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जानिए ! कैसे मृत-सत्यवान जीवित हो उठा ??Janiye ! Kaise mrit - Satyavan jivit ho utha??

  जानिए ! कैसे मृत-सत्यवान जीवित हो उठा ?? Janiye ! Kaise mrit - Satyavan jivit ho utha?? पौराणिक, प्रामाणिक एवं प्रचलित वट सावित्री व्रत कथ...

 

जानिए ! कैसे मृत-सत्यवान जीवित हो उठा ??

Janiye ! Kaise mrit - Satyavan jivit ho utha??


पौराणिक, प्रामाणिक एवं प्रचलित वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार सावित्री के पति अल्पायु थे, उसी समय देव ऋषि नारद आए और सावित्री से कहने लगे की तुम्हारा पति अल्पायु है। आप कोई दूसरा वर मांग लें। पर सावित्री ने कहा- मैं एक हिन्दू नारी हूँ, पति को एक ही बार चुनती हूँ। इसी समय सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी।सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लिटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुँचे है। सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं । उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहाँ मेरे पति रहेंगे,  मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है।सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले- मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी ?



तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की माँ बनने का वर माँगा। सावित्री के यह तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज आश्चर्य में पड गए। क्योंकि वे अपने वचनों से पीछे नहीं हट सकते थे। अतः  उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा।

सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहाँ सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया। 

तभी से वट सावित्री अमावस्या और वट सावित्री पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष का पूजन-अर्चन करने का विधान है। यह व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है।

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