हरिद्वार (हरद्वार) की महत्व । हरद्वार जिसे वर्तमान में हरिद्वार के नाम से जाना जाता है इसकी महिमा अनन्त है। जिसे शास्त्रों अथवा पुराणों में...
हरिद्वार (हरद्वार) की महत्व ।
हरद्वार जिसे वर्तमान में हरिद्वार के नाम से जाना जाता है इसकी महिमा अनन्त है। जिसे शास्त्रों अथवा पुराणों में बहुतायत गाया और बताया गया है।
• शास्त्रों और पुराणों में हरिद्वार का अत्यधिक महत्व क्यों है ?
यह आप निम्नलिखित पोस्ट में पढ़िए ।
1. हरिद्वार को सर्वप्रथम हर का द्वार कहा जाता है क्योंकि हरद्वार अर्थात हर ( देवो के देव महादेवजी ) के कैलाश से जुड़ी पर्वत श्रृंखलाओं के पर्वत हरद्वार से शुरू होते हैं जो हर ( देवाधिदेव महादेव ) के द्वार कैलाश तक जाते हैं और हरद्वार महादेवजी का अत्यंत प्रिय स्थान भी है इसी कारण से भी इसे हर का द्वार कहा जाता है।
2. हरिद्वार वह स्थान है जो संसार मे दूसरे स्थान पर बसा था अर्थात पृथ्वी पर सर्वप्रथम काशी मुक्तिक्षेत्र अर्थात आनंदवन की रचना हुई थी। जिसे भगवान सदाशिव ने अपने शिवलोक में त्रिशूल से रचकर धरती पर स्थापित किया जो मुक्ति देने वाली काशी के नाम से त्रिलोक विख्यात है। उसके बाद ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र दक्षप्रजापति को राज्य करने के लिए धरती पर जो स्थान प्रदान किया वो हरिद्वार ही था। यहीं पर राजा दक्ष ने अपनी नगरी बसाई थी और यहीं पर वो राज्य करते थे। यही दक्षपुरी के नाम से पुराणों में वर्णित स्थान है। ये संसार में बसा दूसरा नगर था । पहला काशी, दूसरा हरिद्वार इसलिए भी इसकी महत्व है ।
3. हरिद्वार में 'कुम्भ' से छलका अमृत गिरा था। जिसे स्वर्भानु नामक दैत्य लेकर भाग रहा था। जो बाद में विष्णु भगवान के द्वारा सर-विच्छेद के कारण राहु केतु के रूप में जाना गया और नवग्रहों में स्थापित हुआ। अमृत छलककर गिरने के कारण भी हरिद्वार की महिमा बढ़ी और यह कुंभनगरी बना, जहाँ प्रत्येक 12 वर्ष बाद कुम्भ होने लगा ।
4. पुराणों और शोध में मिले तथ्यों से स्पष्ट हुआ है कि धरती पर सर्वप्रथम भगवान विष्णु के चरण जिस स्थान पर पड़े वो हरिद्वार ही था। बाद में हरिद्वार के मायापुरी क्षेत्र में ही भगवान विष्णु और माता महालक्ष्मी का विवाह संपन्न हुआ था। इन्हीं दोनों कारणों से यह स्थान भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय हुआ और इसे भगवान हरि ने अपने नाम से सम्बोधित करके हरिद्वार बनाया तबसे इसके दो नाम पड़े हर का द्वार 'हरद्वार' और हरि का भी द्वार 'हरिद्वार' संसार का पहला क्षेत्र जो हर और हरि दोनों को अतिप्रिय है । और दोनों के नाम से जाना जाता है।
5. राजा दक्ष ने परमेश्वरी माता आदिशक्ति की तपस्या करके उनसे पुत्री रूप में अपने घर जन्म लेने का वर मांगा था। तो माँ उसके घर पैदा हुई। राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप मे आदिशक्ति स्वरूपा भगवती माता सती का जन्म इसी हरिद्वार में हुआ था। यही उनका बालपन और युवावस्था गुजरी यहीं पर उन्होंने तप करके महादेवजी को पति रूप में प्राप्त किया। तब भगवान महादेवजी ब्रह्मा विष्णुजी इंद्र सूर्य, चन्द्र आदि देवों और लक्ष्मी, सरस्वती, इंद्राणी, गायत्री आदि देवियों और ऋषि मुनियों तथा अपने गणों सहित बारात लेकर यहाँ पर आए थे और माता सती से विवाह किया था इस कारण से भी हरिद्वार की महानता बढ़ती है।
