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कन्या भ्रूण हत्या-एक अभिशाप

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• निबंध 

• रचनात्मक लेख 


कन्या भ्रूण हत्या-एक अभिशाप 


कातिल कहें, खूनी कहें या कहें हत्यारा ? 

तुम ही कहो, कौनसा नाम है तुम्हें प्यारा ? 

मुट्ठी में ले लिये हैं, सारे कायदे कानून 

भ्रूण हत्या का कैसा चढ़ा तुम पर जुनून।

प्रस्तावना-हमारी भारतीय संस्कृति आरम्भ से ही गौरवशाली रही है। भारतीयों के सामने तो इस तथ्य के सम्बन्ध में प्रमाण देना सूरज को दीपक दिखाने के समान होगा। इस संस्कृति के कुछ मूल्य व कुछ आदर्श तो कभी भी पुराने नहीं हो सकते। वैदिक काल से नारी के महत्त्व को रेखांकित किया गया है। 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता'।

भले ही हमारा समाज पुरूष प्रधान है लेकिन नारी का महत्त्व निर्विवाद है। उसकी सहभागिता न केवल सराहनीय बल्कि अनिवार्य रही है। उस समाज की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती जिसमें नर ही नर हो। दोनों से ही एक सुन्दर समाज का निर्माण होता है। इसलिए नारी के अस्तित्व को कम आंकने वाला मूर्ख प्राणी ही कहा जा सकता है और कुछ नहीं। उपर्युक्त तथ्य को भली भाँति जानते हुए भी पुत्री जन्म को अपना दुर्भाग्य समझते हैं यह बहुत ही विडम्बना की बात है।

भ्रूण हत्या का कारण- कहने को तो भारत में नारी को महत्त्वपूर्ण अधिकार प्रदान किये गये हैं लेकिन व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो कुछ ओर ही है। एक तरफ से पुत्र-पुत्री समानता का राग अलापा जा रहा है दूसरी तरफ दिन व दिन भ्रूण हत्या की घटनाएँ सामने आती जा रही है। इस के पीछे कई कारणों की सारणी बनायी जा सकती है। मगर मूल रूप से तो इसके मूल में लोगों की गिरी हुई मानसिकता का ही हाथ है। कहने को कुछ भी कहो लेकिन पुरूष समाज में नारी का सम्मान कुछ तो कम ही आंका जाता है। वैसे तो कन्या को पराये धन की संज्ञा दे दी गयी है। यह मानसिकता बदल नहीं पायी अगर भ्रूण हत्या के कारणों को साररूप से लिखें तो-

