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कक्षा-11, पाठ- अपू के साथ ढाई साल, लेखक:- श्री सत्यजीत राय जी , पाठ का सारांश , प्रश्नोत्तर CLASS -11 AAROH PART -1 LESSON- APPU KE SATH DHAI SAAL WRITER - MR. SATYAJEET RAI SUMARY OF LESSON QUESTIONS AND ANSWERS

         कक्षा-11 पुस्तक- आरोह  भाग -1 पाठ-   अपू के साथ ढाई साल  लेखक- श्री सत्यजीत राय  पाठ का सारांश  प्रश्नोत्तर  CLASS -11 AAROH PART -...

        

कक्षा-11

पुस्तक- आरोह  भाग -1

पाठ- अपू के साथ ढाई साल 

लेखक- श्री सत्यजीत राय 

पाठ का सारांश 

प्रश्नोत्तर 

CLASS -11

AAROH PART -1

LESSON- APPU KE SATH DHAI SAAL

WRITER - MR. SATYAJEET RAI

SUMARY OF LESSON 

QUESTIONS AND ANSWERS 

लेखक:- श्री सत्यजीत राय जी

                पाठ का सारांश 


'पथेर पांचाली' फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक चला था। इसका मुख्य कारण यह था कि फिल्मकार स्वयं एक विज्ञापन कम्पनी में काम करता था और उसके पास पैसों का भी अभाव था। फ़िल्मकार फ़िल्म से जुड़े अपने अनुभवों के विषय में बताता हुआ कहता है कि फ़िल्म की शूटिंग आरंभ करने से पहले उसे फ़िल्म में काम करनेवाले कलाकारों को इकट्ठा करने के लिए भी खूब मेहनत करनी पड़ी थी। फ़िल्म में मुख्य पात्र अपू की भूमिका के लिए उसे एक छह साल का लड़का चाहिए था। बहुत से बच्चों के इंटरव्यू लेने के बाद प उसे कोई कलाकार बच्चा नहीं मिला। आखिरकार पड़ोस के घर में रहनेवाला लड़का सुबीर बनर्जी ही उनकी उम्मीदों पर खरा उतरा और उसे 'पथेर पांचाली' फ़िल्म में 'अपू' की भूमिका दी गई। इस फ़िल्म की शूटिंग में फ़िल्मकार को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। फ़ल्मकार बताता है कि उनको कलकत्ता (कोलकाता) से सत्तर मील दूर पालासिर नामक गाँव में शूटिंग करनी थी। वहाँ रेल लाइन के नास काशफूलों से भरा मैदान था। वहाँ जब आधे दृश्य की शूटिंग कर ली गई तो किसी कारणवश कुछ समय के लिए शूटिंग को रोकना ड़ा। जब दोबारा शूटिंग आरंभ हुई तो काशफूलों से भरा मैदान जानवरों दवारा खा लिया गया था। ऐसे में यदि शूटिंग की जाती तो दृश्य में निरंतरता न बन पाती। परिणामस्वरूप फ़िल्मकार को एक वर्ष तक अर्थात दोबारा काशफूलों के खिलने तक इंतजार करना पड़ा।

