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कक्षा-10, कृतिका भाग-2, पाठ-माता का आँचल , सारांश , प्रश्नोत्तर

                पाठ-   माता का आँचल     लेखक   - श्री शिव पूजन सहाय जी                 पाठ का सारांश  बचपन में लेखक का पिता से अधिक जुड़ावः-...


               पाठ- माता का आँचल

    लेखक - श्री शिव पूजन सहाय जी

                पाठ का सारांश 

बचपन में लेखक का पिता से अधिक जुड़ावः-- उपन्यास के प्रमुख पात्र तारकेश्वरनाथ ने अपने माता-पिता तथा अपने बचपन के साथियों के साथ जुड़ी भावनाओं को चित्रित किया है। तारकेश्वरनाथ जी के पिता उन्हें प्यार से भोलानाथ कहकर पुकारते थे। भोलानाथ के पिता जी सुबह उठकर नहा-धोकर पूजा के लिए बैठ जाते माता से केवल दूध पीने का नाता था, इसलिए पिता जी के साथ ही वे बैठक में सोया करते। पिता जी जब उठते मोला को भी सुबह ही उठा देते, नहला-धुलाकर पूजा पर बिठा देते। भोला के जिद करने पर पिता उसके चौड़े माथे पर एक प्रकार का तितक त्रिपुंड (ललाट पर तीन आड़ी या अर्धचंद्राकार रेखाएं बना देना) लगा देते। सिर पर लंबी-लंबी जटाएं थीं। भोला बम-भोला बन जाते। पिता जी को 'बाबूजी' तथा माता को 'मइयाँ' कहकर पुकारते जब बाबू जी रामायण का पाठ करते, तब भोलानाथ उनके पास बैठकर आईने में अपना मुँह निहारा करते थे जब बाबू जी उन्हें देखते तो वे शरमाकर आईना नीचे रख देते।

पिताजी के साथ गंगा जी तक जाना:-- पूजा-पाठ के बाद पिता हज़ार बार राम-नाम लिखकर उसे पाठ करने की पोथी के साथ बाँधकर रख देते। ) पाँच सी बार कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम-नाम लिखकर आटे की गोतियों पर लपेट कर गंगा जी की ओर चलते भोलानाथ भी उनके कंधे पर विराजमान रहते। जब बाबू जी गंगा जी में मछलियों को खिलाने के लिए एक-एक गोली फेंकते, तब भोला कंधे पर बैठे-बैठे ही हसा करते। पर लौटते समय बाबू जी उन्हें पेड़ों की डालों पर बिठाकर झूला झुलाते थे।

पिताजी के साथ कुश्ती लड़ना:-- कभी-कभी बाबू जी भोला से कुश्ती भी लड़ते जान-बूझकर वे शिक्षित होकर भोत्ता के आत्म-विश्वास को बढ़ावा देते। जब बाबू जी पीठ के बल लेट जाते तो भोला उनकी छाती पर चढ़कर उनकी लंबी-लंबी मूठे उखाड़ने लगते, वे हँसते हुए उसके हाथों को घूम लेते जब वे भोला से खट्टा और मीठा चुम्मा मांगते, तब भोला बारी-बारी से अपना बायाँ तथा दायाँ गाल उनके मुंह की ओर कर देते। बाएँ का खट्टा तथा दाएँ का मीठा चुम्मा लेने लगते, तब ये अपनी दाढ़ी या मूँह भोला के कोमल गालों पर गड़ा देते थे। झुंझलाकर भोला उनकी मूँछें नोचने लग जाते थे। बाब जी बनावटी रोना रोने लगते, तब भोला खिल-खिलाकर हँसने लग जाते।

माता-पिता द्वारा भोलानाथ को खाना खिलाना:-- जब भोला बाबू जी के साथ घर आते, तब खाना खाने बैठते। बाबू जी अपने हाथों से खाना खिलाते। माता जी को ऐसा लगता कि भोला ने कम खाया। वे कहतीं कि जब बच्चा बड़े-बड़े कौर खाएगा, तब दुनिया में स्थान पाएगा। माँ के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भरता है। माँ तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती जातीं कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएंगे। भोला जल्दी खा लेते। खाना खा लेने के बाद भोला को खेलने के लिए भेज दिया जाता उछल-कूद कर लकड़ी का घोड़ा लेकर नंग-धड़ंग बाहर गली में निकल जाते। 

