कक्षा-11 आरोह भाग-1 पाठ का सारांश प्रश्नोत्तर पाठ - मियाँ नसीरुद्दीन पाठ का सारांश:-- कृष्णा सोबती द्वारा रचित ‘मियाँ नसीरुद्दीन'...
कक्षा-11
आरोह भाग-1
पाठ का सारांश
प्रश्नोत्तर
पाठ - मियाँ नसीरुद्दीन
पाठ का सारांश:--
कृष्णा सोबती द्वारा रचित ‘मियाँ नसीरुद्दीन' एक शब्द चित्र है, जिसमें लेखिका ने एक खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों को उजागर किया है। नानबाई विभिन्न प्रकार की रोटियाँ बनाने और बेचने वाले को कहते हैं। एक बार लेखिका दोपहर के समय जामामस्जिद की तरफ मटियामहल के गढ़ैया मुहल्ले की ओर जाती है। वह एक सामान्य-सी अँधेरी दुकान पर आटे को गूंथता देख रुक जाती है। वह सोचती है कि शायद सेवइयाँ बना रहे होंगे, परंतु पूछने पर उसे पता चलता है कि यह तो खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान है, जो छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध है।
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लेखिका जब दुकान के अंदर देखती है तो मियाँ नसीरुद्दीन चारपाई पर बीड़ी पीते हुए दिखाई देते हैं। वे अच्छी उम्र के पक्के कारीगर दिखाई दे रहे थे। लेखिका को ग्राहक समझकर उसे बुलाते हैं तो वह झिझककर उनसे कहती है कि यदि आपके पास समय हो तो कुछ सवाल पूछें। मियाँ नसीरुद्दीन ने शाही अंदाज में 'हाँ' कह दी। साथ ही यह भी पूछ लिया कि कहीं वह पत्रकार तो नहीं है क्योंकि वे अखबार निकालने और पढ़नेवाले दोनों को बेकार व्यक्ति समझते हैं।
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लेखिका उनसे पूछती है कि उन्होंने अनेक प्रकार की रोटियाँ पकाने की शिक्षा कहाँ से प्राप्त की है? मियाँ ने उत्तर दिया कि यह तो उनका खानदानी पेशा है। यह कार्य उन्होंने अपने पिता से सीखा था। पिता जी की मृत्यु के बाद उन्होंने यह व्यवसाय संभाल लिया था। उनके पिता मियाँ बरकत शाही नानबाई गढ़ैयावाले के नाम से प्रसिद्ध थे और उनके दादा आला नानबाई मियाँ कल्लन के नाम से जाने जाते थे। लेखिका ने जब उनसे पूछा कि क्या उन्हें अपने पिता अथवा दादा की कोई शिक्षा याद है तो मियाँ ने उत्तर दिया कि काम करने से आता है शिक्षाओं से नहीं। इसपर लेखिका फिर पूछती है कि जब आपने यह काम करना शुरू किया था तो आपके पिता ने आपको कोई सीख तो अवश्य दी होगी। इस पर मियाँ कहते हैं कि जिस प्रकार एक शिक्षक बच्चे को 'अलिफ़, बे, जीम' पढ़ना सिखाता है और एक दूसरी पढ़ाई होती है जिसमें बच्चे को विद्यालय में कच्ची, पक्की या दूसरी कक्षा में न बैठाकर सीधे तीसरी कक्षा में बैठाया जाता है, तो आप बताइए कि उन दो-तीन कक्षाओं का क्या हुआ, तीसरी में ही क्यों बैठाया गया ? लेखिका जब इसका उत्तर नहीं दे पाती तो वे स्वयं समझाते हैं। कि हमने पहले बर्तन धोना, भट्ठी बनाना, भट्ठी जलाना आदि सीखा तो अंत में नानबाई का कार्य सीख गए।