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एक अन्य दृश्य के विषय में फिल्मकार बताता है कि उन्हें रेलगाड़ी के बहुत सारे शॉट्स लेने थे। उन्होंने सुबह से लेकर दोपहर तक रेल लाइन से गुजरने वाली रेलगाड़ियों का टाइम टेबल देखकर भिन्न-भिन्न रेलगाड़ियों के शॉट्स लिए। किंतु फ़िल्म में उन्हें इस प्रकार दिखाया मानो सभी शॉट्स एक ही रेलगाड़ी के लिए गए हो। फिल्मकार को आर्थिक अभाव के कारण भी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। फिल्म में एक कुत्ते की भूमिका निभाने के लिए उन्होंने गाँव से ही एक कुत्ता लिया। जब उस पर एक दृश्य का आधा भाग फिल्माया गया तो पैसे की कमी के कारण शूटिंग को रोकना पड़ा। पैसे आने पर जब शूटिंग दोबारा शुरू हुई तो पता चला कि गाँव का वह कुत्ता तो मर गया है। बाद में उससे मिलता-जुलता दूसरा कुत्ता ढूँढ़कर दृश्य को पूरा किया गया। इसी प्रकार फिल्म में मिठाई वाले की भूमिका श्रीनिवास नामक एक कलाकार निभा रहा था। उस पर भी जब एक दृश्य का आधा भाग फ़िल्माया गया तो पैसे की क कारण शूटिंग को कुछ समय के लिए रोकना पड़ा था। जब दोबारा पैसे आने पर शूटिंग शुरू हुई तो पता चला कि मिठाईवाले की भूमिका निभाने वाले श्रीनिवास का देहांत हो गया है। बाद में उनके शरीर से मिलते-जुलते शरीर वाले एक अन्य व्यक्ति से बाकी बचा हुआ दृश्य पूरा करवाया गया। पैसों की कमी के कारण ही फिल्मकार को बारिश का दृश्य फिल्माने में भी समस्या आई जब बरसात के दिन चल रहे थे तो फिल्मकार के पास पैसे नहीं थे। जब पैसे आए तो बरसात के दिन न होकर अक्टूबर का महीना था। उस समय साफ बरसात होना असंभव था किंतु फिल्मकार प्रतिदिन अपने साथियों सहित बरसात का इंतजार करता। एक दिन अचानक आकाश बादलों से घिर गया और खूब वर्षा हुई।  इस प्रकार बारिश का दृश्य फिल्माया गया।

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फिल्मकार एक अन्य अनुभव के बारे में बताता है कि जिस गाँव में वे शूटिंग करते थे, वहाँ 'सुबोध दा' नामक एक तरह तो उसने उनका खूब विरोध किया किंतु बाद में वह उनका मित्र बन गया। इसी प्रकार फिल्मकार और उसके साथी जिस घर में शूटिंग थे, वहाँ पड़ोस में एक धोबी रहता था। वह मानसिक रूप से ठीक नहीं था। वह अक्सर ऊँची आवाज में देना आरंभ क जिससे साउंड का काम प्रभावित होता था। बाद में धोबी के रिश्तेदारों ने उसे समझाया और फिल्मकार की परेशानी दूर हुई। बताता है कि जहाँ वे लोग शूटिंग करते थे, वह घर बहुत पुराना था। एक दिन शूटिंग के दौरान साउंड रिकॉर्डिस्ट के कमरे में सांप निकल आया, जिसे देखकर वह बुरी तरह सहम गया। उस सौंप को मारने की इच्छा होने पर भी स्थानीय लोगों के मना करने पर उसे नहीं मारा गया। वास्तव में वह एक 'वास्तुसर्प' था और बहुत दिनों से वहाँ रह रहा था।

                         प्रश्नोत्तर :---

प्रश्न 1:- पथेर पांचाली फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला ?

उत्तर- पथेर पांचाली' फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक चला था। इसका मुख्य कारण यह था कि इस फ़िल्म के फ़िल्मकार सत्यजित रॉय के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। पैसे ख़त्म होने के बाद फिर से पैसे जमा होने तक शूटिंग स्थगित रखनी पड़ती थी। इसके अतिरिक्त फ़िल्मकार उस समय स्वयं भी एक विज्ञापन कंपनी में नौकरी करता था। उसे नौकरी के काम से जब फुरसत मिलती थी। तब वह शूटिंग कर पाता था।

प्रश्न 2. अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता ? उनमें से कंटिन्युइटी नदारद हो जाती है। इस कथन के पीछे क्या भाव है?