• लड़की को पराया धन मानने की गलत धारणा।

• लड़की जन्म को अपना दुर्भाग्य मानने की लोगों की गिरी हुई मानसिकता ।

• विवाहोपरान्त लड़की के लिए प्रताड़ित किये जाने की विडम्बना।

• समाज में मृत्यु के बाद पुत्र से ही नाम चलता है। ऐसी बेबुनियादी सोच।

• आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का प्रचलन।

• शादी के समय भी वर पक्ष की बजाय वधू पक्ष को ही नीचा समझने की सोच।

• आर्थिक तंगी के कारण दहेज की मांग पूरी न कर पाने का डर।

सामाजिक पृष्ठभूमि-

सामाजिक पृष्ठभूमि से हम उपर्युक्त कारणों पर ही विचार करना चाहेंगे। पुत्री को पराया धन मानकर लोग उसकी परवरिश पर अधिक ध्यान व खर्च नहीं करना चाहते। लोग सोचते हैं कि पुत्र ही बुढ़ापे का सहारा होता है उसी से नाम चलता है। दूसरा कारण है कि शादी के बाद भी माँ बाप को पुत्री से सम्बन्धित चिन्ताएँ ही सताती हैं चूँकि पुत्र तो उनके सामने होता है तथा पुत्री के दूर रहने पर बाप को यह आशंका रहती है कि उसके साथ ससुराल में बुरा व्यवहार हो रहा होगा। वर पक्ष की माँगे पूरी ना की गयी तो वह आत्मजा को प्रताड़ित करते रहेंगे। जैसे-जैसे लड़की बड़ी होती जाती है उसकी शादी की चिन्ता माँ बाप को सताती रहती है आरम्भ से ही वे पैसे की बचत करना शुरू करने लग जाते हैं। स्वयं भले ही ढंग से जीवन न जी सके परन्तु उसकी शादी के लिए मोटी रकम इकट्ठी करनी ही होती है। इन सारी समस्याओं का एक ही हल वे ढूँढ लेते हैं कि काश यह पैदा ही न होती या इसे पैदा ही न होने दे। तकनीक ने भी भरपूर बढावा दिया है। जो गर्भ में पल रही संतान का लिंग निर्धारण करके बता देते हैं। वहीं पर माता पिता की समस्या हल हो जाती है और शुरू हो जाता है यह अमानवीय एवं घिनौना कृत्य ।

गटर की नाली में पड़े होने की खबर अखबारों में पढ़ते हैं तो रोंगटे खडे हो जाते हैं जब सुबह-सुबह भगवान की पूजा अर्चना के समय यह खबर सुनते/पढ़ते हैं कि अमुक स्थान पर एक अबोध नन्हीं जान कचरे के ढेर पर पड़ी है। कौन ऐसा मानव हृदय होगा जो इस खबर से दहल नहीं जाता होगा कि अमुक स्थान पर सड़क के पास एक 3-4 माह के भ्रूण को कुत्ते नोंच-नोंच कर खा रहे थे। ऐसे दृश्य तो शब्दों को ही कम कर जाते हैं। किन शब्दों में ऐसे निर्मम हृदय व्यक्तियों की

भत्सर्ना करें? यह हमारे पूरे मानव समाज पर एक कलंक है। इस विषय पर सभी को गम्भीरता से चिंतन करना होगा वरन हम मानत कहलाने के भी हकदार नहीं होंगे।

भ्रूण हत्या-एक अभिशाप- 

सेवती मास इस तक जिसको, 

पालती उदर में रख जिसको, 

जीवन का अंश खिलाती है, 

अन्तर का रूधिर पिलाती है, 

आती फिर उसको फेंक, 

नागिन होगी वह नारी नहीं।

माँ के निर्मम हृदय की पोल खोलकर 'दिनकर' की इन उपर्युक्त पंक्तियों में कितना दर्द भरा है। संतान को आत्मज आत्मजा कहा जाता है मगर वह कैसी माँ होगी जो अपने इन टुकड़ों को निर्ममता से अपने से अलग कर देती हैं। गर्भ में लिंग का पता लगाकर गर्भ गिरा देना तो भयावह है ही, विस्मित कर देने वाला प्रसंग है ही, मगर मानवता तो तब तार-तार  हो जाती है जब अबोध बच्ची को किसी भ्रूण हत्या रोकने के उपाय-चूंकि भ्रूण हत्या जैसा घृणित कार्य लोगों की निकृष्ट सोच तथा निकृष्ट मानसिकता का परिणाम है। अतः सर्वप्रथम लोगों की सोच को बदलना ही एक विकल्प के रूप में होना चाहिए। आज के वैज्ञानिक युग में लड़के लड़की में भेद समझना एवं मूर्खताभरी सोच है पुत्री जन्म के सम्बन्ध में लोगों को चाहिए कि वे अपनी वर्तमानी सोच को बदल डाले। इसके पीछे कुछ कारक ये हैं जिनसे लोगों में जागरूकता आ सकती है-

•आज लड़की भी उस क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकती है जिस क्षेत्र में लड़का।

•लड़‌कियों ने अंतरिक्ष परी बनकर तो दिखा दिया है चाँद तक पहुँचना भी कोई नई बात नहीं रह गयी।

