कक्षा-9 पाठ:- इस जल प्रलय में लेखक:- फणीश्वरनाथ रेणु पुस्तक:- कृतिका भाग 1 'इस जल प्रलय में' एक वृत्त कथन है। इसमें बिहार के पटना...
कक्षा-9
पाठ:- इस जल प्रलय में
लेखक:- फणीश्वरनाथ रेणु
पुस्तक:- कृतिका भाग 1
'इस जल प्रलय में' एक वृत्त कथन है। इसमें बिहार के पटना शहर में आने वाली बाढ़ का सजीव चित्रण हुआ है। पाठ का सार इस प्रकार है।
पाठ का सारांश
सन् 1967 में पटना में बाढ़ का आना:- - लेखक का गाँव ऐसे इलाके में है जहाँ चारों ओर के बाढ़ पीड़ित लोग शरण लिया करते हैं। यह परती क्षेत्र है। इसलिए लेखक न तो तैरना जानता है और न ही उसने बाढ़ के कहर को भोगा है। हाँ, वह बाढ़ पर लेख, कहानी, रिपोर्ताज आदि अवश्य लिख चुका है। उसके उपन्यासों में बाढ़ की विनाशलीला के अनेक चित्र हैं किंतु उसने बाढ़ से घिरने का अनुभव सन् 1967 में पटना शहर में किया। अठारह घंटे की लगातार बारिश ने पटना शहर को डुबाना शुरू कर दिया। जब शहर का पश्चिमी इलाका छाती भर पानी में डूब गया तो लेखक सहित सब लोग घरों में ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई पानी, कांपोज की गोलियाँ आदि इकट्ठी करके बैठ गए और पानी की प्रतीक्षा करने लगे।
लेखक की कॉफी हाउस की ओर जाने की तमन्ना:-- सुबह समाचार मिला कि राजभवन और मुख्यमंत्री भवन डूब गए हैं। दोपहर तक गोलघर जल से डूब गया। लेखक पाँच बजे कॉफी हाउस के लिए निकला तो रिक्शावाले ने बताया कि अब तक कॉफी हाउस डूब चुका होगा। लेखक फिर भी चलता गया पानी देखने के लिए। लोग अपने-अपने वाहनों पर पानी देख-देखकर लौट रहे थे। वे सभी अति उत्साह में सब कुछ डूबने की बातें कर रहे थे। सबकी जबान पर यही शब्द थे-आ गया घुस गया" डूब गया. वह गया।
काफी हाउस बंद कर दिया गया था। सड़क के किनारे झागदार पानी सरकता चला आ रहा था। लेखक ने तुरंत रिक्शा रुकवाया। भीड़ में से आवाज आई-आगे पानी में करेंट बहुत तेज है। लेखक ने रिक्शा मुड़वाकर गाँधी मैदान की राह पकड़ी। रास्ते में पानी भरता चला आ रहा था। गाँधी मैदान की रेलिंग के सहारे हजारों लोग ऐसी घनी भीड़ में जुटे हुए थे जैसे वे दशहरे के दिन रामलीला के रथ को खींचने के लिए जुटते हैं।
चारों ओर भय और शोरगुल का वातावरणः-- धीरे-धीरे हरियाली पानी में डूबती जा रही थी। इस बीच एक गँवार मुस्टंडा बोला- 'ईह! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए अब बूझो!' लेखक को लगा यह आम दुखी ग्रामीण के मन की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है।
शाम के साढ़े सात बजे:-- पटना आकाशवाणी शाम सात बजे समाचार प्रसारित हो रहा था - 'पानी हमारे स्टूडियो की सीढ़ियों तक पहुँच चुका है और किसी भी क्षण स्टूडियो में प्रवेश कर सकता है।' लेखक का दिल दहल उठा। मित्र भी भयभीत हो उठा। किंतु वे तुरंत ही सँभल गए क्योंकि उनके चारों ओर खड़े लोग परेशान नहीं थे, बल्कि उत्साहित थे। हाँ, दुकानों में जरूर हड़बड़ी थी। इसलिए सामानों को ऊपर ले जाया जा रहा था। पान वालों की बिक्री अचानक बढ़ गई थी। इस भीड़ में केवल लेखक और उसका मित्र ही मायूस थे। उन्हें लगा कि अभी-अभी लोग उनकी कायरता पर हँस पड़ेंगे। वहाँ कोई पटना के बह जाने की कोई ताश खेलने की तो कोई इन्कम टैक्स के छापे की बातें कर रहा था।