उत्तर - यहाँ फ़िल्मकार ने पथेर पांचाली फ़िल्म बनाते समय आनेवाली कठिनाइयों में से एक कठिनाई का वर्णन किया है। फ़िल्म की कहानी के अनुसार रेल-लाइन के पास अपू और दुर्गा को काशफूलों से भरे मैदान से रेल को देखना था। इस दृश्य को फ़िल्माने में दो दिन लगने थे। पहले दिन की शूटिंग खत्म होने तक आधा दृश्य फ़िल्माया जा सका। जब फ़िल्मकार एक सप्ताह बाद दोबारा शूटिंग करने वहाँ पहुँचा तो जानवरों के द्वारा सारे काशफूल खाए जा चुके थे। अब फ़िल्मकार के सामने यह समस्या थी कि वह शूटिंग करे या न करे। यदि वह शूटिंग नहीं करता तो उसे एक वर्ष तक इंतजार करना पड़ता था और यदि वह शूटिंग करता तो आधा दृश्य काशफूलों से भरे मैदान का होता तथा आधा काशफूलों के बिना। अतः दृश्य में जो कंटिन्युइटी होनी चाहिए, वह बन नहीं पाती। अंततः उन्होंने एक वर्ष बाद आधे दृश्य को फ़िल्माया ।

प्रश्न 3. किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है ?

उत्तर- फ़िल्मकार ने बताया है कि पथेर पांचाली फ़िल्म का निर्माण करते समय उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। कई बार उसने नई-नई तरकीब लगाकर इन समस्याओं का समाधान खोजा। उदाहरणस्वरूप, इस फ़िल्म की शूटिंग में रेलगाड़ी पर अनेक दृश्य फ़िल्माए जाने थे किंतु जहाँ शूटिंग हो रही थी. उस गाँव में रेलगाड़ी इतनी देर के लिए नहीं रुकती थी कि सभी दृश्य फ़िल्माए जा सकें। फ़िल्मकार ने इसके लिए यह तरकीब अपनाई कि वहाँ से निकलनेवाली भिन्न-भिन्न तीन रेलगाड़ियों पर दृश्य फ़िल्माए जाएँ और उन्हें फिर आपस में जोड़ दिया जाए। इस प्रकार तीन रेलगाड़ियों पर दृश्य फ़िल्माए गए किंतु फ़िल्म में ऐसा लगता है मानो सभी दृश्य एक ही रेलगाड़ी पर फ़िल्माए गए हों।

दूसरा दृश्य फ़िल्म में मिठाईवाले की भूमिका निभानेवाले श्रीनिवास नामक व्यक्ति से जुड़ा है। पहली बार जब शूटिंग हुई तो मिठाई वाले की भूमिका उसी ने निभाई किंतु पैसे के अभाव में कुछ समय के लिए शूटिंग को रोकना पड़ा। कुछ महीने बाद जब पुनः शूटिंग शुरू हुई तो पता चला कि वह व्यक्ति तो मर चुका है। ऐसे में फ़िल्मकार ने श्रीनिवास जैसे शरीरवाले एक व्यक्ति को चुना। उसका चेहरा पहले वाले व्यक्ति से नहीं मिलता था। अतः दृश्य का आधा भाग उसकी पीठ पर कैमरा डालकर पूरा किया गया। फ़िल्म के एक दृश्य में पहले वाला श्रीनिवास घर से बाहर आता हुआ और दूसरे दृश्य में श्रीनिवास घर के अंदर जाता हुआ दिखाया है, किन्तु

फिल्म देखने पर दर्शक को कुछ भी नहीं पता चलता है। इस प्रकार दोनों ही दृश्यों में फिल्मकार ने तरकीब अपनाकर अपनी कमी को उजागर नहीं होने दिया।

प्रश्न 4. भूलो की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया ? उसने फ़िल्म के किस दृश्य को पूरा किया ?