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लेखिका ने उनसे पूछा कि आपने खानदानी नानबाई होने की बात कही थी। क्या यहाँ और भी नानबाई हैं? इस पर मियाँ ने बताया कि है तो बहुत, परंतु वे खानदानी नहीं हैं। उन्होंने कोई पुरानी बात याद करते हुए कहा कि एक बार बादशाह ने हमारे बुजुर्गों से पूछा था कि क्या वे कोई नई चीज़ खिला सकते हैं तो बादशाह की आज्ञा से उन्होंने ऐसी चीज़ बनाई थी जो न तो आग से पकी थी न ही पानी से बनी थी। लेखिका के उस चीज़ के बारे में पूछने पर मियाँ ने केवल इतना कहा कि यह न पूछिए, क्योंकि खानदानी नानबाई तो कुएँ में भी रोटी पका सकता है। इस पर लेखिका ने पूछा कि उनके बुजुर्गों ने शाही बावर्ची-खाने में भी काम किया था ? इसपर मियाँ ने उत्तर दिया वि यह बात तो पहले ही हो चुकी है। तब लेखिका बादशाह का नाम पूछती है। मियाँ नहीं बता पाते और जब लेखिका बहादुरशाह जफ़र क नाम लेती है तो मियाँ खीजकर कहते हैं कि उन्हीं का नाम लिख लीजिए। लेखिका को अपनी ओर टकटकी लगाकर देखते हुए देखकर अपने कारीगर को भट्ठी सुलगाने के लिए कहते हैं। लेखिका उनसे उनके बेटे-बेटियों के बारे में पूछना चाहती थी, पर कारीगर के ब में पूछती है कि क्या ये आपके शिष्य हैं? मियाँ बताते हैं कि वे इन्हें दो रुपए मन आटे की और चार रुपए मन मैदे की मज़दूरी देते हैं मियाँ अपनी भट्टी पर बाकरखानी, शीरमाल, ताफ़तान, बेसनी, खमीरी, रूमाली, गाव, दीदा, गाज़ेबान, तुनकी आदि रोटियाँ बनाते हैं। तुन रोटी पापड़ से भी अधिक पतली होती है। मियाँ अतीत में खो जाते हैं और एक गहरी साँस लेकर कहते हैं कि वह ज़माना चला गया पकाने-खाने की लोग इज़्ज़त करते थे, अब तो तंदूर से निकली, खाई और बस सब समाप्त
पाठ के साथः---
प्रश्न:-1 मियाँ नसीरुद्दीन को 'नानबाइयों का मसीहा' क्यों कहा गया है ?
उत्तरः-- लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा इसलिए कहा है क्योंकि वे स्वयं को खानदानी नानबाई कहते हैं। वे अन्य नानबाइयों के मुकाबले में स्वयं को श्रेष्ठ इसलिए मानते हैं क्योंकि उन्होंने नानबाई का प्रशिक्षण अपने परिवार की परंपरा से प्राप्त किया है। उनके पिता मियाँ बरकत शाही नानबाई गढ़यावाले के नाम से प्रसिद्ध थे और उनके बुजुर्ग दादा भी यही काम करते थे। वे बादशाह को भी नई-नई चीजें बनाकर खिलाते थे तथा उनकी प्रशंसा प्राप्त करते थे। मियाँ नसीरुद्दीन स्वयं छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न 2. लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थी ?
उत्तरः-- लेखिका एक दिन दोपहर के समय जामा मस्जिद के पास मटियामहल के पास से निकलती है। वह वहाँ से गढ़या मुहल्ले की तरफ निकल जाती है। वहाँ उसकी नज़र एक बिल्कुल सामान्य-सी अंधेरी दुकान पर पड़ती है। वहाँ वह निरंतर पट-पट की आवाज करते हुए आटे के ढेर को गूँथा जाना देखकर ठिठक जाती है। उसने सोचा कि शायद ये लोग इस आटे से सेवइयाँ बनाते होंगे। जब उसने पूछा तो उसे पता चला कि यह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान है। मियाँ नसीरुद्दीन छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध थे। वह उनसे उनकी इस कारीगरी का रहस्य जानने के लिए उनके पास जाती है कि उन्होंने नानबाई का प्रशिक्षण कहाँ लिया था ? और वे इतने प्रसिद्ध कैसे हो गए ?
प्रश्न-3 बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?