माँ द्वारा भोलानाथ के सिर पर तेल लगाना:-- जब कभी माँ भोला को जबरदस्ती पकड़कर सिर पर सरसों का तेल डालतीं, तब वे रोने लगते। ब जी माँ पर बिगड़ते, पर वे सिर को तेल से सराबोर करके ही छोड़तीं। काजल की बिंदी लगाकर चोटी गूबती और उसमें फूलदार लट्टयाँ रंगीन कुरता-टोपी पहना देतीं, तब भोला 'कन्हैया' बनकर बाबू जी की गोद में सिसकते सिसकते बाहर आ जाते। बाहर आकर बच्चों का मिल जाता। भोला उन साथियों को देखते ही सिसकना भूल जाते बाबू जी को गोद से उतर कर उस दल में शामिल होकर तमाशे करने लगते। वे सब मिलकर तरह-तरह के नाटक करते।

भोलानाथ और उनकी मित्र मंडली द्वारा बचपन में खेले गए तमाशे:-- चबूतरे का एक कोना नाटक पर बनता था। बाबू जी जिस छोटी चौकी पर बैठकर नहाते वही रंगमंच बनता। उसी पर सरकंडे के खंभों पर कागज़ का छोटा शामियाना तानकर मिठाइयों की दुकान बनाई जाती। चिलम के खोंचे पर कपड़े के थालों में ढेले के लड्डू, पत्तों की पूरी कचोरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियों तथा टूटे-फूटे हुए घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जातीं। बरतनों और जस्ते के छोटे-छोटे टुकड़ों के पैसे बनते। बच्चे ही दुकानदार बनते और खरीदार भी थोड़ी देर बाद मिठाई की दुकान बंद कर घरोंदा बनाने लगते। मिट्टी की दीवार और तिनकों का छप्पर। दातुन के खंभे, दियासलाई की पेटियों के किवाड़, घडे के मुँहड़े की चूल्हा-चक्की, दीये की कड़ाही और बाबू जी की पूजा वाली आचमनी (छोटे चम्मच के आकार का आचमन करने का पात्र) कलछी बन जाती। पानी के घी, मिट्टी का आटा और बालू की चीनी से वे बच्चे दावत तैयार करते तथा वे ही दावत खाने बैठते। जब बच्चे लाइन बनाकर बैठते, तब बाबू जी अंतिम सिरे पर भोजन करने के लिए बैठते बाबू जी को देखते ही बच्चे हँसकर घरौंदा तोड़कर भाग जाते। बाबू जी भी हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाते और पूछने लगते-"फिर कब भोज होगा भोलानाथ?"

कभी-कभी बच्चे बरात का भी जुलूस निकालते थे। कनस्तर का तंबूरा बजाते, आम के उगते हुए पौधे को घिसकर शहनाई बजाई जाती, टूटी चूहेदानी की पालकी बनाते, भोलानाथ समधी बनकर बकरे पर चढ़ते। बरात एक कोने से चलकर दूसरे कोने तक पहुँचती। लकड़ियों की पटरियों से घिरे, गोवर से लिपे, आम और केले की टहनियों से सजाए हुए छोटे-से आँगन में कलसा रखा होता। वहीं पहुँचकर बरात वापस लौट आती। लौटते समय खटोली पर लाल कपड़ा डालकर उसमें दुलहिन को बिठा कर वापस लाया जाता। लौटते समय जब बाबू जी जैसे ही लाल कपड़ा उठाकर दुलहिन का मुँह देखने लगते, सभी बच्चे हँसकर भाग जाते। थोड़े समय के बाद फिर लड़कों की मंडली इकट्ठी हो जाती। सब सलाह करते कि खेती की जाए। चबूतरे को खेत मान लिया जाता। दो लड़कों को बैल बनाकर बड़ी मेहनत से खेत जोते-बोए और पटाए जाते। जल्दी से फसल तैयार हो जाती और उसकी कटाई भी शुरू कर देते। काटते समय गाते थे- 'ऊंच नीचे में बई कियारी, जो उपजी सो भई हमारी।' फसल को एक तरफ़ रखकर उसे पैरों से रौंद डालते। कसोरे का सूप बनाकर ओसाते और मिट्टी के दीये के तराजू पर तीलकर राशि तैयार कर देते थे। इसी बीच बाबू जी आकर पूछते कि इस साल की खेती कैसी रही ? जैसे ही बाबू जी पूछते, वैसे ही सभी लड़के उस झूठ-मूठ के खेत-खलिहान को छोड़कर हंसते हुए भाग जाते। जब बच्चे झूठ-मूठ के खेल खेला करते, कई बार यात्री भी ठिठक कर रुक जाते और उनका तमाशा देखते।

