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कक्षा - 8, रूचिरा भाग-3 ,चतुर्दशः पाठ:, आर्यभट:

कक्षा - 8,  रूचिरा भाग-3 , चतुर्दशः पाठ:,  आर्यभट:                                     आर्यभट:   पाठ का सार:-- प्रस्तुत पाठ में भारत के प्र...


कक्षा - 8, 

रूचिरा भाग-3 ,

चतुर्दशः पाठ:, 

आर्यभट:                        

            आर्यभट: 

पाठ का सार:--

प्रस्तुत पाठ में भारत के प्रसिद्ध विद्वान् 'आर्यभट के जीवन के विषय में बताया गया है। इन्होंने संसार को पृथ्वी के गतिशील होने का सिद्धान्त दिया था। दशमलव पद्धति आदि का प्रथम प्रयोग इन्होंने ही किया था इन्होंने गणित में तथा ज्योतिषशास्त्र अनेक सिद्धांत देकर इन्हें नयी दिशा प्रदान की। ग्रह नक्षत्रों की गति का अध्ययन करने वाले ये प्रथम आचार्य थे।

                     पाठ का अनुवाद

1. पूर्वदिशायाम् उदेति सूर्यः पश्चिमदिशायां च अस्तं गच्छति इति दृश्यते हि लोके । परं न अनेन अवबोध्यमस्ति यत्सूर्यो गतिशील इति सूर्योऽयतः पृथिवी च चला या स्वकीये अक्षे पूर्णति इति साम्प्रतं सुस्थापितः सिद्धान्तः सिद्धान्तोऽयं प्रायम्येन येन प्रवर्तितः, स आसीत् महान् गणिततः ज्योतिर्विष्य आर्यभटः। पृथिवी स्थिरा वर्तते इति परम्परया प्रचलिता रूढिः तेन प्रत्यादिष्टा तेन उदाइतं यद् गतिशीलायां नौकायाम् उपविष्टः मानवः नौकां स्थिरामनुभवति, अन्यान् व पदार्थान् गतिशीलान् अवगच्छति। एवमेव गतिशीलायां पृथिव्याम् अवस्थितः मानवः पृथिवीं स्थिरामनुभवति सूर्यादिग्रहान् च गतिशीलान् वेति ।

शब्दार्या:- 

उदेति              =उदय होता है-rises

अवयोययम्जा  =नने समझने योग्य- worth understanding

अचल:            = स्थिर-stationary 

घूर्णति            =घूर्णन करती है- revolves

प्राथम्येन         = सबसे पहले first of all

प्रवर्तितः          = चलाया गया pro pounded 

रूढ़ि               = प्रचलित प्रथा/ रिवाज-tradition 

ज्योतिर्विद       =ज्योतिषी - trologer

प्रत्यादिष्टा        = खण्डन किया-discarded

उदाहृतम्उ       = दाहरण दिया गया -gave an example, 

अवगच्छति     = जान पड़ते हैं / लगते हैं-thinks

अवस्थितः      = रहकर -living

वेत्ति              = मानते हैं-think 

अनुवाद:---सूर्य पूर्व दिशा में उदित होता है और पश्चिम दिशा में अस्त होता है, संसार में यही दिखाई देता है। परंतु यह जानने योग्य बात नहीं है कि सूर्यगतिशील है। सूर्य स्थिर है और पृथ्वी चलती है, जो अपने अक्ष पर घूमती है अब यही सिद्धांत भली-भांति स्थापित है। यह सिद्धांत सबसे पहले जिसके द्वारा दिया गया, वह ये महान गणित और ज्योतिषी 'आर्यभट' पृथ्वी स्थिर है परम्परा में प्रचलित इस रिवाज का उनके द्वारा खण्डन किया गया। इसके लिए उन्होंने उदाहरण दिया कि चलती हुई नाव में बैठा मनुष्य नाव को रुका हुआ महसूस करता है, और अन्य पदार्थों को चलता हुआ मानता है। ऐसे ही यह है कि गतिशील पृथ्वी पर रहकर मनुष्य पृथ्वी को स्थिर महसूस (अनुभव करता है और सूर्य आदि ग्रहों को गतिशील मानता है।

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2. 476 तमे खिस्ताब्दे (पट्सप्तत्यधिकः शततमे वर्षे) आर्यभटः जन्म सब्धवानिति तेनैव विरधिते 'आर्यभटीयम्' इत्यस्मिन् ग्रन्वे उल्लिखितम् । ग्रन्योऽयं तेन त्रयोविंशतितमे वर्यास विरचितः । ऐतिहासिकस्रोतोभिः ज्ञायते यत् पाटलिपुत्रं निकषा आर्यभटस्य देपशाता आसीत् । अनेन इदम् अनुमीयते यत् तस्य कर्मभूमिः पाटलिपुत्रमेव आसीत्

शब्दार्थाः-

तब्धवान्          = प्राप्त हुआ-obtained, got 

उल्लिखितम्     = उल्लेख किया गया-described 

त्रयोविंशति       = तेईस-twenty three

तेनैव               = उसके द्वारा ही by him alone. 

वयसि             = आयु में at the age of 

स्रोतोभि:         = सूत्रों के द्वारा through sources

वेधशाला         = ग्रह, नक्षत्रों को जानने की प्रयोगशाला - (knowabout) planet and constellations.

