कक्षा -10, पाठ- आत्मकथ्य, कवि- जयशंकर प्रशाद जी, पाठ की व्याख्या, प्रश्नोत्तर CLASS 10 LESSON- AATAMKATHYA POET - JAYSHANKAR PRASHAD SUMA...
कक्षा -10,
पाठ- आत्मकथ्य,
कवि- जयशंकर प्रशाद जी,
पाठ की व्याख्या,
प्रश्नोत्तर
CLASS 10
LESSON- AATAMKATHYA
POET - JAYSHANKAR PRASHAD
SUMARY OF LESSON
QUESTIONS AND ANSWERS
पाठ- आत्मकथ्य
सम्पूर्ण पाठ की व्याख्या:--
'आत्मकथ्य' कविता में कवि के व्यक्तिगत जीवन की झलक है। यह कविता कवि की निजी पीड़ा का दस्तावेज़ है। इस कविता में कवि ने अपनी जीवन-गाथा, अपने सुख-दुख, आकांक्षा, क्षोभ आदि के भाव अंकित किए हैं। अंतिम पंक्तियों में निराश और असफल प्रेमी की पीड़ा प्रकट हुई 'है। कवि का 'मधुप' अर्थात् मन रूपी भँवरा हिंदी की भ्रमरगीत काव्य परंपरा के भौंरे से भिन्न है। भ्रमरगीत काव्य परंपरा का भँवरा मधु लोलुप है, स्वार्थी है, चंचल व अस्थिर है, जबकि प्रसाद जी का मधुप पीड़ित व भावुक प्रेमी का प्रतीक है।
संकेत:-- मधुप....................गागर रीती।
व्याख्या :-- कवि अपने जीवन के कड़वे अनुभवों की चर्चा करते हुए अपने अतीत को याद कर दुखी होता है। कवि को गुनगुनाता हुआ भँवरा ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह अपनी गुंजार द्वारा अपनी जीवन-गाथा सुना रहा हो, अपने जीवन के सुख-दुख की कहानी कह रहा हो। उसके जीवन में कभी बहार आई थी, पर आज पतझड़ है अर्थात् जीवन में कभी खुशियाँ थीं, उमंग थीं व आनंद था; परंतु आज निराशा, दुख व सूनापन है। भँवरे की गुनगुनाहट उसके दुखी हृदय की पीड़ा को व्यक्त कर रही है। वह जीवन के इस सत्य का उद्घाटन कर रही है कि संसार दूर-दूर तक फैले हुए नीले आकाश के समान है जिसमें असंख्य मनुष्य रहते हैं। वे जीवन जीते तो हैं परंतु उनका जीवन निराशा, दुख व कष्ट से भरा है। मानव इतना निष्ठुर तथा स्वार्थी है कि वह असफल और निराश लोगों की दुख गाथा सुनकर सहानुभूति प्रकट करने की बजाय तीखी व्यंग्यमरी वाणी बोलकर उनका उपहास उड़ाता है, उनकी उपेक्षा करता है। यही सत्य है। फिर भी कवि कहता है कि उससे उसकी जीवन-गाथा लिखने का आग्रह किया जाता है। अपने जीवन के दोषों व कमज़ोरियों के विषय में बताने को कहा जाता है, पर उनका जीवन तो रसहीन व आनंदविहीन है। उसकी गागर भरी नहीं, बल्कि खाली है, जिसमें एक बूँद भी पानी नहीं है, अर्थात् उसमें सुख व रस की एक बूँद भी नहीं है। ऐसी नीरस आत्मकथा से पाठकों को क्या आनंद मिलेगा?
