कक्षा :-9 पुस्तक :- क्षितिज भाग-1 पाठ :- साखियाँ और सबद कवि :- कबीर दास जी सबद (पद) (1...
कक्षा :-9
पुस्तक :- क्षितिज भाग-1
पाठ :- साखियाँ और सबद
कवि :- कबीर दास जी
सबद (पद)
(1 )
मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में ।।
शब्दार्थ :- मोकों-मुझे। बंदे-मनुष्य । देवल-मंदिर। काबा-मुसलमानों का तीर्थ-स्थान। कौने-किसी । क्रिया-कर्म-सांसारिक आडंबर। योग-योग साधना। बैराग-वैराग्य। तुरतै- शीघ्र ही । तालास-खोज
भावार्थ - इसमें स्वयं निराकार ब्रह्म मनुष्य को संबोधित करते हुए कहता है-हे मनुष्य! तू मुझे अपने से बाहर कहाँ ढूँढ़ता भटक रहा है? मैं तो तेरे बहुत नजदीक हूँ। न मैं मंदिर में रहता हूँ, न मसजिद में; न मुसलमानों के तीर्थ काबा में निवास करता हूँ, न हिंदुओं के कैलाश पर्वत पर। अतः इन जगहों पर मुझे क्यों खोज रहा है? तुम्हारा भटकना व्यर्थ है। न तो मैं किसी विशेष क्रिया के करने से मिलता हूँ, न किसी कर्मकांड से। न मैं योग-साधना करने से मिलता हूँ, न संसार को छोड़कर संन्यासी बनने से। ये सब ऊपरी दिखावे हैं। मैं तो सब जगह व्याप्त हूँ। यदि सच्चा खोजने वाला भक्त हो, जिसके मन में मुझे पाने की सच्ची ललक हो, तो मैं तुरंत ही उसे दर्शन देता हूँ। मुझे पाने के लिए तो पल भर की सच्ची लगन ही काफी है। कबीरदास अपने भक्तों को संबोधित करते हुए कहते हैं-सुनो भाई संतो! वह परमात्मा सब प्राणियों में विद्यमान है। जैसे साँस तुम्हारे भीतर है, वैसे परमात्मा भी तुम्हारे भीतर निवास करता है। वही प्राण बनकर तुम्हारे भीतर समाया हुआ है। अतः उसे खोजना है तो मन में खोजो, बाहर नहीं।
(2 )
संतों भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उडाँनी, माया रहे न बाँधी ।।
हिति चित्त की है थूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुवधि का भाँडा फूटा।।
जोग जुगति करि संत बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी ।।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी ।।
आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भीनाँ ।।
कहै कबीर भान के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ ।।
शब्दार्थः- टाटी-बाँस की फट्टियों से बना हुआ परदा। माया-अविद्या, रस्सी । हिति-स्वार्थ चित्त-मन। थूनी- खंभा, स्तंभ, टेक। बलिंडा- छत पर बाँधी जाने वाली वल्ली। तूटा-टूटा। त्रिस्ना-तृष्णा, प्यास, चाह। छाँनि-छप्पर । घर-धरती । कुबधि- सांसारिक वासनाओं वाले विचार। भाँडाँ-वर्तन। जोग जुगति-योग-साधना की युक्तियाँ। निरचू-थोड़ा भी। चुवै रिसता है, चूता है। बूठा-बरसा। भीनाँ- भीगा । भाँन-सूरज उदित भया- उग गया. प्रकट हो गया। तम खीनाँ- अँधेरा - नष्ट हो गया।
भावार्थ:- कबीर कहते हैं-हे संत भाइयो! ज्ञान की आँधी आ गई है। उसके आते ही भ्रम की टाटी पूरी तरह उड़ गई। माया रूपी रस्सी उसे बाँधकर न रख सकी। स्वार्थ और धन का चिंतन करने वाले मन के दोनों स्तंभ गिर पड़े। मोह रूपी बल्लियाँ टूट गईं। तृष्णा रूपी छप्पर धरती पर आ गिरा। कुबुद्धि रूपी बर्तन टूट-फूट गए। (कुबुद्धि का भेद खुल गया।)