6. राजा दक्ष ने विश्व विख्यात जो यज्ञ किया था वो भी हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में ही किया था जहाँ राजा दक्ष का महल था । पुराणों में वर्णित प्राचीन नगरी कनखल में श्री दक्षमंदिर दर्शनीय है।
7. गंगौत्री जहाँ से गंगाजी का उद्गम-स्थल है। उसका रास्ता भी हरिद्वार से होकर ही जाता है। गंगाजी हरिद्वार से होकर ही अन्य स्थानों पर जाती है इसीलिए इसकी महिमा माँ गंगा की कृपा से और भी बढ़ गयी है ।
8. चारधाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ तक जाने से पूर्व हरिद्वार में पूजन करना अनिवार्य है। जो देव आज्ञा है क्योंकि शास्त्रों अथवा पुराणों में चारधाम तक जाने का मार्ग भी हरिद्वार से होकर ही जाता है ।
9. महादेवजी की पुत्री माता मनसा जो वासुकि नागों के राजा की बहन थी। उनका निवास स्थान भी हरिद्वार में ही है जो माँ मनसा देवी के नाम से विख्यात है जहां हजारों भक्तगण हर दिन माँ के दर्शन करने दूर दूर से आते है मन की कामना पूरी करने के कारण माँ को मनसा देवी कहा जाता है।
10. रामायणकाल में अहिरावण और महिरावण श्रीराम को जब पाताल में देवी के सामने बलि देने के लिए ले गए थे तो महादेवजी के अवतार हनुमानजी ने देवी से श्रीराम की बलि टालने का आग्रह किया था। तब देवी ने हनुमानजी से कहा था मैं इस पातालपुरी को त्यागकर शिवपुरी अर्थात हरिद्वार की पर्वत श्रृंखला पर जा रही हूँ। तुम इन दोनों असुरो की बलि मुझे दो जिससे मुझे प्रसन्नता होगी और पाताल में धर्म स्थापना होगी तब जो देवी पाताल से उठकर हरिद्वार के पर्वतों पर विराजी वो माँ चंडीदेवी के नाम से विश्व विख्यात है। रामायणकाल में रावण को जीतने के बाद और अयोध्या आने के बाद श्रीराम ने सीताजी लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमानजी महाराज सहित यहाँ आकर माता के दर्शन किये थे और माँ चंडीदेवी का आशीर्वाद लिया था ।
11. माता सती ने जब दक्ष यज्ञ में अपने देह को यज्ञकुंड में जला दिया था तब महादेवजी उनका देह लेकर बहुत समय तक पृथ्वी भ्रमण करते रहे। और उन्होंने संसार को भुला दिया
तब विष्णुजी ने अपने कांता नामक चक्र से सती माता के शरीर को 52 भागो में विच्छेद किया था। जिनमें से माता सती का हृदय हरिद्वार में गिरा था और मायादेवी के नाम से विख्यात हुआ ये मायादेवी हरिद्वार के निवासियों की कुल देवी बनी जिससे हरिद्वार का महत्व और बढ़ गया।
12. ऋषि मुनियों अवतारों तथा देवी देवताओं की अतिप्रिय स्थली होने के कारण ही इसे देवभूमि हरिद्वार भी कहते है ।
13. जिस पहाड़ की चोटी पर बैठकर महादेवजी ने दक्ष यज्ञ विध्वंस हेतु वीरभद्र, देवी महाकाली, भैरव, क्षेत्रपाल, नंदी, नवदुर्गा आदि सेना की कमांड की थी उन्हें नेत्तृत्व किया था वो पहाड़ की चोटी भी हरिद्वार में ही है जो नीलपर्वत के नाम से जानी जाती है ।
14. हरिद्वार संसार का एक मात्र स्थान है जो भगवान महादेव आदिशक्ति माता भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी इन चारों को अतिप्रिय है। इसीलिए यहाँ पर पूरे वर्ष हर, हरि और माँ के भक्तों का आवागमन लगा रहता है। श्रद्धालु दूर -दूर से इस दिव्य स्थान पर दर्शन हेतु आते हैं।
15. भीम ने अपने गौडे तक जल भरकर जिस स्थान पर तप किया था वो स्थान भीमगोडा कहलाया जो हरिद्वार में ही है ।
हरिद्वार की महत्ता का वर्णन अनन्त है। जो स्वयं में सतयुग से वर्तमान काल तक अनेक कथाएँ समाहित किए हुए है।
🕉 हर -हर शंभू 🕉
🇮🇳 राजेश राष्ट्रवादी
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