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संकेत:-- किंतु कहीं............... भाग गया ।
व्याख्या:-- कवि ने अपने निजी जीवन में अपने मित्रों, सहकर्मियों व संबंधियों के दोहरे व्यवहार की ओर संकेत किया है। कवि कहते हैं कि यदि उन आत्मकथा लिखने के लिए विवश किया गया तो संभव है कि अपने निजी जीवन के अनुभवों की चर्चा करते हुए उन व्यक्तियों की कलई जाएगी, जिन्होंने छल-कपट व विश्वासघात से उसके जीवन की गागर को खाली कर दिया। अब ये स्वयं आनंदमग्न हो चैन का जीवन बिता से हैं। यदि कवि अपने जीवन का सार पूरी सच्चाई व ईमानदारी से लिखने बैठे तो दुनिया उसके भोलेपन, निष्कपट व्यवहार तथा सरल स्वभाव का मज़ाक उड़ाएगी। 'आत्मकथ्य' लिखने की यही विडंबना है कि दूसरे लोगों के छल-कपटपूर्ण व्यवहार का भी पर्दाफ़ाश करना होगा। अत: इसमें न कवि का लाभ है न दूसरों का कवि यह भी स्वीकार करते हैं कि उसके जीवन में अतीत की मधुर यादें भी हैं। उसके जीवन में ऐसे सुखद क्षण भी आए थे जब उसके जीवन में सुख की चाँदनी बिखरी थी, वे उन्मुक्त हँसी हँसते थे, अपने मन की बात खुलकर करते थे। कवि उन मादक क्षणों का, चाँदनी रातों का, मुक्त कंठ के हास-परिहास का तथा प्रेम भरी अनुभूतियों का वर्णन कैसे करे? क्योंकि वे अल्पजीवी थे।
कवि अपने अधूरे सपने के टूटने तथा प्रिय की उपेक्षा उदासीनता की ओर संकेत कर रहे हैं। साथ ही प्रेयसी के सौंदर्य व उसके सान्निध्य से प्राप्त होने वाले सुख की भी कल्पना की है। कवि अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि जिस सुख का सपना देखते-देखते उनकी आँखें खुल गई, वे उसे प्राप्त न कर सके। जिससे मिलने, जिसे पाने की कामना और कल्पना करते रहे, वह उनके आलिंगन में आते-आते रह गया अर्थात् उनका वह सुख का सपना टूट गया, वह साकार न हो सका।
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संकेत:-- जिसके अरूण ................. मौन व्यथा।
व्याख्या:-- कवि अपनी प्रेयसी की सुंदरता को याद कर कह उठते हैं कि वह बहुत सुंदर थी। उसके लालिमायुक्त कपोलों की सुंदरता के आगे प्रातःकाल के सूर्योदय की लाली भी लज्जित हो जाती थी। पूर्व दिशा उसी के (प्रथम) के) कपोलों की लालिमा के कारण लाल हो गई है। उनकी प्रेमिका के कपोलों की सुंदरता को पूर्व दिशा ने ग्रहण कर लिया है। कवि प्रेम में इतने डूबे हुए हैं कि उन्हें समस्त प्रकृति ही प्रेममयी दिखाई देती है। कवि स्वीकार करते हैं कि उसके निराश जीवन में आज न तो कोई सुख है। न आशा। फिर भी अतीत की मधुर यादें तथा प्रिय के संग बीते क्षणों की स्मृति उनकी जीवन-यात्रा के लिए अवलंब बन गई है। इन्हीं सुखद स्मृतियों के सहारे शेष जीवन काटा जा सकता है। थके हुए यात्री के पाथेय (भोजन-सामग्री व जल आदि) के समान ये यादें उनके जीवन का आधार बन गई हैं। अब किसी को उनके अंतर्मन की सीवन (सिलाई) खोलकर क्या मिलेगा? उन्होंने अपनी व्यथा को सुनहरी यादों के आवरण से ढक रखा है। उसे हटा कर उनके घावों को क्यों कुरेदना चाहते हो ? अर्थात उनकी पीडा को दबे ही रहने दो।
कवि का जीवन-काल छोटा व साधारण है, परंतु इस छोटे-से जीवन में कुछ महान कार्य तथा घटनाएँ ऐसी हैं, जिनका उनके जीवन में महत्त्व है। उन्होंने अमर तथा कालजयी कृतियों की रचना से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। वे सोचते हैं कि उन सभी का आत्मकथा में उल्लेख करना उचित नहीं है, क्योंकि बीते दिनों की यादों को सुनकर किसी को कुछ नहीं मिलेगा। उनके व सबके लिए यही हितकर है कि कवि अपनी जीवन-गाथा कहने की बजाय औरों की गाथा सुनें। वैसे भी आत्मकथा लिखने का उपयुक्त समय नहीं आया है। उनकी पीड़ा थककर हृदय की गहराइयों में सोई पड़ी है, उसे जगाना अनुचित है। कवि नहीं चाहते कि उनकी पीड़ा सुनकर दूसरे भी दुखी हों। वैसे भी संसार के लोग इतने स्वार्थी व संवेदनशून्य हो गए हैं कि वे कवि के दुख से तनिक भी दुखी न होंगे। इससे तो अच्छा यही है कि कवि अपनी पीड़ा को अपने तक ही सीमित रखे।