बाल-जीवन की अन्य स्मृतियाँ:-- ददरी के मेले में जाने वाले आदमियों का झुंड देखते तो सभी बच्चे उछल-कूद कर चिल्लाने लगते- 'चलो भाइयो ददरी, सातू पिसान की मोटरी। किसी दूल्हे के आगे-आगे जाती हुई आहारदार पालकी देखते तो खूब जोर से चिल्लाने लगते- 'रहरी (अरहर) में रहरी पुरान रहरी, डोला के कनिया हमार मेहरी' भोलानाथ को याद है कि एक बार बूढ़े दूल्हे ने उन्हें ढेलों से मारकर दूर तक खदेड़ा था। उसके घोड़े जैसे मुँह को देखकर भोलानाथ को हैरानी होती कि ससुर ने कैसा दामाद ढूँढ़ा ?

कभी-कभी खूब आँधी आती थीं। सभी लड़के बाग की ओर दौड़ पड़ते। चुन-चुन गोपी आम खाते थे। एक दिन जोरों से ओवी आई. आकाश काले बादलों से ढक गया। बादल गरजने लगे, बिजली चमकने लगी, ठंडी हवा चलने लगी। सब लड़के दिल्ला उठे एक पइसा की लाई, बाज़ार में छितराई, बरखा उधरे बिलाई। परंतु वर्षा नहीं रुकी, बल्कि और तेज़ हो गई। सभी लड़के पेड़ की जड़ से तने से चिपक क खड़े हो गए, जैसे कुत्ते के कान में छोटे कीड़े चिपके रहते हैं। वर्षा बंद होते ही बाग में बहुत-से बिच्छू नज़र आए। सभी डरकर भागने लगे। उन लड़कों में बैजू बड़ा दीठ था। अचानक रास्ते में वृढ़े मूसन तिवारी मिल गए। बैजू ने उन्हें चिढ़ाया-'बुढ़वा बेईमान माँगे करेला का चोखा ॥ सभी लड़कों ने बैजू के सुर-से-सुर मिलाकर चिल्लाना शुरू कर दिया। जैसे ही तिवारी जी ने लड़कों को खदेड़ा तो सभी अपने-अपने घर तेजी से भागे। जब तिवारी जी को कोई लड़का न मिला तो वे सीधे पाठशाला पहुँचे। वहाँ से उन्होंने चार लड़कों को भोलानाथ और बैजू को पकड़ कर लाने को कहा। बैजू तो भाग गया भोलानाथ लड़कों द्वारा पकड़ लिए गए। गुरु जी ने खूब खबर ली। जैसे ही बाबू जी को पता चला, वैसे ही दौड़ते हुए आए। भोलानाथ को गोदी में उठाकर चुप कराने लगे। उन्होंने गुरु जी से विनती की और भोलानाथ को घर ले आए। लड़कों का झुंड मिला, जो ज़ोर से गा रहा था- 'माई पकाई गरर गरर पूआ, हम खाइय पूआ, ना खेलब जुआ।' लड़कों को नाचते और भोलानाथ ज़िद कर बाबू जी की गोद से उतर गए और लड़कों की मंडली में जाकर शामिल हो गए। सब लड़के मक्की के खेत में दौड पडे। वहाँ चिड़ियों का झुंड चर रहा था। वे दौड़-दौड़ कर चिड़ियों को पकड़ने लगे, पर एक भी हाथ न लगी। भोलानाथ खेत से अलग खड़े रहे थे-'राम जी की चिरई, राम जी का खेत, खा लो चिरई, भर-भर पेट। कुछ ही दूरी पर बाबू जी और गाँव के कई आदमी खड़े तमाशा देख रहे थे और हँस कर कह रहे थे कि 'चिड़िया की जान जाए, लड़कों का खिलौना। ठीक ही कहा गया है, लड़के और बंदर पराई पीड़ा नहीं समझते।