अब संतों ने योग साधना की युक्तियों से नए छप्पर का निर्माण किया। यह निर्माण ऐसा मज़बूत है कि उससे पानी की एक भी बूँद नहीं टपक सकती। इस प्रकार जब संतों ने हरि के रहस्य को जान लिया तो शरीर में बसा हुआ कूड़कपट पूरी तरह निकलकर बाहर हो गया। इस ज्ञान की आँधी के पश्चात् भक्ति रूपी जल की वर्षा हुई जिसके प्रेम में हरि के सब भक्त भोग गए। कबीर कहते हैं- इस प्रकार ज्ञान रूपी सूर्य के प्रकट होने पर जो भी अंधकार शेष था, वह भी समाप्त हो गया।
पाठ्य- पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
साखियाँ
प्रश्न 1. 'मानसरोवर' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर- मानसरोवर के दो अर्थ हैं-
• एक पवित्र सरोवर जिसमें हंस विहार करते हैं।
• पवित्र मन या मानस।
प्रश्न 2. कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तरः-कवि के अनुसार सच्चे प्रेमी की कसौटी यह है कि उससे मिलने पर मन की सारी मलिनता नष्ट हो जाती है। पाप धुल जाते हैं।
प्रश्न 3. तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है? उत्तर- इस दोहे में अनुभव से प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान को महत्त्व दिया गया है।
प्रश्न 4. इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
अथवा
'संत सुजान' से क्या आशय है?
उत्तर- कबीर के अनुसार, सच्चा संत वह है जो सांप्रदायिक भेदभाव, तर्क-वितर्क और वैर-विरोध के झगड़े में न पड़कर निश्छल भाव से प्रभु की भक्ति में लीन रहता है।
प्रश्न 5. अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर- अंतिम दो दोहों में कबीर ने निम्नलिखित संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है-
(क) अपने-अपने मत को श्रेष्ठ मानने की संकीर्णता और दूसरे के धर्म की निंदा करने की संकीर्णता ।
(ख) ऊँचे कुल के अहंकार में जीने की संकीर्णता ।
प्रश्न 6. किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर- किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है, न कि ऊँचे कुल से आज तक हजारों राजा पैदा हुए और मर गए। परंतु लोग जिन्हें जानते हैं, वे हैं-राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि। इन्हें इसलिए जाना गया क्योंकि ये केवल कुल से ऊँचे नहीं थे, बल्कि इन्होंने ऊँचे कर्म किए। इनके विपरीत कबीर, सूर. तुलसी बहुत सामान्य घरों से थे। इन्हें बचपन में ठोकरें भी खानी पड़ीं। परंतु फिर भी वे अपने श्रेष्ठ कर्मों के आधार पर संसार भर में प्रसिद्ध हो गए। इसलिए हम कह सकते है कि महत्त्व ऊँचे कर्मों का होता है. कुल का नहीं।
प्रश्न-7 काव्य सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
हस्ती चढ़िए ज्ञान की, सहज दुलीचा डारि ।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।।
उत्तर :- इसमें कवि ने एक सशक्त चित्र उपस्थित किया है। सहज साधक मस्ती से हाथी पर चढ़े हुए जा रहे हैं। और संसार-भर के कुत्ते भौंक-भौंककर शांत हो रहे हैं परंतु वे हाथी का कुछ बिगाड़ नहीं पा रहे। यह चित्र निंदकों पर व्यंग्य है और साधकों के लिए प्रेरणा है।
• सांगरूपक अलंकार का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया गया है ।
ज्ञान रूपी हाथी
सहज साधना रूपी दुलीचा
निंदक संसार रूपी श्वान
निंदा रूपी भौंकना।
• 'झख मारि' मुहावरे का सुंदर प्रयोग ।
•'स्वान रूप संसार है' एक सशक्त उपमा है।
सबद (पद)
प्रश्न 8. मनुष्य ईश्वर को कहाँ कहाँ ढूँढ़ता फिरता है?