•देश के सर्व सम्मानित तथा सर्वोच्च पद तक औरतों ने आसीन होकर इतिहास रचा है। पुत्र पास रहता है, पुत्री पराया धन होती है, यह धारणा बेमानी-सी लगती है। आज पुत्र एक है तो भी उसे नौकरी हेतु बाहर जाना ही होता है। वैसे भी पुत्र पराश्रित होता है तभी तक माँ बाप के पास रहता है। बाद में उसके क्षेत्र का दायरा बढ़ जाता है। शादी के बाद तो वह माँ बाप की बजाय अपने बीवी बच्चों के ज्यादा नजदीक आ जाता है।

• अब बात रही, पुत्र से नाम चलने की। तो पुत्र से नाम चलने की जितनी आशा होती है, उससे कहीं ज्यादा नाम डूबने का भी डर रहता है आज लड़कियाँ हर क्षेत्र में उपलब्धियाँ हासिल कर पिता का नाम रोशन कर रही है, और नाम तो सङ्कर्मों से चलता है। तुलसी अपने पुत्र के कारण ही अमर नहीं हुए हैं।

• पुत्री 18-20 वर्ष तक पिता के सानिध्य में अपने कर्त्तव्यों को निभाती है, शादी के बाद पति के घर की इज्जत बनकर अपने दायित्व को निभाती हुई वंश वृद्धि करती है। जो ईश्वर का तथा प्रकृति का विधान भी है। अतः इस विधान के साथ तथा नारी के अस्तित्व के साथ खिलवाड़ करना विश्वभर की सबसे बड़ी बेवकूफी है। आर्थिक तंगी होने पर भी माता-पिता को पुत्री के सम्बन्ध में नकारात्मक सोच नहीं रहनी चाहिए। आज लड़‌कियाँ पराश्रित न होकर स्वावलम्बी बनने जा रही हैं। उपर्युक्त विवेचना पर विचार करने से लोगों की सोच बदल सकते हैं। उन्हें इस घृणित कार्य को करने से बचाया जा  सकता है।

वैधानिक उपाय

भ्रूण हत्या को रोकने के लिए वैधानिक उपाय भी किये जाने चाहिए। कठोर कानून बनाकर ऐसे लोगों को दण्डित किया जाना चाहिए। डॉक्टर जैसे सम्मानित पेशे वाले भी इस तरह का घृणित कार्य करते हैं। उन्हें कानून के कठघरे में खडा करना चाहिए तथा सजा देनी चाहिए। 

उपसंहार

युवा और समृद्ध भारत की एक पहचान समग्र संस्कृति की मुस्कान, लड़का लड़की एक समान अगर हम सच्चे भारतवासी हैं और अपनी महान् संस्कृति से सच्चा प्यार करते हैं तो इस संस्कृति के कुछ आधारभूत मूल्यों को पल्लवित पोषित करना होगा। जहाँ नारी पूज्य होती है वहाँ ईश्वर का निवास होता है और हम तो नारी के अस्तित्व से खिलवाड़ कर रहे हैं निसंदेह हमें अपनी सोच को महान बनाना होगा और इस अमानवीय कृत्य से बचना होगा। तभी हम प्रबुद्ध नागरिक कहलाने के योग्य होंगे और देश को ऊँचाइयों तक ले जा सकेंगे। लड़की लड़का के भेदभाव वाली सोच से ऊपर उठना होगा। लड़कियों को कम आंकने की भूल से बचना होगा। गार्गी, मैत्रेयी, रजिया, लक्ष्मीवाई, मदर टेरेसा, इन्दिरा गाँधी, पी.टी. ऊषा, कल्पना चावला, प्रतिभा पाटिल न जाने कितनी ही ऐसी प्रतिभाओं के नाम गिनाये जा सकते हैं जिन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में कामयाबी की बुलन्दियों को छूआ है। अतः हमें स्त्रियों के अस्तित्व से खिलवाड़ नहीं करनी चाहिये। औरतों को स्वयं को इस दिशा में सोचने की आवश्यकता है । बड़े ही आश्चर्य में डालने वाली बात है कि औरत ही अपने जातीय अस्तित्व की दुश्मन बन जाती है। औरतों को सबसे पहले जागरूक होना होगा।

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