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कक्षा-10, क्षितिज भाग-2 पाठ- बालगोबिन भगत, पाठ का सार, अभ्यास प्रश्नोत्तर

कक्षा-10, क्षितिज भाग-2 पाठ- बालगोबिन भगत, पाठ का सार,  अभ्यास प्रश्नोत्तर         बालगोबिन भगत  पाठ का सारः-- बालगोबिन भगत की वेशभूषा एवं व...


कक्षा-10,

क्षितिज भाग-2

पाठ- बालगोबिन भगत,

पाठ का सार, 

अभ्यास प्रश्नोत्तर 


       बालगोबिन भगत 

पाठ का सारः--

बालगोबिन भगत की वेशभूषा एवं व्यक्तित्व:-- 

बालगोबिन भगत मंझला कद, गोरा रंग, उम्र साठ साल से ऊपर, सफ़ेद बाल, लंबी दाढ़ी या जटाएं नहीं पर सफेद बालों से जगमग करता 'उनका चेहरा'। वे कपड़े बहुत कम पहनते थे। कमर में एक लंगोटी और सिर पर कबीरपंथियों की कनफटी टोपी पहनते थे। सदियों में एक काली कमली ओढते थे। माथे पर हमेशा रामानंदी तिलक चमकता, जो नाक के किनारे से शुरू होता। गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडोल माला होती थी। दिखने में बालगोविन भगत साधु लगते थे, पर थे बिलकुल गृहस्थ लेखक को उनकी पत्नी की याद नहीं, लेकिन उनके पुत्र और पुत्रवधू को देखा था। थोड़ी खेती-बाड़ी का काम था और एक अच्छा साफ़-सुथरा मकान भी था। गृहस्थ होते हुए भी बालगोविन भगत जी साधु थे। वास्तव में उनमें साधुओं की सभी विशेषताएँ थीं। वे कबीर को 'साहब' मानते और उन्हीं के गीतों को गाते थे, उन्हीं के आदेशों पर चलते थे, कभी झूठ नहीं बोलते थे. शुद्ध सच्चा व्यवहार करते थे। वे किसी से झगड़ा नहीं करते पर सीधी-साधी बात करने में संकोच भी नहीं करते थे। किसी की चीजों को हाथ न लगाते और बिना पूछे प्रयोग न करते। कभी-कभी लोगों को इनके व्यवहार पर आश्चर्य होता। वे कभी भी दूसरे के खेत में शौच के लिए नहीं बैठते। वे गृहस्थ थे, लेकिन उनकी सारी चीजें साहब (कबीर जी) की थी। खेत में जो भी पैदा होता, उसे सिर पर रखकर घर से दूर कबीरपंथी मठ में ले जाते, जो उन्हें प्रसाद रूप में हिस्सा मितता उसे पर से गुजर-बसर करते।

बालगोविन भगत का जादुई संगीत:- लेखक सदा ही उनके द्वारा गाए कबीर के सीधे-सादे पद सुना करते। आपाद के दिनों में गाँव के सभी लोग खेतों में काम करने जा जाते। कहीं खेतों में हल चल रहे होते, तो कहीं धान को रोपा जाता। चान के पानी मेरे खेतों में बच्चे उसे होते। औरतें सवेरे का जलपान लेकर मेड़ पर बैठती। आसमान बादलों से घिरा, कहीं धूप का नाम नहीं। ठंडी हवा चल रही होती कि अचानक बालगोबिन भगत द्वारा गाया जाने वाला गीत कानों में पड़ता। उनका सारा शरीर कीचड़ में लथपथ होता. एक-एक कर धान के को पंक्तिबद्ध रोपते और गीत गाते। उनका गीत जादू की तरह प्रभाव डालता। बच्चे झूम उठते, औरतों के उठले गुनगुनाने लगी। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते, रोपने वाली अंगुलियों एक अजीब क्रम से चलने लगतीं। उनके संगीत का जादू सबको प्रभावित करता।

भादों की अंधेरी आधी रात में भगत जी की खेजड़ी (ढपली जैसा एक छोटा वाद्य यंत्र) बजती और ये गाते, जिसका भाव होता-या तो गोद में ही है, किंतु नायिका समझती है कि वह अकेली है, चमक उठती है, चिहुँक उठती है। बादलों वाले भादों की आधी रात में उनका यह गाना अचानक चमक उत्पन्न करने वाली बिजली की तरह सबको चौका देता सारा संसार शांत वातावरण में सोया हुआ है। भगत जी का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है- तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा।