बाढ़ से बचने की तैयारी में कटी रात-राजेंद्र नगर चौराहे के 'मैगजिन कॉर्नर' पर पत्र-पत्रिकाएँ पहले की तरह बिछी हुई थीं। लेखक ने कुछ पत्रिकाएँ खरीदीं। मित्र को कहा- कल जो कम पानी में होगा, वह अधिक पानी में घिरे मित्र की सहायता के लिए आएगा।
जनसंपर्क की गाड़ी लाउडस्पीकर से ऐलान कर रही थी कि बाढ़ का पानी रात के बारह बजे तक लोहानीपुर कंकड़बाग और राजेंद्र नगर में घुस सकता है। आप सावधान हो जाएँ। सावधान हो जाएँ की प्रतिध्वनि बार-बार गूँज उठती थी।
लेखक ने पत्नी से पूछा-गैस का क्या हाल है? पत्नी ने बताया कि एक-दो दिन तक ही चल पाएगा सिलेंडर। सारे राजेंद्र नगर में सावधान सावधान की ध्वनि गूँजने लगी। सारा शहर जगा हुआ है। पश्चिम की ओर से आवाजें आ रही हैं-लगता -रात के एक-डेढ़ बजे तक पानी राजेंद्र नगर पहुँचेगा। लेखक को चाहकर भी नींद नहीं आती।
मसखरे युवकों का विरोध:--- 1967 में जब पुनपुन का पानी राजेंद्र नगर में घुस आया तो युवतियाँ फिल्मी दृश्य की भाँति नाव पर पिकनिक का मजा लूटने के लिए चल पड़े। एक युवती कॉफी पाउडर मथने लगी। कुछ मनचले युवक- दूसरी पत्रिका पढ्ने लगी। कोई नवयुवक फिल्मी अंदाज में 'डायलॉग' बोल रहा था। रेडियो पर तेज आवाज में गाना बज रहा था-'हवा में उड़ता जाए, मोरा लाल दुपट्टा मलमल का'। तभी गोलंबर के पास स्थित चारों ब्लॉकों की छतों पर खड़े | लड़कों ने उन पर इतनी सीटियों, किलकारियों और फब्तियों की बौछार की कि उनके लाल होंठ काले पड़ गए। उनकी सारी प्रदर्शन वृत्ति धूल में मिल गई।
अन्ततः बाढ़ का आना:-- रात के ढाई बज गए। पानी नहीं आया। न जाने क्या देवीय चमत्कार हो गया। अचानक लेखक को अपने स्वजनों और मित्रों की याद आई। उसने उन्हें टेलीफोन घुमाया। परंतु टेलीफोन बंद थे। मन में आया कि इस समय कुछ लिखना चाहिए। परंतु नहीं। अचानक पुरानी यादें आने लगीं। पिछले साल अगस्त में छाती भर पानी में खड़ी एक गर्भवती स्त्री की मूर्ति मन में आ गई, जो गाय की तरह टुकुर टुकुर निहार रही थी। ऐसे ही भेड़ों के झुंड की कल्पना करते-करते लेखक की आँखें मुंद गई।
अचानक लेखक को नींद से जगाया गया। सुबह के साढ़े पाँच बज गए थे। चारों ओर शोर था आ रहता है! आ रहली है पनियों पानी आ गेली। लेखक ने आँख मलते हुए देखा झाग-फेन लिए पानी आ रहा है। ठीक वैसा जैसा कल शाम कॉफी हाउस के पास आया था। हर भंगी बस्ती के पास लगा जैसे पानी में बच्चे कूद रहे हैं। परंतु नहीं। वहाँ एक मोड़ था। अतः अवरोध को पाकर पानी उछल उछल पड़ता था। पुलिस चौकी के पास पानी का पहला रेला आया। ब्लॉक नंबर चार के नीचे भी पानी की लहरें नाचने लगीं।
लेखक दौड़कर छत पर चला गया। चारों ओर जल का कोलाहल था । लहरों का नर्तन। गोलंबर के गोल पार्क के चारों नोर पानी ही पानी। तेजी से बढ़ता पानी लहरें बहुत तेज़ हैं। सामने की दीवार की ईंटें डूबती जा रही हैं। बिजली के खंभे का काला हिस्सा, ताड़ के पेड़ का तना-सब डूब रहे हैं। हरियाली डूब गई। बचपन से बाढ़ देखी है, किंतु पानी का इस रह आना नहीं देखा। अगर रात को पानी आया होता तो लेखक भयभीत हो जाता। मन में आता है कि काश! इस समय एक मूवी कैमरा होता या टेप रिकॉर्डर होता या कलम होती। परंतु अच्छा ही है। कुछ भी नहीं है उसके पास ।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1:- बाढ़ की खबर सुनकर लोग किस तरह की तैयारी करने लगे?
