कक्षा-11 पुस्तक- आरोह प्रश्नोत्तर पद - व्याख्या मीरा -पद मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई...
कक्षा-11
पुस्तक- आरोह
प्रश्नोत्तर
पद - व्याख्या
मीरा -पद
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छांड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई ?
संतन ढिग बैठि -बैठि, लोक-लाज खोयी
अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गई, आणंद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरां लाल गिरधर ! तारो अब मोही
शब्दार्थः--
पति- स्वामी,
सोई- वही ।
कानि-लाज, मर्यादा। ढिंढढग
ढिंग- निकट
अंसुवन जल- आँसुओं के जल, आँसू रूपी जल ।
प्रेम बेलि - प्रेम की बेल ।
विलोयी - मथी।
दधि-दही।
घृत- घी।
काढ़ि - निकाल।
डारि दयी -छोड़ दी।
छोयी- छाछ, सारहीन अंश ।
राजी - प्रसन्न ।
प्रसंग :- प्रस्तुत पद भक्तिकालीन कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित है। इसमें कवयित्री ने भगवान कृष्ण को पति रूप में मानकर उनके प्रति अपनी अनन्य भक्ति भावना का परिचय दिया है।
व्याख्या:- मीरा जी कहती हैं—मेरे तो सर्वस्व श्री कृष्ण हैं। उनके सिवा मेरा किसी से कोई संबंध नहीं है। मोर मुकुट धारण करनेवाले श्रीकृष्ण ही मेरे पति हैं। मैंने कुल की मर्यादा को छोड़कर उन्हें अपना लिया है, इसलिए मेरा अब कोई क्या कर सकता है अर्थात मुझे अब किसी की परवाह नहीं है। मैं लोक- -लाज की चिंता छोड़कर संतों के पास बैठती हूँ। मैंने आँसुओं के जल से सींच-सींचकर प्रेम-बेल का बीज बोया है। अभिप्राय यह है कि श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की प्रेम-बेल का विकास हो चुका है। अब उसे किसी भी प्रकार से नष्ट नहीं किया जा सकता। अब मीरा की कृष्ण प्रेम रूपी बेल पूरी तरह फैल गई है और उसमें आनंद रूपी फल लगने लगे हैं। अर्थात मीरा को कृष्ण भक्ति में आनंद की प्राप्ति होने लगी है। मीरा का कहना है कि उसने कृष्ण की प्रीति रूपी दूध को भक्ति की मथनी से बड़े प्रेम से बिलोया है। उसमें से दही, मक्खन, घी को तो निकाल लिया है परंतु छाछ को छोड़ दिया है अर्थात मीरा ने सार युक्त तत्वों को ग्रहण करके सारहीन अंश को छोड़ दिया है। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रेम और भक्ति को अपने पास रखकर बाकी सब कुछ त्याग दिया है। मीरा जी कहती हैं कि वे प्रभु भक्त को देखकर तो प्रसन्न होती हैं परंतु जगत को देखकर रो पड़ती है। भाव यह है कि माया-मोह में लिप्त प्राणियों की अंत की दयनीय दशा के बारे में सोचकर मीरा का हृदय दुख से भर जाता है। मीरा कहती है कि श्रीकृष्ण जो गोवर्धन पर्वत को धारण करनेवाले हैं, वे उनके स्वामी हैं और मीरा तो उनकी दासी है। मीरा कृष्ण से अपने उद्धार की प्रार्थना करती है।
उपरोक्त काव्यांश संबंधी प्रश्नोत्तर:--
प्रश्न 1. कवयित्री तथा कविता का नाम लिखिए ।
प्रश्न 2. कवयित्री अपना सर्वस्व किसे मानती है ?
प्रश्न 3. मीराबाई श्रीकृष्ण को किस रूप में स्वीकार करती हैं तथा क्यों ?
प्रश्न 4. इस पद्यांश का मुख्य वर्ण्य विषय क्या है?
प्रश्न 5. मीरा किसे देखकर प्रसन्न हो उठती हैं तथा किसे देखकर रो पड़ती हैं ?
प्रश्न 6. मीरा का हृदय सदैव दुख से भरा क्यों रहता है ?
