ष्य चाहे ईश्वर-प्राप्ति हो या कि अन्य सांसारिक लक्ष्य को प्राप्ति प्रत्येक लक्ष्य की प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक बनती हैं परंतु बुद्धि द्वारा सोच-विचार कर इंद्रियों को वश में करके सफलता पाई जाती है। हमारे मु वेद और ग्रंथों द्वारा भी हमें इसी प्रकार की शिक्षा मिलती है।

प्रश्न 2.  ओ चराचर! मत चूक अवसर पक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:--इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री सांसारिक जड़-चेतन सभी से ईश्वर की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने का आग्रह कर रही है। कवयित्री का कहना है कि अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा। अभी भी चराचर प्राणियों के पास ईश्वर-प्राप्ति का समय है। यदि ह निकल गया तो पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा। जीव इंद्रियों को वश में करके ईश्वर की ओर उन्मुख हो सकता है। दि मानव सांसारिक बंधनों में फँसा रहा तो ईश्वर प्राप्ति का अवसर हाथ से छूट जाएगा और फिर पछतावा ही रह जाएगा।

प्रश्न 3. ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है? ईश्वर और उसके साम्य का आधार लिखिए।

उत्तर:--ईश्वर के लिए जूही के फूल 'दृष्यंत' का प्रयोग किया गया है। जूही के फूल की गंध अनुभव की जाती है पर यह दिखाई नहीं देता। के भी दर्शन नहीं होते पर उनका प्रभाव सर्वत्र अनुभव किया जाता है। जूही का फूल बिना माँगे सुगंध देता है और अपने आप हर प्राणी का जीवन जीने के लिए शक्ति प्रदान कर देता है।

 प्रश्न 4. अपना घर से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?

उत्तर:-- 'अपना घर' से अक्क महादेवी का तात्पर्य सगे-संबंधियों से युक्त घर से है। इसे भूल जाने की बात कवयित्री को वैराग्य भावना को और संकेत करती है। कवयित्री को घर के लोगों और घर से जुड़ी वस्तुओं से मोह हो जाने का डर है। यदि यह मोह में पड़ जाएगी तो ईश्वर के प्रति एकचित्त नहीं हो पाएगी और ईश्वर से दूर हो जाएगी ईश्वर के प्रति अपनी अनन्यता के लिए वह मोह के प्रत्येक बंधन को दो देना चाहती है इसी कारण वह अपने घर को भूल जाना चाहती है। घर को भूलने के लिए शक्ति भी वह ईश्वर से ही माँगती है। यह प द्वारा उनके प्रति एकाग्रचित्त होना चाहती है।

प्रश्न-5. दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है ?

उत्तर :-- दूसरे वचन में कवयित्री ईश्वर से यह कामना करती है कि वह उसे दिए गए सारे सुख-साधन छीन ले कोई भी ऐसी वस्तु उसके पास न रहे जिससे लेशमात्र की लोभ, लालच की भावना कवयित्री के हृदय में व्याप्त हो कवयित्री मोह रहित होकर संपूर्ण अर भाव से अपने आराध्य की प्राप्ति करना चाहती है। यहाँ कवयित्री के वचन में विशेषता यह है कि वह स्वयं एकाग्रचित होने के लिए ईश्वर से ही ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करने का आग्रह करती है। वह चाहती है कि जब कभी ऐसी परिस्थितियाँ उसके जीवन में आईं जब उसके हृदय में सांसारिक तत्वों के प्रति मोह की भावना जगने की संभावना हो तो उसी समय ईश्वर ऐसी स्थितियों उत्पन्न करे जिससे मोह का तत्क्षण विनाश हो जाए।

कविता के आस-पास

प्रश्न. क्या अक्क महादेवी को 'कन्नड़ की मीरा' कहा जा सकता है? स्पष्ट करके लिखिए। 

उत्तर:-- अक्क महादेवी के वचनों में अपने आराध्य के प्रति उसी एकनिष्ठता का भाव दृष्टिगोचर होता है जैसी निष्ठता मीरा के पदों में कृष्ण के प्रति दिखाई देती है। मीरा की वाणी सांसारिक वस्तुओं से विरक्त अपनी भक्ति की ओर लीन है। उसी प्रकार अक्क महादेवी के वचनों में भी उनकी चन्नमल्लिकार्जुन के प्रति भक्ति भावना तथा सांसारिक पदार्थों के प्रति विरक्ति का आभास मिलता है। अक्क महादेवी ईश्वर की अनुकंपा के लिए ऐसी स्थितियों की कामना करती है जिनमें उनके अहंकार और मोह का समूल नाश हो जाए और आराध्य के प्रति उनकी भक्ति प्रगाढ़ हो जाए।



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