भगत जी की प्रभातियाँ :- कार्तिक महीने के आते ही बालगोविन भगत जी की प्रभातियाँ शुरू हो जातीं, जो फागुन तक चलतीं। सवेरे उठकर गाँव से दो मील दूर नदी-स्नान को जाते। नहाने धोने के बाद गाँव के बाहर पोखर के उँचे  भिंडे पर अपनी खँजड़ी लेकर गाने लगते। लेखक देर तक सोया करते थे, लेकिन एक दिन सरदी की सुबह में भगत जी का संगीत लेखक को आकर्षित कर पोखर तक से गया। उन्होंने देखा कि आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे। पूर्व दिशा में प्रातःकाल की लालिमा को शुक्र तारा और बढ़ा रहा था। खेत बगीचा, घर, सबपर धुंध छा रही थी। सारा वातावरण अजीब रहस्य से ढका हुआ लगता था। भगत जी कुश की चटाई पर पूर्व की ओर मुंह कर काली कमली ओढे अपनी खँजड़ी पर अंगुलियाँ चला रहे थे। गाते-गाते इतने मस्त हो जाते कि ऐसा लगता, मानों अभी उत्तेजित हो खड़े हो जाएँगे। कमली बार-बार उनके सिर से नीचे सरक जाती। लेखक सरदी में काँप रहा था, किंतु तारों की छाँव में भगत जी के माथे पर पसीने की बूँदें चमक पड़तीं।

भगत जी की संध्या:- गर्मियों में उनके संगीत के जादू से उमसभरी शाम भी शीतल हो जाती। अपने घर के आंगन में अपने प्रेमीजनों के साथ आसन जमाते। एक पद बालगोबिन भगत कहते, उसके पीछे प्रेमी मंडली दोहराती। धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता। स्वर के साथ-साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते। धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता भगत जी अपनी खँजड़ी लिए नाच रहे हैं। सभी भक्त अपनी सुध-बुध खो उनके साथ नृत्यशील हो जाते। सारा आँगन नृत्य और संगीत से भर जाता।

बेटे के निधन पर उत्सवः- बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरमोत्कर्ष उस दिन देखने को मिला, जब उनका इकलौता बेटा मरा था । वह बहुत सुस्त और बुद्ध था, जिस कारण भगत जी उसे और भी मानते। उनके विचारानुसार ऐसे प्राणियों पर ज़्यादा नज़र रखनी चाहिए और ज्यादा प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज़्यादा अधिकारी होते हैं। बड़े शौक से उसकी शादी कराई थी। बेटे की पत्नी बड़ी ही सुभग और सुशील थी। घर की पूरी ज़िम्मेदारी उसने सँभाल ली और भगत जी को दुनियादारी से छुटकारा दे दिया। भगत जी के बेटे की मृत्यु का समाचार लेखक को मिला। वे उनके घर गए और यह देखकर आश्चर्य चकित हो गए कि आँगन में एक चटाई पर उसे लिटाकर ऊपर सफ़ेद कपड़े से ढका हुआ था। उस पर कुछ फूल और तुलसी के पत्ते बिखेर दिए। सिरहाने एक दीपक जला रखा था। भगत जी सामने ज़मीन पर आसन जमाए गीत गाए जा रहे थे। पतोहू रो रही थी। सब उसे चुप कराने का प्रयास कर रहे थे। भगत जी अपनी पतोहू के पास जाकर उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। उनके कथनानुसार आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिणी अपने प्रेमी से जा मिली। लेखक कभी-कभी सोचते, भगत जी पागल तो नहीं हो गए। पर वे जो भी कह रहे थे, उसमें उनका विश्वास झलक रहा था, जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता रहा है।

भगत जी द्वारा लिए गए महत्त्वपूर्ण निर्णयः- बेटे के क्रिया-कर्म में पतोहू से ही आग दिलाई। श्राद्ध होते ही पतोहू के भाई को बुलाकर साथ भेजने का प्रबंध किया। उसे आदेश दिया कि दूसरी शादी कर देना । पतोहू जाना नहीं चाहती थी। वह भगत जी की सेवा में ही अपना वैधव्य गुज़ारना चाहती थी, लेकिन भगत जी नहीं माने। पतोहू रोती रही, वह जाना नहीं चाहती थी, पर भगत जी के अटल निर्णय के सामने झुकना पड़ा। उन्होंने कहा था कि यदि वह नहीं जाएगी, तो भगत जी घर छोड़कर चले जाएँगे।