प्रश्न 7. मीरा 'कृष्ण की प्रीति रूपी दूध' को किससे मथना चाहती हैं?
प्रश्न 8. मीरा ने आँसुओं के जल से सींचकर किसे बोया है ?
प्रश्न 9. कृष्ण को अपनाने के लिए मीरा ने क्या किया ?
प्रश्न 10. मीरा कृष्ण से क्या प्रार्थना करती है ?
प्रश्न 11. उक्त अवतरण के आधार पर मीरा आजीवन किसमें लीन रही ?
प्रश्न 12. मीरा को किस काल की कवयित्री माना जाता है ?
प्रश्न 13. अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करो।
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उपरोक्त सभी प्रश्नों के उत्तर नीचे दिए गए हैः-
1. कवयित्री - मीराबाई तथा कविता - पद ।
2. कवयित्री श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानती है।
3. मीराबाई कृष्ण को पति रूप में स्वीकार करती है क्योंकि श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की प्रेम बेल का विकास हो चुका है और उसमें आनंद रूपी फर लगने लगे हैं।
4. कृष्ण के प्रति मीरा के अनन्य प्रेम और भक्ति भावना का वर्णन हुआ है।
5. मीरा प्रभु भक्त को देखकर प्रसन्न हो उठती हैं तथा जगत को देखकर रो पड़ती है।
6. मीरा का हृदय से सदैव इसलिए दुख भरा रहता है क्योंकि वे माया-मोह में लिप्त प्राणियों की दशा को देखकर सोच-विचार में पड़ जाती है तथा स्वयं अंदर-ही-अंदर घुलती रहती हैं।
7 मीरा कृष्ण की पीति रूपी दूध को भक्ति की मथनी से बड़े प्रेम से बिलोना चाहती है।
8. मीरा ने आँसुओं के जल से सींचकर प्रेम-बेल को बोया है।
9. कृष्ण को अपनाने के लिए मीरा ने अपने कुल की मर्यादा को त्याग दिया तथा कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई।
10. मीरा कृष्ण से अपना उद्धार करने की प्रार्थना करती है ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके।
11. उक्त अवतरण के आधार पर मीरा आजीवन कृष्ण की भक्ति में लीन रही।
12. मीरा को भक्तिकाल की कवयित्री माना जाता है।
13. (i) मीरा की कृष्ण के प्रति अनन्यता तथा समर्पण भावना का वर्णन हुआ है।
(ii) रूपक, अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
(iii) पद में संगीतात्मकता का गुण है।
(iv) तुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।
(v) श्रृंगार रस की प्रधानता है।
(vi) भाषा राजस्थानी के शब्दों का समावेश है।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर:--
प्रश्न 1. मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती हैं? वह रूप कैसा है ?
उत्तरः- मीरा कृष्ण के सगुण रूप की उपासना करती हैं। मीरा के कृष्ण का रूप मन को मोहनेवाला है। वे गोवर्धन पर्वत को धारण करनेवाले हैं। उनके सिर के ऊपर मोर का मुकुट विराजमान है। मीरा उन्हें अपना पति मानती हैं। वे मीरा के सर्वस्व हैं। उनके अतिरिक्त मीरा संसार में किसी को भी अपना नहीं मानती। मीरा पति रूप में कृष्ण की भक्ति करते हुए उनके चरणों में भक्ति के पुष्प समर्पित करती हैं।
प्रश्न:-2 मीराबाई जगत को देखकर रोती क्यों है ?
उत्तर:-- मीरा जगत के स्वार्थी स्वरूप को देखकर रो पड़ती हैं। मीरा कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम रखती हैं। वह समर्पण भाव से कृष्ण को पति मान कर भक्ति करती हैं। जगत के लोग मीरा को बावरी मानकर उन्हें कृष्ण से दूर करने का प्रयास करते रहते हैं। मीरा को संतों का संग अच्छा लगता है। वे कृष्ण भक्ति में लीन रहना चाहती हैं पर संसार के लोग उन्हें कुलनाशिनी कह-कहकर यातनाएँ देते हैं। इसी कारण मीरा जगत को देखकर रोती हैं परंतु कृष्ण-भक्ति में प्रेम, आनंद का अनुभव करती हैं।
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