शरारत मँहगी पड़ना:- एक बार सभी लड़के टीले पर चढ़कर चूहों के बिल में पानी डालने लगे। नीचे से ऊपर पानी फेंकने के कारण सभी थके थे। गणेश जी के चूहे की रक्षा के लिए शिव जी का साँप निकल आया। सभी बच्चे डर कर भागे। किसी के सिर पर चोट लगी तो किसी के दांत  टूटे। भोलानाथ का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। काँटें लगने से पैर छलनी हो गए। वे रोते चिल्लाते हुए घर में घुसे। उस समय बाबू जी बैठक के बरामदे में बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। उनके बार-बार पुकारने पर भी भोलानाथ उनकी पुकार अनसुनी कर अपनी माँ की गोद में गए।

उस समय माँ चावल साफ़ कर रही थीं। भोलानाथ को रोते देख अपने आंचल में छिपा लिया। डर से कापते देख सब काम छोड़कर स्वयं भी रोने लगीं। भोलानाथ को डरा हुआ देखकर रोने का कारण पूछने लगीं। जल्दी से हल्दी पीसकर घावों पर लगाई। घर में बहुत शोर मच गया। भोलानथ केवल धीमी आवाज़ में काँपते हुए 'साँ...स... सॉ' कहते हुए माँ के आँचल में छुप रहे थे। सारा शरीर थर-थर काँप रहा था। भोलानाथ आँखे खोलना चाहते थे, पर खुल नहीं रही थीं। माँ बार-बार उन्हें निहार रही थीं और गले लगा लेती थीं। उसी समय बाबू जी दोड़कर आए। वे माँ की गोद से अपनी गोद में लेना चाहते थे, पर भोलानाथ ने माँ का आँचल नहीं छोड़ा, क्योंकि उस आंचल में शांति मिल रही थी।

                       पाठ्य पुस्तक प्रश्न

प्रश्न 1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ में इसकी क्या वजह हो सकती है? 

उत्तरः--  

(क) माँ का आँचल 'प्रेम तथा शांति का चंदोवा' होने के कारण-विपदा में घबराए हुए बच्चे के लिए मी का आँचल प्यार और शांति देने वाला चंदोवा है, जिसकी शीतल छोह तले वह स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है।

(ख) स्वभावगत अंतर के कारण यद्यपि पिता और पुत्र में गहरा प्रेम था। पिता उसे सुबह से शाम तक अपने साथ रखते, उसके खेती में शामिल होकर मित्र की भूमिका निभाते, किंतु माँ जैसी कोमलता और ममता उनके पास नहीं थी, जिसकी जरूरत उस समय बच्चे को थी। घबराए हुए बच्चे को अंग लगाना, उसको आँचल में छिपाना, आँखों में आँसू भर लाना लाह से गले लगाना जैसे भाव माँ के पास ही होते हैं, जो ऐसी घड़ी में घावों पर मरहम जैसे लगते हैं।

(ग) अन्य कारण माँ से संतान का संबंध जन्म से नौ माह पूर्व ही जुड़ जाता है। इसी कारण बच्चे का माँ से आत्मीय भाव अत्यंत गहरा हो जाता है। जब मृत्यु जैसी आपदा सर्प रूप में सामने आती है, तो वह जन्म देने वाली की शरण में ही प्राणरक्षा के लिए दौड़ता हुआ चला जाता है।

प्रश्न 2. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूत जाता है?