उत्तर- मनुष्य ईश्वर को मंदिर, मसजिद, काया, कैलाश, योग, वैराग्य तथा विविध पूजा पद्धतियों में ढूँढ़ता फिरता है। कोई अपने देवता के मंदिर में जाता है, कोई मसजिद में जाता है। कोई उसे अपने तीर्थ स्थलों में खोजता है। कोई योग साधना या संन्यास में परमात्मा को खोजता है। कोई अन्य किसी साधना पद्धति को अपनाकर ईश्वर को खोजता है।
प्रश्न 9. कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर- कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। उनके अनुसार ईश्वर न मंदिर में है, न मसजिद में न काबा में है, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में; वह न कर्मकांड करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से। ये सब ऊपरी दिखावे हैं, ढोंग हैं। इनमें मन लगाना व्यर्थ है।
प्रश्न 10. कबीर ने ईश्वर को 'सब स्वाँसों की स्वाँस में' क्यों कहा है?
उत्तर- कबीर के अनुसार, ईश्वर घट-घट में व्याप्त है। वह साँस साँस में समाया हुआ है। वह हर प्राणी के मन में विराजमान है।
प्रश्न 11. कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तरः- कबीर के अनुसार, जब प्रभु ज्ञान का आवेश होता है तो उसका प्रभाव चमत्कारी होता है। उससे पूरी जीवन शैली बदल जाती है। सांसारिक बंधन पूरी तरह कट जाते हैं। यह परिवर्तन धीरे-धीरे नहीं होता, बल्कि एकाएक और पूरे वेग से होता है। इसलिए उसकी तुलना सामान्य हवा से न करके आँधी से की गई है।
प्रश्न 12. ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
ज्ञान की आँधी आने पर व्यक्ति के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन देखने को मिलते हैं?
उत्तर- ज्ञान की आँधी के आने से भक्त के मन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। उसके मन के भ्रम दूर हो जाते हैं। माया मोह, स्वार्थ, धन, तृष्णा, कुबुद्धि आदि विकार समाप्त हो जाते हैं। इसके बाद उसके शुद्ध मन में भक्ति और प्रेम की वर्षा होत है जिससे जीवन में आनंद ही आनंद छा जाता है।
प्रश्न 13. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा |
उत्तर- इसका भाव यह है कि ईश्वरीय ज्ञान के आने से स्वार्थ-चिंतन समाप्त हो गया तथा सांसारिक मोह नष्ट हो ग
(ख) आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ ।
उत्तर- इसका भाव यह है कि ईश्वरीय ज्ञान हो जाने के बाद प्रभु-प्रेम के आनंद की वर्षा हुई। उस आनंद में भक्त
हृदय पूरी तरह सराबोर हो गया।
रचना और अभिव्यक्ति:-
प्रश्न 14. संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-कबीर अपनी साखियों में कहते हैं कि मनुष्य को पक्ष-विपक्ष अर्थात् जातिगत भेदभाव से दूर रहना चाहिए। सबको हिंदू-मुसलमान आदि के झगड़ों से दूर रहना चाहिए। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि जो निष्पक्ष होकर हरि का ध्यान करता है, वही ज्ञानी संत कहलाता है। वे हिंदू और मुसलमान दोनों की कट्टरता को फटकारते हुए कहते हैं-
हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ ।
प्रश्न 15. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
पखापखी, अनत, जोग, जुगति, बैराग, निरपख
उत्तर:--
पखापखी पक्ष-विपक्ष
अनत अन्यत्र
जोग योग
जुगति युक्ति
बैराग वैराग्य
निरपख निष्पक्ष
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