उत्तर- बाढ़ की खबर सुनकर लोग अपनी सुरक्षा के प्रबंध और अत्यावश्यक सामानों को जुटाने में लग गए। उन्होंने आवश्यक ईंधन आलू, मोमबत्ती दियासलाई पीने का पानी और कपोज की गोलियों इकट्ठी कर ली ताकि बाढ़ से घिर जाने पर कुछ दिनों तक गुजारा चल सके।
प्रश्न 2.:-बाढ़ की सही जानकारी लेने और बाढ़ का रूप देखने के लिए लेखक क्यों उत्सुक था ?
उत्तर- लेखक ने बाढ़ को कई बार देखा था। उसने अनेक बार बाढ़ पीड़ितों की सहायता भी की थी। परंतु किसी नगर में, विशेषकर अपने नगर में पानी किस प्रकार घुसेगा यह जानना बिल्कुल नया अनुभव था। इसलिए उसे घुसते हुए पानी को देखने की बड़ी उत्सुकता थी। उसने रिक्शावाले को यही शब्द कहे थे-"चलो, पानी कैसे घुस गया है, वही देखना है।"
प्रश्न 3. सबकी जबान पर एक ही जिज्ञासा- 'पानी कहाँ तक आ गया है?'- इस कथन से जनसमूह की कौन-सी भावनाएँ व्यक्त होती हैं?
उत्तर- 'पानी कहाँ तक आ गया है'-यह जिज्ञासा सबके मन में थी। सब अपनी जवान से यही शब्द कह रहे थे। इससे जनसमूह की उत्सुकता, सुरक्षा तथा कौतुहल की भावना प्रकट होती है। सब लोग नए अनुभव को अपनी आँखों से देखना चाहते हैं। वे जीवन-मृत्यु के खेल को देखने का मोह छोड़ नहीं पाते। इस खेल में गहरा आकर्षण होता है।
प्रश्न 4. 'मृत्यु का तरल दूत' किसे कहा गया है और क्यों? उत्तरः- बाढ़ के लगातार बढ़ते जल को 'मृत्यु का तरल दूत' कहा गया है। क्योंकि बाढ़ के इस जल ने न जाने कितने प्राणियों को उजाड़ दिया था । बहा दिया था और बेघरबार करके मौत की नींद सुला दिया था। इस तरल जल के कारण लोगों को मरना पड़ा, इसलिए इसे मृत्यु का तरल दूत कहना बिल्कुल सार्थक है।
प्रश्न 5. आपदाओं से निपटने के लिए अपनी तरफ से कुछ सुझाव लिखिए।
अथवा
बिहार में प्रतिवर्ष बाढ़ की समस्या बरसात के दिनों में उत्पन्न हो जाती है। बाढ़ से बचने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव लिखिए।
अथवा
बाद की खर सुनकर आप के समय हम क्या करना ह
उत्तरः-- आपदाओं से निपटने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए:--
• सरकार को सभी प्रकार के संभावित खतरों से निपटने के लिए साधन तैयार रखने चाहिए। उस सामान को लगातार
• स्वयंसेवी संस्थाओं को बढ़-चढ़कर उत्साहपूर्वक आपदा से निपटने के लिए आगे आना चाहिए।
देखरेख होनी चाहिए ताकि आपदा के समय उनका सदुपयोग किया जा सके ।
• सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं के बीच गहरा तालमेल बिठाने के प्रयास होने चाहिए।
• उत्साही नवयुवकों- नवयुवतियों को शीघ्र ही किसी योजनाबद्ध कार्य में जुड़कर सहयोग करना चाहिए।
प्रश्न 6. 'ईह। जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू देखने भी नहीं गए- अब बूझो।'
इस कथन द्वारा लोगों की किस मानसिकता पर चोट की गई है?