उतरः-  

(क) बाल स्वभाव के कारण बच्चे स्वभाव से भोले होते हैं। वे जितनी जल्दी सहते हैं, उतनी ही जल्दी बात को भूल भी जाते हैं। मास्टर जी द्वारा भोलानाथ की खबर लेने के कारण वह रो रहा था, किंतु मित्रों को देखते ही उसे कुछ देर पहले का दुखद समय याद नहीं रहा।

(ख) खेल में आनंद मिलने के कारण खेल बच्चों को अत्यंत प्रिय हैं। पिता की गोद में सिसकते भोलानाथ को जब नाचती गाती मित्र-मंडली मिली, तो वही सुर अलापने की इच्छा से भोलानाथ पिता की गोद से उतर गए। खेल में मिलने वाले आनंद की कल्पना ने ही भोलानाथ को सिसकना भुला दिया।

प्रश्न 3. आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी-न-किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेतों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो, तो लिखिए।

उत्तरः- 

(क) 

अक्कड़-बक्कड़ बंबे यो,

अस्सी नब्बे पूरे सी।

सौ में लगा धागा,

चोर निकल के भागा ॥

(ख) 

पोशंपा भाई पोशंपा!

डाकिए ने क्या किया?

सौ रुपये की घड़ी चुराई ।

अब तो जेल में आना पड़ेगा।

जेल की रोटी खानी पड़ेगी,

जेल का पानी पीना पड़ेगा ॥

(ग) 

गुल्ली डंडा रेत में।

दाना मछली पेट में।

ताकत लगती खेल में

हाथ मिलाओ मेल में ॥

प्रश्न-4 भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है ?

उत्तर:-- भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आज के खेल और खेलने की सामग्री से अधिक भिन्न थी। पहले बच्चे अपने घर से बाहर दूर-दूर तक जाकर खेलते थे। माता-पिता को चिंता नहीं होती थी, किसी प्रकार का कोई डर न था। बच्चे टूटे-फूटे बरतनों तथा अन्य वस्तुओं के साथ ही खेलते थे। उनके अधिकतर खेल खेतों, मैदानों तथा खुले स्थानों पर होते थे, लेकिन अब समय बदल गया है। आज अपहरण की इतनी घटनाएं हो रही हैं कि माता-पिता अपने बच्चों को अपनी आँखों से दूर नहीं करते। खिलौनों का भी रूप बदल गया है। आज प्लास्टिक और इलेक्ट्रोनिक्स के महंगे खिलीने आ गए हैं। आज अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों को सर्दी, गर्मी, बरसात से भी बचाकर रखते हैं। आज बच्चों के खेल बंद घरों के भीतर ही खेले जाते हैं।

प्रश्न 5. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए, जो आपके दिल को छू गए हों। 

उत्तरः-- पाठ में ऐसे बहुत-से प्रसंग आए हैं, जो हमारे दिल को छू गए हों ।

(क) बाबू जी अपने हाथों से भोला को खाना खिलाते, पर माता जी को ऐसा लगता कि भोला ने कम खाया है। वे कहती कि जब बच्चा बड़े-बड़े कौर खाएगा, तब दुनिया में स्थान पाएगा। माँ के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भरता है। माँ तोता, मैना, कबूतर, हंस तथा मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो ये उड़ जाएँगे। (ख) जब बच्चे खेलते तो पिता जी छिपकर देखते और थोड़ी देर बाद वे भी बच्चों के खेल में शामिल हो जाते।

(ग) एक बार सभी लड़के टीले पर चढ़कर चूहों के बिल में पानी डालने लगे। अचानक बिल में से साँप निकल आया। सभी बच्चे डर कर भागे। किसी के सिर पर चोट लगी, तो किसी के दाँत टूटे। भोलानाथ का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। काँटे लगने से पैर छलनी हो गए। भोलानाथ दौड़कर अपनी माँ के आँचल में छिप गया। माँ भी रोने लगी, उसने उसके घावों पर हल्दी पीसकर लगाई।

प्रश्न 6. इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं ?

