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गुरूभक्त आरूणि की कहानी / शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक कहानियाँ

              गुरूभक्त आरूणि की  कहानी  प्राचीन काल की घटना है, अयोदधौम्य नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके अनेक शिष्यों में आरुणि प्रमुख शि...

             


गुरूभक्त आरूणि की  कहानी 

प्राचीन काल की घटना है, अयोदधौम्य नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके अनेक शिष्यों में आरुणि प्रमुख शिष्य थे। वर्षा का मौसम था। चारों ओर घोर आँधी-तूफान के साथ ही मूसलाधार वर्षा हो रही थी। गुरू जी ने आश्रम से कुछ ही दूरी पर खेतों में सब्जियाँ तथा दालें आदि बो रखी थी।वर्षा के पानी  से खेतों की मेड टूट न जाये और फसलों को कोई खतरा न हो, इसलिए गुरू जी ने अपने परम शिष्य आरूणि से कहा, "वत्स, जाओ और वर्षा के कारण टूटी हुई मेडों को बाँध दो।" 



अपने गुरू की आज्ञा का पालन करते हुए, आरूणि घोर बरसात में हाथों में फावड़ा लिए हुए खेतों की ओर चल दिया। वहाँ जाकर उसने देखा कि अत्यधिक पानी बरसने से सभी क्यारियाँ टूटी पड़ी हैं और पानी के तीव्र बहाव से मिट्टी बह रही है, जिससे वहाँ उगे हुए अनेक पौधे नष्ट हो रहे हैं। पानी में भीगते हुए वह खेतों की मेंड बाँधने का प्रयत्न करने लगा। ऐसा करते हुए वह अपने फावड़े से कई क्यारियों का जल रोकने में सफल हुआ, परंतु अंत में घनघोर वर्षा के कारण एक मेड बाँधने में वह असफल रहा तो उसे एक उपाय सूझा। वह मन ही मन में कहने लगा, “यदि मैं इस टूटी हुई मेड के स्थान पर स्वयं लेट जाऊं तो निश्चय ही पानी का बहाव रूक जायेगा।" ऐसा सोचते ही वह तुरंत टूटे हुए स्थान पर लेट गया और बहता हुआ जल भी रूक गया। रात भर बिजलियाँ कड़कती रहीं. बादल गर्जते रहे और  और मूसलाधार वर्षा भी अपनी चरम सीमा पर होती रही, परंतु सच्चा गुरु भक्त आरूणि क्यारियों का पानी रोकने के लिए अपने स्थान पर ही लेटा रहा। सर्दी के कारण वह पानी में भीगता हुआ कांप रहा था और भूख के मारे में उसका बुरा हाल था परंतु उसके लिए तो गुरु आज्ञा ही सर्वोपरि थी। इधर रात भर आश्रम में आरुणि के वापिस न आने पर गुरू अयोदधौम्य अत्यंत चिंतित हुए। सुबह होने पर अपने अन्य शिष्यों सहित उसे ढूंढते हुए उस स्थान पर पहुंचे जहां सच्चा गुरु भक्त पानी का बहाव रोकने के लिए दीवार की भांति खेतों के बीच मिट्टी और गारे में लथपथ पड़ा था। तेजस्वी आचार्य ने अपने शिष्य की कर्तव्य निष्ठा को देखकर दंग रह गये। भाव-विह्वल होकर उन्होंने आरूणि को बुलाकर अपने हृदय से लगा दिया और उसकी अपने गुरु के प्रति समर्पित भावना को देखकर उनकी आंखों में अविरल अश्रुधारा बहने लगी। वे उसे आशीर्वाद देते हुए कहने लगे, "तुमने मेरी आज्ञा का पालन करते हुए अपने प्राणों को भी खतरे में डाला है, इसलिए तुम कल्याण के भागी हो। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि सम्पूर्ण वेद और धर्म शास्त्र तुम्हारी बुद्धि में स्वयं प्रकाशित होगें।"

अपने गुरू के अनेक वरदान पाकर आरूणि अत्यंत हर्षित हुआ और आश्रम में गुरूदेव से अनेक प्रकार की विद्याओं में निपुण होकर अपने देश चला गया।



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