उत्तर:-- इस कथन द्वारा आम लोगों के मन में बैठी ईर्ष्या-द्वेष की दुर्भावना पर गहरी चोट की गई है। गाँव और शहर का अंतर सदा-से बना रहा है। अतः ग्रामीणों और नगरवासियों के मन में आपसी कटुता भी पर किए रहती है। यहाँ कटुता उस गँवार मुस्टंडे के वचनों से प्रकट हुई है। वह मुस्टंडा चाहता है कि बाढ़ से पटनावासियों का भी बुरा हो, ताकि ये भी गाँववासियों की तरह दुखी हो।
प्रश्न 7:- खरीद विक्री बंद हो चुकने पर भी पान की बिक्री अचानक क्यों बढ़ गई थी?
उत्तर:-- बाढ़ आने का खतरा बढ़ गया था। इसलिए अन्य सामानों की दुकानें जहाँ बंद होने लगी थीं. वहीं पान की बिक्री अधिक बढ़ गई थी क्योंकि लोग बाढ़ को देखने के लिए बहुत बड़ी संख्या में इकट्ठे हो गए थे। वे बाद से भयभीत नहीं थे बल्कि हँसी-खुशी और कौतुहल से युक्त थे। ऐसे समय में पान उनके लिए समय गुजारने का सबसे अच्छा साधन था।
प्रश्न 8. जब लेखक को यह अहसास हुआ कि उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने क्या-क्या प्रबंध किए?
उत्तरः- जब लेखक को अहसास हुआ कि उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने सबसे पहले ईंधन का प्रबंध किया। फिर खाने के लिए आलू, प्रकाश के लिए मोमबत्ती और दियासलाई पीने के लिए पानी तथा कपोत की गोलियाँ एकत्र कीं। उसने बाद आने पर छत पर चले जाने का भी प्रबंध सुनिश्चित कर लिया।
प्रश्न 9:- बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में कौन-कौन सी बीमारियों के फैलने की आशंका रहती है?
उत्तर- बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में अकसर पकाही घाव हो जाता है। बाढ़ के गदे सड़े जल के कारण लोगों के पाँवों की उँगलियाँ सड़ जाती हैं और तलवों में घाव हो जाते हैं।
प्रश्न 10:- नौजवान के पानी में उतरते ही कुत्ता भी पानी में कूद गया। दोनों ने किन भावनाओं के वशीभूत होकर ऐसा किया?
उत्तर- नौजवान और कुत्ता परस्पर गहरे आत्मीय थे। दोनों एक-दूसरे के सच्चे साथी थे। उनमें मानव और पशु का भेदभाव भी नहीं था। वे एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे। यहाँ तक कि नौजवान को कुत्ते के बिना मृत्यु भी स्वीकार नहीं थी। इस व्यवहार से उनकी गहरी मैत्री का परिचय मिलता है।
प्रश्न 11. 'अच्छा है, कुछ भी नहीं। कलम थी, वह भी चोरी चली गई। अच्छा है, कुछ भी नहीं मेरे पास 'मूवी कैमरा, टेप रिकॉर्डर आदि की तीव्र उत्कंठा होते हुए भी लेखक ने अंत में उपर्युक्त कथन क्यों कहा?
अथवा
लेखक के पास कलम मूवी कैमरा और टेपरिकार्डर आदि का न होना सुखद एहसास भी था क्यों?
उत्तर- लेखक बाढ़ के अनुभव को पूरी तरह जीना और भोगना चाहता है। उधर उसका कलाकार मन चाहता है कि वह बाढ़ के दृश्यों को सँजो लें। यदि उसके पास मूवी कैमरा, टेप रिकॉर्डर या कलम होती तो वह बाद का निरीक्षण करने की बजाय उसका चित्रण करने में लग जाता। तब जीवन को साक्षात भोगने का अवसर उसके हाथ से निकल जाता।
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