उत्तरः-  आज की ग्रामीण संस्कृति में बहुत अधिक परिवर्तन हो गए हैं। आज खेतों में आधुनिक विधि और आधुनिक उपकरणों से खेती होने लगी है। अब कुओं से सिंचाई नहीं होती, उनकी जगह ट्यूबवेल आ गए हैं। हल की जगह अब ट्रैक्टर का प्रयोग होने लगा है। अब जगह-जगह नंग-धड़ंग बच्चे खेलते हुए नजर नहीं आते। वे भी विद्यालय जाकर पढ़ने लगे हैं। अब बैलगाड़ी या लालटेन नजर नहीं आती। गाँवों में भी बिजली पहुंच गई है। कच्चे घरों की जगह पक्के मकान नज़र आने लगे हैं। ग्रामीण लोगों के पहनावे में भी अंतर आया है।

प्रश्न 7. पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए। 

उत्तरः--  पाठ पढ़ते-पढ़ते मुझे भी अपने माता-पिता का लाड-प्यार याद आ रहा था। सभी बच्चों का बचपन एक ही तरह व्यतीत होता है। पेट भरकर खा लेने पर भी माँ को संतुष्टि नहीं होती थी। वे मुझे भी अपने हाथों से खाना खिलाती तथा कहती कि जल्दी खाओ नहीं तो कौआ छीनकर ले जाएगा। कभी अपने नाम का, कभी पापा के नाम का, कभी दादा और कभी दादी के नाम का कोर खिलाती। जब मैं रूठ जाता तो मनाने लगती। रात को अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाती उदास या बीमार होने पर तरह-तरह के प्रश्न पूछने लगतीं। माता-पिता के चेहरे पर चिंता की रेखाएँ दिखाई देने लगती।  सारी रात पास बैठे रहते। बार-बार छूकर देखते। उनका स्पर्श आज भी महसूस होता है। मम्मी-पापा आज भी प्यार करते हैं, लेकिन उसका रूप बचपन से भिन्न है। मन करता है कि मैं फिर से छोटा हो जाऊँ तथा उनकी गोदी में बैठे घंटों बिता दूँ।

प्रश्न 8- यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तरः-  'माता का आँचल' उपन्यास अंश में माता-पिता के वात्सल्य का चित्रण हृदयग्राही है। प्रमुख पात्र तारकेश्वरनाथ के पिता प्यार से उन्हें भोलानाथ कहते और उनकी माँ से भी अधिक प्यार करते। साथ सुलाना, सुबह उठाकर नहलाना, पूजा के समय साय बिठाना तथा अपने हाथ से खाना खिलाना आदि सभी काम पिता करते। उन्हें यह सब करने में बहुत खुशी मिलती। ये भोलानाथ के खेतों में भी रुचि रखते। उन्होंने भोलानाथ को कभी भी नहीं डाटा जब कभी माँ भोला को जबरदस्ती पकड़कर उसके सिर पर तेल डालतीं, तब वह रोने लगता। पिता जी माँ पर बिगड़ते। एक बार गुरु जी ने भोला की खूब खबर ली। जैसे ही पिता जी को पता बता, वैसे ही ये पाठशाला दौड़ते हुए आए। जब साँप से डरकर भोलानाथ घर में घुसे, पिता हुक्का छोड़ दौड़कर आए वे उसे माँ की गोद से अपनी गोद में लेना चाहते थे।