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अभ्यास
पाठ्य पुस्तक प्रश्नोत्तर:--
प्रश्न 1. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
अथवा
कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं कहना चाहता ?
उत्तर :-- कवि निम्नलिखित कारणों से आत्मकथा लिखने से बचना चाहता है-
(i) आत्मकथा लिखते समय अपने अतीत का हर पन्ना खोलना होगा। जीवन से जुड़े दुखों, अभावों तथा असफलताओं एवं हृदयगत दुर्बलताओं का उल्लेख करना होगा। मानव का स्वभाव है, वह दूसरों के दुखों को देखकर आनंद लेता है, उसका उपहास उड़ाता है । कवि उससे बचना चाहता है
(ii) आत्मकथा लिखने से प्रसाद जी को धोखा देने वाले मित्रों के विश्वासघात की भी कलई खुलेगी।
(iii) कवि अपनी प्रेमिका के साथ बिताए मधुर पलों को अपनी निजी पूँजी मानता है अतः आत्मकथा द्वारा उसे सार्वजनिक नहीं करना चाहता।
(iv) कवि की व्यथाएँ थककर सो चुकी हैं। कवि आत्मकथा द्वारा उन्हें पुनः जगाना नहीं चाहता।
प्रश्न-2 आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में 'अभी समय भी नहीं' कवि ऐसा क्यों कहता है?
अथवा
कवि को ऐसा क्यों लगता है कि उसकी आत्मकथा को पढ़कर किसी को भी सुख की अनुभूति नहीं होगी ?
उत्तर:-- कवि को लगता है कि अभी उचित समय नहीं आया कि वह अपनी आत्मकथा कहे। लोगों को भी उसमें कुछ आनंद प्राप्त नहीं होगा। उसकी पीड़ा थककर हृदय की गहराइयों में सोई पड़ी है, उसे जगाना अनुचित है। वे नहीं चाहते कि उसकी पीड़ा सुनकर दूसरे भी दुखी हों ।
प्रश्न 3. स्मृति को 'पाथेय' बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर -- कवि के निराश जीवन में आज न तो कोई सुख है, न आशा । केवल अतीत की मधुर यादें तथा प्रियतमा के संग बिताए क्षणों की स्मृतियाँ उसके जीवन-यात्रा के लिए अवलंब बन गई हैं। इन्हीं सुखद स्मृतियों के सहारे शेष जीवन काटा जा सकता है। थके। हुए यात्री के पाथेय (भोजन-सामग्री व जल आदि) के समान ये यादें उसके जीवन का आधार बन गई हैं।
प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग
गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
उत्तर-- कवि ने अपने जीवन में प्रेम से भरे, जो मधुर सुख की कल्पना की थी, वह उसे कभी प्राप्त नहीं हुआ। वह प्रेमिका के संग प्रेमपूर्ण जीवन बिताने के स्वप्न लेता, किंतु उसके पूरा होने से पूर्व ही वह जाग जाता। उसे लगा वह प्रेमपाश में प्रेमिका को बाँध ही लेगा, किंतु वह करीब आकर भी मुसकुरा कर दूर चली जाती। कहने का अभिप्राय यह है कि कवि को जीवन में दांपत्य सुख नहीं मिला।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया
उत्तरः- कवि की प्रेयसी अनुपम सौंदर्य की स्वामिनी है। उसके गाल इतने लालिमा युक्त और मतवाले हैं कि प्रेममयी उषा भी उसी से लाली ग्रहण करती है। कहने का अभिप्राय है कि कवि की प्रेयसी का सौंदर्य उपा की सुंदरता से भी बढ़कर है ।
प्रश्न 5. 'उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की'-
कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
अथवा
कवि प्रसाद ने चाँदनी रात की गाया को उज्ज्वल क्यों कहा है ?