उत्तरः-- लेखिका ने जब मियाँ नसीरुद्दीन से उनके खानदानी नानबाई होने का रहस्य पूछा तो उन्होंने बताया कि उनके पिता शाही नानबाई गढ़यावाले के नाम से और दादा आला नानबाई के नाम से प्रसिद्ध थे। उनके बुजुर्ग बादशाह के लिए भी रोटियाँ बनाते थे। एक बार बादशाह ने उनके बुजुर्गों को ऐसी चीज बनाकर खिलाने के लिए कहा जो न आग से पके और न पानी से बने। उनके बुजुर्गों ने ऐसी चीज बादशाह को बनाकर खिलाई और बादशाह ने उनकी प्रशंसा भी की। लेखिका ने जब उस बादशाह का नाम पूछा तो वे नाराज हो गए, क्योंकि उन्हें किसी बादशाह का नाम स्मरण नहीं था। लेखिका ने जब बहादुर ज़फ़र का नाम लिया तो उन्होंने खीजकर कहा कि यही नाम लिख लीजिए। लेखिका के इस प्रकार के प्रश्नों से मियाँ परेशान हो गए थे और उनकी दिलचस्पी लेखिका के प्रश्नों में समाप्त होने लगी।
प्रश्न-4 मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मजमून न छेड़ने का फ़ैसला किया- इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :-- नसीरुद्दीन अपने बुजुगों की प्रशंसा करते हुए लेखिका को बताते हैं कि उनके बुजुर्ग बादशाह को उसकी मनपसंद चीज खिलाकर नके प्रशंसा के पात्र बनते थे। जब लेखिका उनसे बादशाह का नाम पूछती है तो वे खीज उठते हैं, क्योंकि उन्हें बादशाह का नाम याद था। यह भी संभव है कि उन्होंने काल्पनिक किस्सा सुना दिया हो। वे लेखिका की बातों को टालकर अपने कारीगर से भट्ठी सुलगाने लिए कहते हैं। लेखिका उनसे उनके बेटे-बेटियों के बारे में भी पूछना चाहती थी किंतु उनके चेहरे पर आने वाले क्रोध के भावों को कर वह यह नहीं पूछती और कारीगरों के संबंध में पूछने लगती है कि क्या ये आपके शिष्य हैं? मियाँ स्पष्ट करते हैं कि केवल शिष्य नहीं है, बल्कि दो रुपए मन आटे की और चार रुपये मन मैदे की मजदूरी भी लेते हैं। वह भट्ठी पर पकने वाली रोटियों के बारे में ती है तो मियाँ उसकी वार्ता में विशेष रुचि न दिखाते हुए उससे छुटकारा पाने के लिए रोटियों की विभिन्न किस्मों के नाम गिना देते कि वे बाकराखानी, शीरमाल, ताफतान, बेसनी, रूमाली, गाव, दोदा, गारो बान, तुनको आदि रोटियाँ पकाते हैं।
प्रश्न:-5 पाठ में नसीरुद्दीन का शब्द-चित्र लेखिका ने कैसे खींचा है?
उत्तर:-- लेखिका के अनुसार मियाँ नसीरुद्दीन सत्तर वर्ष के हैं। वे चारपाई पर बैठे हुए बोड़ो का मजा ले रहे हैं। मौसमों की मार से उनका चेहरा पक गया है। उनकी आँखों में काइयाँ भोलापन और पेशानी पर मैंजे हुए कारीगर के तेवर हैं। वे पंचहजारी अंदाज से सिर हिलाकर बात करते हैं। अखबारवाले उन्हें निठल्ले लगते हैं। वे छप्पन प्रकार की रोटियाँ पकाने के लिए प्रसिद्ध हैं। नानवाई का प्रशिक्षण उन्होंने अपने पिता से लिया था। बात को अपने हाथ से निकलता देख वे खोज जाते हैं और बात पलट देते हैं।
पाठ के आस-पासः--
प्रश्न:-1 मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं ?