उत्तर- भूलो की मृत्यु हो जाने के कारण ही उसकी जगह दूसरा कुत्ता लाया गया। फ़िल्म में दृश्य इस प्रकार था कि अपू की माँ सर्वजया अपू को भात खिला रही है । अपू अपने तीर-कमान से खेलने के लिए उतावला है। अपू भात खाते-खाते कमान से तीर छोड़ता है और उसे लाने के लिए भाग जाता है। उसकी माँ सर्वजया उसे भात खिलाने के लिए उसके पीछे दौड़ती है। भूलो कुत्ता वहीं खड़ा सब कुछ देख रहा है। उसका सारा ध्यान भात की थाली की ओर है। यहाँ तक का दृश्य पहले वाले भूलो कुत्ते पर फ़िल्माया गया। इसके बाद यह दृश्य दिखाया जाना था कि सर्वजया थाली में बचा भात गमले में डाल देती है और भूलो वह भात खा जाता है। यह बचा हुआ दृश्य ही दूसरे कुत्ते पर फ़िल्माया गया था। उसी ने गमले में फेंका हुआ भात खाया और इस दृश्य को पूरा किया।

प्रश्न-5 फिल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुजर जाने के बाद किस प्रकार फिल्माया गया ?

उत्तर- फ़िल्म में श्रीनवास की भूमिका मिठाई बेचनेवाले की थी। उसके गुजर जाने के बाद उससे जुड़े बाकी दृश्यों को उसके ह जैसे दिखनेवाले दूसरे व्यक्ति पर फ़िल्माया गया। उस व्यक्ति का चेहरा तो श्रीनिवास से नहीं मिलता था किंतु उसका शरी बिलकुल श्रीनवास जैसा ही था। ऐसे में फ़िल्मकार ने तरकीब अपनाकर बाकी दृश्यों को पूरा किया। उन्होंने इस दूसरे व्यक्ि की फ़िल्म में केवल पीठ ही दिखाई जिससे कोई अनुमान भी नहीं लगा पाया कि यह श्रीनिवास न होकर कोई अन्य व्यक्ति है।

प्रश्न-6 बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ ?

उत्तर- फ़िल्मकार को अपनी फ़िल्म 'पथेर पांचाली' में बारिश का दृश्य चित्रित करने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जब बरसात दिन चल रहे थे, तो उनके पास पैसे नहीं थे। बाद में जब उनके पास पैसे आए तब बरसात के दिन जा चुके थे और अक्तूबर का मह शुरू हो चुका था। इस महीने में सामान्य तौर पर आकाश बिलकुल साफ़ रहता है और बारिश नहीं होती, परंतु फ़िल्मकार अपने कलाक और कैमरा तथा तकनीशियन को साथ लेकर बरसात के इंतज़ार में प्रतिदिन गाँव में जाकर बैठे रहते। तब एक दिन अचानक उस ऋतु में भी बादल छा गए और धुआँधार बारिश हुई। इस प्रकार जो बारिश का दृश्य फ़िल्माया जाना था, वह फ़िल्माया गया। इतना अ हुआ था कि बेमौसमी बरसात में भीगने के कारण अपू और दुर्गा की भूमिका निभाने वाले बच्चों को ठंड लग गई थी।


प्रश्न 7. किसी फिल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार की जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर-  किसी भी फ़िल्म की शूटिंग करते समय फ़िल्मकार को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है- 

(i) फ़िल्म की शूटिंग के लिए बहुत सारे धन की आवश्यकता पड़ती है। कई बार फ़िल्म पर अनुमान से अधिक भी खर्च हो जाता है।

(ii) फ़िल्म में काम करनेवाले कलाकारों में से किसी एक का स्वास्थ्य खराब होने के कारण भी शूटिंग को रोकना पड़ता है। 

(iii) फ़िल्म में काम करनेवाले कलाकारों में किसी एक की अचानक मृत्यु भी फ़िल्म की शूटिंग के लिए समस्या बन जाया करती है।

(iv) कई बार फ़िल्मकार को फ़िल्म की कहानी के अनुसार पात्र नहीं मिल पाते हैं। 

(v) कई बार मौसम भी शूटिंग में समस्या बन जाया करता है। अचानक मौसम के खराब हो जाने से भी शूटिंग को रोकना पड़ता है।

(vi) यदि कोई फ़िल्मकार किसी पिछड़े हुए गाँव में जाकर शूटिंग करता है, तो गाँव के लोगों द्वारा सहयोग न मिल पाने से भी समस्या खड़ी हो जाया करती है।










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