पिता की तरह माता का वात्सल्य भी हृदय में उमड़ता रहता है। बच्चे का पेट भरा होने पर भी माँ उसे जबरदस्ती खाना खिलाती है। बच्चे को नजर न लग जाए इसलिए माता काजल की बिंदी लगातीं चोटी गूंथकर उसमें फूलदार लट्टू बाँधकर रंगीन कुरता-टोपी पहनाकर उसे कन्हैया बना देतीं। भोलानाथ को रोते देख मां ने उसे आंचल में छिपा लिया। डर से कांपते देख सब काम छोड़कर ये स्वयं भी रोने लगीं। हल्दी पीसकर घावों पर लगाई। माँ बार-बार उन्हें निहार रही थी और गले लगा रही थी भोलानाथ ने भी माँ का  आँचल नहीं छोड़ा, क्योंकि उस आंचल में उन्हें प्रेम और शांति मिल रही थी।

प्रश्न-9 'माता का अँचल' शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।

अथवा

'माता का अंचल' शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - 'माता का अँचल' शीर्षक बिलकुल उपयुक्त है। पूरे उपन्यास अंश में चाहे पिता के साथ भोला का अधिक समय व्यतीत होता था, फिर भी घायल होने पर भोलानाथ पिता के पुकारने को अनसुनी कर माँ के पास चले गए। उस समय माँ चावल साफ़ कर रही थी। रोते हुए भोलानाथ को उन्होंने अपने आँचल में छिपा लिया। उन्हें डर से कांपते देख सब काम छोड़कर स्वयं भी रोने लगी। भोलानाथ केवल धीमी आवाज़ में काँपते हुए सौं...स....सा कहते हुए माँ के आँचल में छिप गए। सारा शरीर घर-थर काँप रहा था। भोलानाथ ने माँ का आँचल नहीं छोड़ा, क्योंकि उस आँचल में उन्हें प्रेम और शांति मिल रही थी। इसका अन्य शीर्षक हो सकता है-'बचपन के दिन।

प्रश्न 10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?

उत्तर:--  बच्चे अपने माता-पिता के साथ अधिक समय व्यतीत कर अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हैं। पिता के कंधे पर बैठकर या झूलकर, सीने पर बैठ गालों को चूमना, मूँछें उखाड़ने की कोशिश करना या बाल खींचना, झूठ-मूठ का रोना, डर कर माँ की गोद में छिप जाना उन्हें सम्मान देना, उनके सपनों को साकार करना, छोटे-छोटे कार्यों में उनका हाथ बँटाना इत्यादि क्रियाएं माता-पिता के प्रति बच्चों के प्रेम को प्रकट करती हैं।

प्रश्न 11. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है, वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है? 

उत्तर :- इस पाठ में जो बच्चों की दुनिया रची गई है, उसमें उनके खेल, कौतूहल, माँ की ममता, पिता का दुलार आदि शामिल हैं। हमारे बचपन की दुनिया नितांत इससे भिन्न है, क्योंकि इसमें कृत्रिमता का समावेश है। पाठ में ग्राम्य जीवन और संस्कृति का प्राकृतिक चित्रण है। जबकि हम शहरी जीवन जीने के अभ्यस्त हैं। उन बच्चों के माता-पिता उन्हें खिलाने, सुलाने उनके साथ खेलने आदि में पूरा समय देते. ये जबकि इस दुनिया में माता-पिता व्यस्तता के कारण बच्चों को वक्त न देने की कमी को आधुनिक खिलीने, खेल-सामग्री, कंप्यूटर, वीडियो गेम्स, मोबाइल, टैब आदि उपकरण देकर पूरा करते हैं। उनका वात्सल्य इससे संतुष्ट होता है। उन बच्चों में मंत्री की भावना थी, लेकिन आजकल बच्चे अकेले रहने के अभ्यस्त होने लगे हैं। जीवन शैली में बदलाव होने, पड़ोस कल्चर खत्म होने के कारण बच्चे पड़ोस तथा मुहल्लों में खेलने नहीं जा पाते।











2 comments

  1. Aapke itne efforts ke liy thanks sir
    Please class 10 grammar ke topics ke practice ke liy que bhi leke aaiye

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    Replies
    1. धन्यवाद बेटा !
      बेटा , कक्षा 10 की व्याकरण के लिए
      LABLE
      कक्षा 9 और 10 की व्याकरण देखिए। 🌝

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