उत्तरः-- मियाँ नसीरुद्दीन की निम्नलिखित बातें हमें अच्छी लगी हैं-
(i) मियाँ नसीरुद्दीन का पंचहजारी अंदाज़ से सिर हिलाकर लेखिका के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए थोड़ा समय निकालने की बात कहना
(ii) मियाँ नसीरुद्दीन का अखबार बनाने और पढ़ने वालों को निठल्ला कहना।
(iii) लेखिका को नानबाई का प्रशिक्षण प्राप्त करने का ढंग बताना।
(iv) अपने पिता और दादा के नानबाई के रूप में प्रसिद्ध होने का वर्णन करते हुए भाव-विभोर हो जाना ।
(v) गुरु और शिष्य के उदाहरण द्वारा शिक्षा, प्रशिक्षण आदि का महत्व बताना ।
(vi) अपने बुजुर्गों की प्रशंसा में बादशाह से संबंधित कथा सुनाना।
प्रश्न 2. तालीम की तालीम ही बड़ी चीज होती है- यहाँ लेखिका ने 'तालीम' शब्द का दो बार प्रयोग किया है? क्या
दूसरी बार आए तालीम शब्द की जगह कोई अन्य शब्द रख सकते हैं? लिखिए।
उत्तरः-- 'यहाँ लेखिका ने 'तालीम' शब्द का दो बार प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि पहले 'तालीम' शब्द का अर्थ 'शिक्षा' अथवा ' प्रशिक्षण' है। दूसरे 'तालीम' शब्द का अर्थ 'पालन करना' अथवा 'आचरण करना'। इस प्रकार इस पूरे वाक्य का अर्थ हुआ-- 'जो शिक्षा प्राप्त की है उसके अनुसार आचरण करना ही महत्वपूर्ण है।' इस वाक्य को इस प्रकार भी लिख सकते हैं-'तालीम का पालन करना ही बड़ी चीज होती है।' इस प्रकार दूसरी बार आए 'तालीम' शब्द के स्थान पर 'पालन करना' लिख सकते हैं।
प्रश्न 3. मियाँ नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं जिसने अपने खानदानी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान समय में प्रायः लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं। ऐसा क्यों?
उत्तरः-- वर्तमान समय में लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को इसलिए नहीं अपना रहे हैं क्योंकि आधुनिक युग में व्यवसाय के अनेक नए क्षेत्र गए हैं। पुराने जमाने में लोग अपने खानदानी व्यवसाय को ही अपना लेते थे। माता-पिता अपनी संतान को घर से बाहर नहीं जाने दे चाहते थे क्योंकि आवागमन तथा संचार के साधन पर्याप्त नहीं थे। आज आवागमन के अति आधुनिक तीव्रतम साधन उपलब्ध हैं परस्पर वार्तालाप की अनेक आधुनिक संचार सुविधाएँ भी प्राप्त हैं, इसलिए लोग अपना पारंपरिक व्यवसाय छोड़ कर नए-नए व्यवस अपना रहे हैं तथा देश-विदेश में कहीं भी जाने के लिए तैयार रहते हैं। इससे आर्थिक लाभ भी बहुत हो रहा है।
प्रश्न 4. मियाँ कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो ? वह तो खोजियों की खुराफ़ात है-अखबार की भूमिका को देखते हुए इसपर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तरः-- अखबार में पत्रकार की प्रमुख भूमिका होती है। वह इधर-उधर घूम-फिरकर समाचार एकत्र करता है। उसके लिए दिन दिन नहीं होता और रात रात नहीं होती। वह निरंतर इसी खोज में लगा रहता है कि उसे कोई ताज़ा और सनसनीखेज समाचार मिले तो वह अपनी अखबार को भेज सके। उसके लिए कुत्ता यदि आदमी को काटे तो यह कोई समाचार नहीं होता। इसके विपरीत यदि आदमी कुत्ते को काट ले तो यह समाचार बन जाता है। अपने समाचार की पुष्टि के लिए उसे कई लोगों से पूछताछ भी करनी पड़ती है। कई लोग तो उसे ठीक से सहयोग देते हैं तो कई बार उसे दुत्कार भी सहन करनी पड़ती है। वह खुराफ़ाती न होकर समाज को उसका आईना दिखानेवाला सच्चा समाज सेवक होता है।
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