भगत जी का निधनः - बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई। हर वर्ष गंगा स्नान करने जाते। उनका विश्वास संत-समागम और लोक दर्शन पर अधिक था। साधु होते हुए भी वे किसी से सहारा तथा भिक्षा लेने के इच्छुक न थे। घर से खाकर चलते और लौटकर घर पर ही खाते। रास्ते भर खँजड़ी बजाते-गाते, यदि प्यास लगती, तो पानी पी लेते। आने-जाने में चार-पाँच दिन लग जाते, पर इस लंबे उपवास में भी वही मस्ती टपकती। बूढ़े हो गए थे। एक बार लौटे तो तबीयत कुछ खराब रहने लगी। दोनों समय स्नान करना, ध्यान, गीत, खेती-बाड़ी देखना। दिन-पर-दिन शरीर कमज़ोर होता गया। सब लोग उन्हें नहाने-धोने से मना करते, आराम करने के लिए कहते, पर भगत जी हँसकर टाल देते। उस दिन शाम के समय गीत गाए, किंतु स्वर बिखरा हुआ था। ऐसा लगता था, जैसे धागा टूट गया हो और माला का एक-एक मोती बिखर गया हो। अगले दिन भोर में किसी ने भी उनका गीत नहीं सुना। जाकर देखा तो पता चला कि भगत जी नहीं रहे, सिर्फ उनका पिंजर पड़ा है।

पाठ्य पुस्तक प्रश्न:---

प्रश्न. खेतीबारी से जुड़े गृहस्य बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? 

उत्तर :-- बालगोबिन भगत जी में साधुओं की सभी विशेषताएँ थीं। वे कबीर जी को ही अपना भगवान मानते थे। भगत जी सत्यवादी, खरा बोलने वाले व नम्र स्वभाव के थे। वे किसी की चीजों को भी हाथ नहीं लगाते और न ही बिना पूछे प्रयोग करते थे। वे दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते थे। गृहस्थ जीवन जीकर भी वे मोह-माया से नहीं बँधे । पुत्र की मृत्यु को भी 'उत्सव' रूप में आनंदपूर्वक मनाना यह सिद्ध करता है कि वे साधु ही थे। सब चीज़ साहब की मानकर खेत की सारी पैदावार 'मठ' में समर्पित कर प्रसाद रूप मे ग्रहण करना, गंगा-यात्रा में कई दिन उपवास रखना आदि उनके संयम के सुंदर उदाहरण हैं। उपर्युक्त विशेषताओं के कारण ही बालगोविन भगत साधु कहलाते थे।

 प्रश्न 2. भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती 

           थी?

                       अथवा

बालगोविन भगत की पुत्रवधू की ऐसी कौन-सी इच्छा थी जिसे वे पूरा न कर सके ? कारण स्पष्ट कीजिए ।  

उत्तर :-- पुत्र की मृत्यु के बाद भगत जी अकेले पड़ गए थे। भगत जी की पुत्रवधू उन्हें अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी, क्योंकि उसे पता था कि घर में और कोई भी नहीं, जो भगत जी की सेवा करे। उसे चिंता थी कि यदि वह चली गई, तो उनके लिए खाना कौन बनाएगा? बीमार होने पर उन्हें दवाई कौन देगा? इन्हीं कारणों से वह जाना नहीं चाहती थी, परंतु भगत जी के अटल निर्णय के सामने उसे झुकना पड़ा।

प्रश्न-3 भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त की?

     अथवा

बालगोविन भगत जी ने पुत्र की मृत्यु पर पुत्रवधू को रोने के स्थान पर उत्सव मनाने के लिए क्यों कहा? पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तरः-- भगत जी ने अपने बेटे की मृत्यु को ईश्वर की इच्छा मान उसे स्वीकार किया। उन्होंने मृत्यु को आत्मा-परमात्मा का मिलन माना। उनके अनुसार • विरहिणी आत्मा परमात्मा से मिल गई। उन्होंने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढककर उसके ऊपर फूल और तुलसीदल बिखेर दिए। सिरहाने एक चिराग जलाया और उसके सामने ज़मीन पर आसन जमाकर गीत गाने लगे। गाते गाते अपनी पतोहू के पास जाकर उसे उत्सव मनाने के लिए कहा।