अनुवाद:---सन् 176 वर्ष में आर्यभट का जन्म हुआ, ऐसा उनके द्वारा रचित 'आर्यभटीयम्' ग्रन्थ में लिखा हुआ है। इस ग्रन्थ को उनके द्वारा तेईस वर्ष की आयु में रचा गया। ऐतिहासिक सूत्रों से यह ज्ञात होता है कि पाटलिपुत्र के निकट आर्यभट की ग्रह, नक्षत्रों के जानने की प्रयोगशाला थी। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि उनकी कर्मभूमि (कार्यक्षेत्र) पाटलिपुत्र में ही थी।

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3. आर्यभटस्य योगदानं गणितज्योतिषा सम्बद्धं वर्तते यत्र संख्यानाम् आकलन महत्त्वम् आदधाति । आर्यभटः फलितज्योतिषशास्त्रे न विश्वसिति स्म । गाणितीयपद्धत्या कृतम् आकलनमावृत्य एव तेन प्रतिपादितं यद् ग्रहणे राहुकेतुनामको दानवो नास्ति कारणम् । तत्र तु सूर्यचन्द्रपृथिवी इति श्रीणि एव कारणानि। सूर्य परितः भ्रन्त्याः पृथिव्याः, चन्द्रस्य परिक्रमापवेन संयोगाद् ग्रहणं भवति । यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते तदा चन्द्रग्रहणं भवति । तवेव पृथ्वीसूर्ययोः मध्ये समागतस्य चन्द्रस्य छायापातेन सूर्यग्रहणं दृश्यते ।

शब्दार्थाः- 

आकलनम्            = गणना calculation

आदयाति              = रखा है-holds

विश्वसिति              = विश्वास करता है-believes 

भ्रमन्त्याः                = घूमते हुए-revolving

संयोगाद्                 = संयोग से -by chance              

छायापातेन             =  छाया पड़ने पर- falling of                                            shadow 

अवरुध्यते -             = रुक जाता है is obstructed        

प्रतिपादितम्  =             प्रमाणित किया-proved.

अनुवाद:-- आर्यभट का योगदान गणित ज्योतिष से संबन्धित है जहाँ संख्याओं की गणना महत्त्व रखती है। आर्यभट फलित ज्योतिषशास्त्र (ज्योतिषशास्त्र के फल) में विश्वास नहीं करते थे। गणितीय पद्धति से की गई गणना के आधार पर ही उनके द्वारा यह प्रमाणित किया गया कि ग्रहण में राहु व केतु नामक दो दानव कारण नहीं हैं। वहाँ तो सूर्य, चंद्र और पृथ्वी यह तीनों ही कारण होते हैं। सूर्य के चारों ओर घूमते हुए पृथ्वी चंद्रमा के परिक्रमा पथ पर संयोगवश आ जाती है। जब पृथ्वी की छाया पड़ने से चंद्रमा का प्रकाश रूक जाता है, तब चंद्रग्रहण होता है। वैसे ही पृथ्वी और सूर्य के बीच में आए हुए चंद्रमा की छाया पड़ने से सूर्यग्रहण दिखता है।

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4. समाजे नूतनानां विचाराणां स्वीकारे प्रायः सामान्यजनाः काठिन्यमनुमवन्ति । भारतीयज्योतिःशास्त्रे तथैव आर्यभटस्यापि विरोधः अभवत् । तस्य सिद्धान्ताः उपेक्षिताः । स पण्डितम्मन्यानाम् उपहासपात्रं जातः । पुनरपि तस्य दृष्टिः कालातिगामिनी दृष्टा । आधुनिकैः वैज्ञानिकः तस्मिन् तस्य च सिद्धान्ते समादरः । प्रकटितः । अस्मादेव कारणाद् अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम आर्यभट इति कृतम् । वस्तुतः भारतीयायाः गणितपरम्परायाः अथ च विज्ञानपरम्परायाः असो एकः शिखरपुरुषः आसीत् ।

शब्दार्याः- 

नूतनानाम्             = नये का- novel , new

काठिन्यम्              = कठिनता/ मुश्किल - difficulty, 

उपेक्षिताः              =  नजरअन्दाज करना-ignored

पण्डितम्मन्यानाम् = स्वयं को बडा विद्वान् मानने वालों का                              -wiseacres those who                                            consider themselves extra wise 

उपहासपात्रम्         =  उड़ाने योग्य व्यक्ति/ विषय-object of laughter (ridicule) 

कालातिगामिनी       =    समय को लॉयने वाली                                                     - surpassing time

प्रकटितः                 = प्रकट करते हैं-revealed

अनुवादः- समाज में नये विचारों को स्वीकार करने में प्रायः सामान्य लोगों को कठिनाई का अनुभव हुआ। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में वैसे ही आर्यभट का भी विरोध होता था। उसके सिद्धांतों को नजरअंदाज किया गया। वह स्वयं को पंडित मानने वालों के उपहास का पात्र बने। फिर भी उनकी नजर समय को लाँघने वाली दिखाई दी। आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा उन पर और उनके सिद्धान्त पर आदर प्रकट किया गया। इसी कारण से हमारे पहले उपग्रह का नाम 'आर्यभट' रखा गया।

वस्तुतः भारतीय गणित परम्परा और विज्ञान परम्परा के वे एक शिखर पुरुष (सबसे ऊँचे व्यक्ति) थे।


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