उत्तरः-- कवि के जीवन में ऐसे सुखद क्षण भी आए थे, जब उसके जीवन में सुख की चाँदनी बिखरी थी। वह उन्मुक्त हँसी हँसता था, अपने मन की बात खुलकर कहता था। कवि उन मादक क्षणों, चाँदनी रातों का, मुक्त कंठ के हास-परिहास का तथा प्रेम भरी अनुभूतियों का वर्णन कैसे करे, क्योंकि वे सुख के क्षण अल्पजीवी थे। आत्मकथा लिखकर इस कहानी को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। ह कवि की निजी अनुभूतियाँ हैं, अतः इनकी गोपनीयता बनी ही रहनी चाहिए।
प्रश्न 6. 'आत्मकथ्य' कविता की काव्यभाषा की विशेषताएं उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तरः-- कविता की भाषा की विशेषताएँ-
(i) छायावादी शैली में रचित कविता है।
(ii) छायावादी सूक्ष्मता के अनुरूप ही कवि ने ललित, सुंदर एवं नवीन शब्दों तथा विवों का प्रयोग किया है।
(iii) एक तरफ़ कवि द्वारा यथार्थ की स्वीकृति है, तो दूसरी तरफ़ कवि की विनम्रता भी है।
(iv) भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है।
(v) तत्सम शब्दों की बहुलता है।
(vi) इसमें 'स्मृति बिंब' का सहारा लिया गया है।
(vii) भाषा में प्रतीकात्मकता और लाक्षणिकता का प्रयोग है। 'पतझड़' सूनेपन का प्रतीक है। 'सुख' के दो अर्थ हैं, पहला-भावनाशून्य व्यक्तियों को कवि की दुख भरी गाथा सुनकर प्रसन्नता होगी, दूसरा- संवेदनशील व्यक्तियों को यह करुण कहानी सुनकर क्या सुख मिलेगा अर्थात् वे दुखी ही होंगे।
(viii) कथात्मक शैली है।
(ix) प्रेम व वेदना के भावों की प्रमुखता के कारण माधुर्य गुण प्रधान है।
(x) मुहावरेदार शैली है-'कथा की सीवन को उधेड़ना' ।
प्रश्न 7. कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-- कवि अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहता है कि जिस सुख का सपना देखते-देखते उनकी आँखें खुल गई, वे उसे प्राप्त न कर सके। जिससे मिलने, जिसे पाने की कामना और कल्पना करते रहे, वह उनके आलिंगन में आते-आते रह गया, अर्थात् उनका वह सुख का सपना टूट गया, वह साकार न हो सका। कवि अपनी प्रेयसी की सुंदरता को याद कर कह उठते हैं कि वह बहुत सुंदर थी। उसके लालिमायुक्त कपोलों की सुंदरता के आगे प्रातःकाल के सूर्योदय की लाली भी लज्जित हो जाती थी ।
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