प्रश्न 4. भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।

उत्तरः--  बालगोविन भगत का मँझला कद, गोरा रंग था। उम्र साठ साल से ऊपर थी। सफ़ेद बाल, लंबी दाढ़ी या जटाएँ तो नहीं, पर चेहरा सफ़ेद बालों से जगमग करता। कपड़े बहुत कम पहनते थे। कमर में एक लंगोटी और सिर पर कबीरपंथियों की कनटोपी पहनते थे । सर्दियों में एक काली कमली ओढ़ते थे। माथे पर हमेशा रामानंदी तिलक चमकता, जो नाक के किनारे से शुरू होता गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला होती थी। दिखने में बालगोबिन भगत साधु लगते थे, पर थे बिलकुल गृहस्थ ।

5. बालगोविन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?

उत्तर :-- बालगोविन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए थी, क्योंकि उनकी दिनचर्या एक निश्चित दर्रे पर चलती थी। कभी किसी को उसमें परिवर्तन नजर नहीं आया। सबेरे उठकर गाँव से दो मील दूर नदी स्नान को जाते। नहाने धोने के बाद गाँव के बाहर पोखर के ऊँचे भिंडे पर अपनी खंजड़ी लेकर गाने लगते। आषाढ़ के दिनों में खेतों में काम करते हुए भजन गाते। भादों की अँधेरी रात में गा रहे होते। जब सब सोए होते, तब भगत जी का संगीत जाग रहा होता। कार्तिक महीने में प्रभातियाँ शुरू हो जातीं, जो फागुन तक चलतीं। गर्मियों में उनके संगीत के जादू से उमसभरी शाम भी शीतल हो जाती। लोग उनके संगीत को सुनकर जागते और उनके संगीत को सुनकर ही सोते थे। गृहस्थ होकर भी वे साधुता को अपनाए हुए थे।

प्रश्न  6. पाठ के आधार पर बालगोविन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए । 

उत्तर:-- बालगोबिन भगत प्रभु भक्ति के गीत श्रद्धा और विश्वास से गाते थे। उनका स्वर इतना मोहक, ऊँचा और आरोही होता था कि सुनने वाले मुग्ध हो जाते। उनका गीत जादू की तरह प्रभाव डालता। बच्चे झूम उठते, औरतों के होंठ काँप उठते, वे गुनगुनाने लगतीं। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते, रोपने वाली अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगतीं। उनके संगीत का जादू सबको प्रभावित करता। भयंकर सर्दी तथा उमसभरी गर्मी भी उनके स्वर को डिगा नहीं सकती थी। वे पूर्ण तल्लीनता से गाते थे। वालगोविन के गायन में जन-मानस को झिंझोड़ने की क्षमता थी। 'गोदी में पियवा, तेरी गठरी में लागा चोर...' जैसे गीत आधी रात में लोगों की सोई आत्मा को जगा देने की अद्भुत शक्ति रखते थे

प्रश्न-7 कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे।पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।

     अथवा 

लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी के अनुसार बालगोबिन भगत ने किस प्रकार प्रचलित सामाजिक मान्यताओं का खंडन किया?

उत्तरः--  बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे, निम्नलिखित कुछ उदाहरण इस बात को प्रमाणित करते हैं :---

- गृहस्थ होते हुए भी साधुओं जैसी वेश-भूषा तथा रहन-सहन ।

- मृत्यु को एक उत्सव के रूप में माना, उसे आत्मा का परमात्मा से मिलन कहा।

- बेटे की मृत्यु पर विलाप नहीं किया।

- पुत्र का दाह संस्कार बहू से करवाया।

- पुत्र के क्रिया-कर्म में दिखावा नहीं किया। पुत्रवधू को दूसरी शादी का आदेश दिया।

8. धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।

उत्तरः--  धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ अपने जादू से चमत्कृत कर देती थीं। पूरा गाँव खेतों में दिखाई देता था। आसमान बादलों से घिरा, धूप का कहीं कोई नाम नहीं। ठंडी हवा चलने लगती। भगत जी के कंठ से निकला एक-एक शब्द जैसे संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को स्वर्ग की ओर ले जा रहा हो और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर। बच्चे खेलते हुए झूम उठते मेड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते, वे गुनगुनाने लगतीं। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते, रोपन करनेवालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगतीं। चारों तरफ़ का वातावरण जादुई हो जाता।




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